Listen

Description

वही नहीं था प्रेमी | अनुपम सिंह

किसी दिन तुम पूछोगे मेरे प्रेमियों के नाम

मैं अपना निजी कहकर टाल जाऊँगी

लेकिन प्रेमी वही नहीं था

जिसने कोई वादा किया और निभाया भी

जिसके साथ मैं पाई गई

सिविल लाइंस के कॉफी हाउस में

जिसके साथ बहुत सारी कहानियाँ बनीं

और शहर की दीवार पर गाली की तरह चस्पां की गई

वह भी था जिसके आगोश में

जाड़े की आग मुझे पहली बार प्रिय लगी

जिसने कोई वादा नहीं किया

और स्वप्न टूटने से पहले ही चला गया

मैं वह आग हर जाड़े में जलाती हूँ

वह भी जिसके सम्मुख मैंने

सबसे झीना वस्त्र पहना

फिर धीरे-धीरे उतार दिया

जो मुझे नहीं किसी और को प्रेम करता था

और अपनी आँखें फेर लीं

मेरी स्थूल देह से आँख फेरने वाले पुरुष की याद में

मैं अक्सर अपना वस्त्र उतार देती हूँ

प्रेमी वही नहीं था

जो देह के सभी संस्तरों से गुज़र फूल-सा खिला

और मैं भी आवें-सी दहकी

वह भी था जिसे पाने की वेदना में मेरी बाँहैं

वल्लरी-सी फैलती चली गईं

जो अभी नहीं लौटा है

उसके औचक ही मिलने की आस है।