सूर्य और सपने।चंपा वैद
सूर्य अस्त हो रहा है
पहली बार
इस मंज़िल पर
खड़ी वह देखती है
बादलों को
जो टकटकी लगा
देखते हैं
सूर्य के गोले को
यह गोला आग
लगा जाता है उसके अंदर
कह जाता है
कल फिर आऊँगा
पूछूँगा क्या सपने देखे?