Listen

Description

स्त्री | सुशीला टाकभौरे

एक स्त्री

जब भी कोई कोशिश करती है

लिखने की बोलने की समझने की

सदा भयभीत-सी रहती है

मानो पहरेदारी करता हुआ

कोई सिर पर सवार हो

पहरेदार

जैसे एक मज़दूर औरत के लिए

ठेेकेदार

या खरीदी संपत्ति के लिए

चौकीदार

वह सोचती है लिखते समय कलम को झुकाकर

बोलते समय बात को संभाल ले

और समझने के लिए

सबके दृष्टिकोण से देखे

क्योंकि वह एक स्त्री है!