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Description

सुनो सितारों! | नासिरा शर्मा 

कहाँ गुम हो जाते हो तुम रात आते ही

जाते हो शराबख़ाने या फिर

थके हारे मज़दूर की तरह

पड़ जाते हो बेसुध चादर ओढ़ तुम!

मच्छर लाख काटें और गुनगुनाएँ

उठते नहीं हो तुम नींद से

कुछ तो बताओ आख़िर कहाँ चले जाते हो तुम

हमारी आँखों की पहुँच से दूर

अंधेरी रातों में आ जाते थे रौशनी भरने

आँखों में आँखें डाल टिमटिमाते थे

सारे दिन की थकी आँखों को सेकते थे और

बिना बोले ही बहुत कुछ बतियाते थे

मौसम कोई भी हो, तुम चमकना नहीं भूलते

चाँद निकले या न निकले,सूरज के डूबते ही

तुम मिलने चले आते थे

नींद में डूबती आँखों में तुम ऐसा भ्रम भरते

जैसे ओढ़ रखी हो सितारों टँकी चादर हमने

तुम्हारी यादों को आज भी सजा रखा है

अपने छोटे से फ़्लैट के कमरे की छत पर

यह सोच कर कि कैसे बन जाते थे रिश्ते तब

जब हमें क़ुदरत लिए फिरती थीं अपनी बाँहों में

छूट गया तारों की छाँव का वह आँगन हमसे

जो न उभरेगा कभी मेरे बच्चों की निगाहों में

समझ न पायेंगे ज़मीन से आसमान के रिश्तों को

वह जायेंगे देखने तुम्हें तारा-मंडल में।