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 उक्ति | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

कुछ न हुआ, न हो। 

मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल 

पास तुम रहो ! 

मेरे नभ के बादल यदि न कटे— 

चंद्र रह गया ढका, 

तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे 

लेश गगन-भास का, 

रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम 

हाथ यदि गहो। 

बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा— 

मंद सबों ने कहा— 

मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा— 

ज्ञान जहाँ का रहा, 

रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम 

कथा यदि कहो।