प्रेम का अर्थशास्त्र | विहाग वैभव
जितना हो तुम्हारे पास
उससे कम ही बताना सबसे
ख़र्च करते हुए हमेशा
थोड़ा-सा बचा लेना
माँ की गुप्त पूँजी की तरह
जब छाती पर समय का साँप लोटने लगेगा
हर साँस में चलने लगेगी जून की लू
और तुम्हें लगेगा कि
मन का आईना
रेगिस्तान की गर्म हवाओं से चिटक रहा है
तब कठिन वक़्तों में काम आएगा
वही थोड़ा-सा बचा हुआ प्रेम।