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Description

प्यास | रामदरश मिश्र 

खड़ा हूँ नदी के किनारे प्यासा-प्यासा

जल के पास होकर भी जल नहीं पी पा रहा हूँ

मैने पूछा-

"तुमने अपने पानी का यह क्या रूप बना दिया है नदी?”

नदी दर्द से मुस्कराई, बोली

"मैंने क्या किया है आदमी

यह तो तुम्हारी ही गंदगी है।

जो मुझमें झर-झर कर मुझे विषाक्त कर रही है

अब तो मैं भी अपना जल नहीं पी पाती

प्यासी-प्यासी बह रही हूँ ।"