बीजेपी-शिवेसना के बीच बाबरी विध्वंस का क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है. ऐसे मौके पर हमने सोचा कि पढ़ाकू नितिन में 6 दिसंबर 1992 की आंखों देखी सुनी जाए. सीनियर जर्नलिस्ट रामदत्त त्रिपाठी ने ना सिर्फ बाबरी को ढहते देखा था बल्कि उसके पहले और बाद के हर वाकये के वो चश्मदीद भी रहे हैं. इस बार पढ़ाकू नितिन में उन्हें ही सुनिए.