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Title: [Hindi] - Mahasamar 6 : Prachchhann
Author: Narendra Kohli
Narrator: Vishnu Sharma
Format: Unabridged Audiobook
Length: 29 hours 39 minutes
Release date: April 21, 2021
Genres: Classics
Publisher's Summary:
महाकाल असंख्य वर्षों की यात्रा कर चुका, किन्तु न मानव की प्रकृति परिवर्तित हुई है, न प्रकृति के नियम। उसका ऊपरी आवरण कितना भी भिन्न क्यों न दिखाई देता हो, मनुष्य का मनोविज्ञान आज भी वही है, जो सहस्तों वर्ष पूर्व था। बाह्य संसार के सारे घटनात्मक संघर्ष वस्तुतः मन के सूक्ष्म विकारों के स्थूल रूपान्तरण मात्र हैं। अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर जाएँ तो ये मनोविकार, मानसिक विकृतियों में परिणत हो जाते हैं। दुर्योधन इसी प्रक्रिया का शिकार हुआ है। अपनी आवश्यकता भर पा कर वह सन्तुष्ट नहीं हुआ। दूसरों का सर्वस्व छीनकर भी वह शान्त नहीं हुआ। पाण्डवों की पीड़ा उसके सुख की अनिवार्य शर्त थी। इसलिए वंचित पाण्डवों को पीड़ित और अपमानित कर सुख प्राप्त करने की योजना बनायी गयी। घायल पक्षी को तड़पाकर बच्चों को क्रीड़ा का-सा आनन्द आता है। मिहिरकुल को अपने युद्धक गजों को पर्वत से खाई में गिराकर उनके पीड़ित चीत्कारों को सुनकर असाधारण सुख मिला था। अरब शेखों को ऊँटों की दौड़ में, उनकी पीठ पर बैठे बच्चों की अस्थियाँ टूटने और पीड़ा से चिल्लाने को देख-सुनकर सुख मिलता है। महासमर-6 में मनुष्य का मन अपने ऐसे ही प्रच्छन्न भाव उद्घाटित कर रहा है। दुर्वासा ने बहुत तपस्या की है, किन्तु न अपना अहंकार जीता है, न क्रोध। एक अहंकारी और परपीड़क व्यक्तित्व, प्रच्छन्न रूप से उस तापस के भीतर विद्यमान है। वह किसी के द्वार पर आता है, तो धर्म देने के लिए नहीं। वह तमोगुणी तथा रजोगुणी लोगों को वरदान देने के लिए और सतोगुणी लोगों को वंचित करने के लिए आता है। पर पाण्डव पहचानते हैं कि तपस्वियों का यह समूह जो उनके द्वार पर आया है, सात्विक संन्यासियों का समूह नहीं है। यह एक प्रच्छन्न टिड्डी दल है, जो उनके अन्न भंडार को समाप्त करने आया है, ताकि जो पाण्डव दुर्योधन के शस्त्रों से न मारे ज