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Description

समूह गान | डॉ. श्यौराज सिंह 'बेचैन' 

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

खुशहाली हर किसी को हो–

उजाली हर किसी को हो।

जो आसमान की रही–

वो रोशनी ज़मीं की हो।

हमीं ‘शमाँ’ जलाएँगे-जलाएँगे।

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

नौजवां नया ’जहाँ’ बनाएँगे।

जात-पात की तनाव 

ऊँच-नीच, भेदभाव

पेट के सवाल का

जो दे नहीं सके जवाब

ऐसी रहनुमाई अब न चाहेंगे। 

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

ये जो सांप्रदायिकता की आग है–

भाल पर दरिद्रता का दाग है।

जिसके खून ने वसंत ला दिया–

ज़िंदगी उसे ‘ख़िज़ाँ’ का बाग़ है

‘यूँ’ कैसे बागवाओं को सराहेंगे।

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

मर्द-औरतों में फ़र्क है अभी 

ज़मीं पे बेबसी का नर्क है अभी 

दहेज़ कोढ़ है अभी समाज में 

बराबरी कहाँ है इस निज़ाम में 

कदम हमारे पर न लड़खड़ाएँगे।

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

जिनके वास्ते, शहादतें हुईं 

वे सच्चाइयाँ कहावतें हुईं 

जब भी हो गयी सितम की इन्तहाँ,

जानते हैं सब बगावतें हुईं 

हम भी मिलके मुक्ति-गीत गाएँगे

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।

पी गए आँसुओं के साथ रात।

कह नहीं सके थे, दिल की बात रात, 

हम सुबह के वास्ते ही आए हैं 

हम सुबह ज़रूर लेके आएँगे

नौजवां नया ‘जहाँ’ बनाएँगे।