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तब तुम क्या करोगे? - ओमप्रकाश वाल्मीकि

 

यदि तुम्हें, 

धकेलकर गाँव से बाहर कर दिया जाए 

पानी तक न लेने दिया जाए कुएँ से 

दुतकारा-फटकारा जाए 

चिलचिलाती दुपहर में 

कहा जाए तोड़ने को पत्थर 

काम के बदले 

दिया जाए खाने को जूठन 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

मरे जानवर को खींचकर 

ले जाने के लिए कहा जाए 

और, 

कहा जाए ढोने को 

पूरे परिवार का मैला 

पहनने को दी जाए उतरन 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

पुस्तकों से दूर रखा जाए 

जाने नहीं दिया जाए 

विद्या मंदिर की चौखट तक 

ढिबरी की मंद रोशनी में 

कालिख पुती दीवारों पर 

ईसा की तरह टाँग दिया जाए 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

रहने को दिया जाए 

फूस का कच्चा घर 

वक़्त-बेवक़्त फूँक कर जिसे 

स्वाह कर दिया जाए 

बरसात की रातों में 
घुटने-घुटने पानी में 

सोने को कहा जाए 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

नदी के तेज़ बहाव में 

उल्टा बहना पड़े 

दर्द का दरवाज़ा खोलकर 

भूख से जूझना पड़े 

भेजना पड़े नई-नवेली दुल्हन को 

पहली रात ठाकुर की हवेली 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

अपने ही देश में नकार दिया जाए 

मानकर बँधुआ 

छीन लिए जाएँ अधिकार सभी 

जला दी जाए समूची सभ्यता तुम्हारी 

नोच-नोच कर 

फेंक दिए जाएँ 

गौरवमय इतिहास के पृष्ठ तुम्हारे 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

वोट डालने से रोका जाए 

कर दिया जाए लहूलुहान 

पीट-पीटकर लोकतंत्र के नाम पर 

क़दम-क़दम पर 

याद दिलाया जाए जाति का ओछापन 

दुर्गंध भरा हो जीवन 

हाथ में पड़ गए हों छाले 

फिर भी कहा जाए 

खोदो नदी-नाले 

तब तुम क्या करोगे? 

यदि तुम्हें, 

सरेआम बेइज़्ज़त किया जाए 

छीन ली जाए संपत्ति तुम्हारी 
धर्म के नाम पर 

कहा जाए बनने को देवदासी 

तुम्हारी स्त्रियों को 

कराई जाए उनसे वेश्यावृत्ति 

तब तुम क्या करोगे? 

साफ़-सुथरा रंग तुम्हारा 

झुलसकर साँवला पड़ जाएगा 

खो जाएगा आँखों का सलोनापन 

तब तुम काग़ज़ पर 

नहीं लिख पाओगे 

सत्यम, शिवम्, सुंदरम्। 

देवी-देवताओं के वंशज तुम 

हो जाओगे लूले-लंगड़े और अपाहिज 

जो जीना पड़ जाए युगों-युगों तक 

मेरी तरह, 

तब तुम क्या करोगे?