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Description

उतरा ज्वार | दूधनाथ सिंह

उतरा ज्वार 

जल

मैला 

लहरें

गयीं क्षितिज के पार 

काला सागर

अन्धी आँखें फाड़

ताक रहा है

गहन नीलिमा 

बुझे हुए तारे

कचपच-कचपच

ढूँढ़ रहे हैं

ठौर 

मैं हूँ मैं हूँ

यह दृश् ।

खोज रहा हूँ

बंकिम चाँद

क्षितिज किनारे

मन में

जो अदृश्य है ।