सवाल है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समस्या के हल में सक्रिय सहभागिता करने और शांति की ओर कदम बढ़ाने की बात करते दिखने के कुछ ही दिन बाद उसे अपना रुख पलटने में कोई हिचक क्यों नहीं होती?
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