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Description

तय तो यही हुआ था - शरद बिलाैरे

सबसे पहले बायाँ हाथ कटा 

फिर दोनों पैर लहूलुहान होते हुए 

टुकड़ों में कटते चले गए 

ख़ून दर्द के धक्के खा-खा कर 

नशों से बाहर निकल आया था 

तय तो यही हुआ था कि मैं 

कबूतर की तौल के बराबर 

अपने शरीर का मांस काट कर 

बाज़ को सौंप दूँ 

और वह कबूतर को छोड़ दे 

सचमुच बड़ा असहनीय दर्द था 

शरीर का एक बड़ा हिस्सा तराज़ू पर था 

और कबूतर वाला पलड़ा फिर नीचे था 

हार कर मैं 

समूचा ही तराज़ू पर चढ़ गया 

आसमान से फूल नहीं बरसे 

कबूतर ने कोई दूसरा रूप नहीं लिया 

और मैंने देखा 

बाज़ की दाढ़ में 

आदमी का ख़ून लग चुका है।