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यदि प्रेम है मुझसे  | अजय जुगरान 

यदि प्रेम है मुझसे तो मेरी घृणा का विरोध करना 

फिर वो चाहे किसी भी व्यक्ति किसी नस्ल से हो,

यदि प्रेम है मुझसे तो मेरे क्रोध का विरोध करना 

फिर वो चाहे मेरे स्वयं या किसी और के प्रति हो,

यदि प्रेम है मुझसे तो मेरी हिंसा का विरोध करना 

फिर वो चाहे किसी पशु किसी पेड़ के विरुद्ध हो,

यदि प्रेम है मुझसे तो मेरी उपेक्षा का विरोध करना 

फिर वो चाहे किसी भी विचार मत या तर्क की हो,

यदि प्रेम है मुझसे तो मेरे हर असत्य का विरोध करना

फिर वो चाहे अर्ध किसी भी रंग- किसी भी ढंग का हो,

यदि प्रेम है मुझसे तो मेरी बुराई, मेरे पाखंड का विरोध करना 

मेरे सामने समर्पण ना करना चाहे तुम्हें कितना प्रेम हो मुझसे,

सच यदि प्रेम है मुझसे तो मुझे वाणी के तिरस्कार से बचाना

मुझे सोच- विचार कर ही सब शब्द शांत स्वर में बोलने देना,

सच यदि प्रेम है मुझसे तो कोरी इच्छा और महत्वाकांक्षा के परे 

मुझे अर्थपूर्ण जीवन के लिए एक करुणा भरा कोमल ध्येय देना,

प्रिय मेरी, यदि प्रेम है मुझसे  तो देख मेरे अधूरेपन को भले से 

उबार प्रेम से मुझे तुम रचना और उभार प्रेम से मुझे तुम मथना।