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Description

यदि चुने हों शब्द | नंदकिशोर आचार्य 

जोड़-जोड़ कर

एक-एक ईंट

ज़रूरत के मुताबिक

लोहा, पत्थर, लकड़ी भी

रच-पच कर बनाया है इसे।

गोखे-झरोखे सब हैं

दरवाज़े भी

कि आ-जा सकें वे

जिन्हें यहाँ रहना था

यानी तुम।

आते भी हो

पर देख-छू कर चले जाते हो

और यह

तुम्हारी खिलखिलाहट से जिसे गुँजार

होना था

मक़्बरे-सा चुप है।

सोचो,

यदि यह मक़्बरा हो भी तो

किस का?

और ईंटों की जगह

चुने हों यदि शब्द!