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ऋण फूलों-सा | सुनीता जैन

इस काया को

जिस माया ने

जन्म दिया,

वह माँग रही-कि

जैसे उत्सव के बाद

दीवारों पर

हाथों के थापे रह जाते

जैसे पूजा के बाद

चौरे के आसपास

पैरों के छापे रह जाते

जैसे वृक्षों पर

प्रेम संदेशों के बँधे,

बँधे धागे रह जाते,

वैसा ही कुछ

कर जाऊँ

सोच रही,

माया के धीरज का

काया की कथरी का

यह ऋण

फूलों-सा हल्का-

किन शब्दों में

तोल,

चुकाऊँ