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वागर्थ | सुनीता जैन 

एक पके फल-सा 

रसमय शब्द 

खोजती रहती है 

रसना 

जो भले कुछ न कहे 

पर संवेद में 

पूरा उतर जाए 

एक थिरक लय की 

खोजती रहती हैं 

उँगलियाँ 

जो भले ही 

सुनाई न दे 

पर साँसों में 

ताल-सी 

बज जाए 

एक वागर्थ 

ढूँढ़ती रहती हैं 

आँखों की 

पुतलियाँ 

जो हथेलियों-सा 

कहने और सहने को 

संपुट 

कर जाए