सलामत रहें | दीपिका घिल्डियाल
सलामत रहें,
सबके इंद्रधनुष,
जिनके छोर चाहे कभी हाथ ना आएं, फिर भी
सबके खाने के बाद, बची रहे एक रोटी,
ताकि भूखी ना लौटे, दरवाज़े तक आई बिल्ली और चिड़िया
सलामत रहे,
माँ की आंखों की रौशनी,
क्योंकि माँ ही देख पाती है,
सूखे हुए आंसू और बारिश में गीले बाल
सलामत रहें,
बेटियों के हाथों कढ़े मेज़पोश और बहुओं के हल्दी भरे हाथों की थाप,
क्योंकि उनके होने के निशान,
छोटे ही सही, होने ज़रूरी हैं
सलामत रहें,
बच्चों की किताबों में दबे मोरपंख, इंद्रगोप
ताकि कहानियों पर उनका यकीन बना रहे
सलामत रहें,
सबकी दोपहर की नींदे,
चाहे साल में एक बार मिले