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Description

साथ चलते चलते तुम | रश्मि  पाठक

  तुम बहुत आगे

  निकल गए

  जाने कितना समय

  लगेगा तुम तक

  पहुँचने में

  सोचती थी कैसे कटेंगे

   ये पल छिन

   बीत गया एक

   बरस तुम्हारे बिन

   बंद हुए अब मन के

   सारे द्वार

   रुक गया है मेरा

   प्रति स्पंदन

   रह रह कर टीसती

  है वेदना

  और बूँद बूँद आँखों के

  कोनों से झड़ती

  है  चुपचाप

  तुम नहीं हो मेरे पास