प्रेम में किया गया अपराध | रूपम मिश्र
प्रेम में किया गया अपराध भी अपराध ही होता है दोस्त
पर किसी विधि की किताब में उसका दंड निर्धारण नहीं हुआ
तुम सुन्दर हो! ये वाक्य स्त्री के साथ हुआ पहला छल था
और मैं तुमसे प्रेम करता हूँ आखिरी अपराध
उसके बाद किसी और अपराध की जरूरत नहीं पड़ी
कभी गैरजरूरी लगने लगे प्रेम या खुद को जाया करने की कीमत मॉगने लगे आत्मा
तो घृणा या उदासीनता से मुँह न फेरना
अपना कोई बड़ा दुख बताकर किडनी या गुर्दा मॉग लेना
वो हूँसकर दे देगी!
देने को तो तुम्हें अपनी जान भी दे देगी पर वो तुम्हारे किस काम की दोस्त!