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प्रेम के लिए फाँसी | अनामिका 

मीरा रानी तुम तो फिर भी ख़ुशक़िस्मत थीं,

तुम्हें ज़हर का प्याला जिसने भी भेजा,

वह भाई तुम्हारा नहीं था

भाई भी भेज रहे हैं इन दिनों

ज़हर के प्याले!

कान्हा जी ज़हर से बचा भी लें,

क़हर से बचाएँगे कैसे!

दिल टूटने की दवा

मियाँ लुक़मान अली के पास भी तो नहीं होती!

भाई ने जो भेजा होता

प्याला ज़हर का,

तुम भी मीराबाई डंके की चोट पर

हँसकर कैसे ज़ाहिर करतीं कि

साथ तुम्हारे हुआ क्या!

‘राणा जी ने भेजा विष का प्याला’

कह पाना फिर भी आसान था

‘भैया ने भेजा’—ये कहते हुए

जीभ कटती!

कि याद आते वे झूले जो उसने झुलाए थे

बचपन में,

स्मृतियाँ कशमकश मचातीं;

ठगे से खड़े रहते

राह रोककर

सामा-चकवा और बजरी-गोधन के सब गीत:

‘राजा भैया चल ले अहेरिया,

रानी बहिनी देली आसीस हो न,

भैया के सिर सोहे पगड़ी,

भौजी के सिर सेंदुर हो न…’

हँसकर तुम यही सोचतीं-

भैया को इस बार

मेरा ही आखेट करने की सूझी?

स्मृतियाँ उसके लिए क्या नहीं थीं?

स्नेह, सम्पदा, धीरज-सहिष्णुता

क्यों मेरे ही हिस्से आयी

क्यों बाबा ने

ये उसके नाम नहीं लिखीं?