तुम्हारे बारे में | भवानी प्रसाद मिश्र
तुम्हारे बारे में,
तुमसे ही कहूँ
तुम्हें देखकर बढ़ जाती है
मशालों की ज्योति
मोती हो जाता है
ज़्यादा पानी दार
आभार-सा मानता हैं
हर प्रकाश का पुंज
कुंज ज़्यादा हरे हो जाते हैं
नदी-नद ज़्यादा भरे हो जाते हैं
वन हो पाते हैं उन्मन
पवन उतना चंचल नहीं रहता
सृष्टि का श्रम जिस दिन
मेरे हाथ में आयेगा
मैं हर जगह तुम्हें पेश कर दूँगा
सारे अविशेषों को
स्पर्श से तुम्हारे
सरासर सविशेष कर दूँगा !