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ज़मीं को जादू आता है! | गुलज़ार 

ये मेरे बाग की मिट्टी में कुछ तो है

ये जादुई ज़मीं है क्या?

ज़मीं को जादू आता है!

अगर अमरूद बीजूँ मैं, तो ये अमरूद देती है

अगर जामुन की गुठली डालूँ तो जामुन भी देती है

करेला तो करेला.....निम्बू तो निम्बू!

अगर मैं फूल माँगू तो गुलाबी फूल देती है

मैं जो रंग दूँ उसे, वो रंग देती है

ये सारे रंग क्या उसने कहीं नीचे छुपा रक्खे हैं मिट्टी में

बहुत खोदा मगर कुछ भी नहीं निकला.....!

ज़मीं को जादू आता है!

ज़मीं को जादू आता है

बड़े करतब दिखाती है

ये लम्बे-लम्बे ऊँचे ताड़ के जब पेड़, उँगली पर उठाती है!

तो गिरने भी नहीं देती!

हवाएँ खूब हिलाती हैं, ज़मीं हिलने नहीं देती!

मेरे हाथों से शर्बत, दूध, पानी

कुछ गिरे सब डीक जाती है

ये कितना पानी पीती है!

गटक जाती है जितना दो,

इसे लोटे से दो या बाल्टी से,

या नल दिन भर खुला रख दो

गज़ब है, पेट भरता ही नहीं इस का

सुना है ये नदी को भी छुपा लेती है अन्दर!

ज़मीं को जादू आता है!

ज़मी के नीचे क्या ‘चीनी’ की खानें हैं?

खटाई की चट्टानें हैं?

फलों में मीठा कैसे डालती है ये ज़मीं?

लाती कहाँ से है?

अनारों, बेरों और आमों में, सेबों में,

सभी मीठों में भी मीठे अलग हैं,

की पत्ते खाओ तो फीके हैं और फल मीठे लगते हैं

मौसम्मी मीठी है तो नींबू खट्टा है!

यकीनन जादू आता है!!

वगरना बांस फीका, सख्त और गन्नों में रस क्यों है?

ज़मीं के पेट में क्या कोई मकनातीस का टुकड़ा रखा है,

कि जो गिरता है, उसके पास जाता है

वो चिड़िया हो या ‘उल्का’ हो!

ज़मीं को जादू आता है!!