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Ashwani Kapoor
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Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Har Din Nai Lag Rahi Hai Zindagi (हर दिन नई लग रही है ज़िन्दगी)
A beautiful short poem by Ashwani Kapoor. हर दिन नई लग रही है ज़िन्दगी ! उम्र के ऐसे मुक़ाम पर आ पहुँची है कि लगता है पहले से बहुत निखर गई है ज़िन्दगी ! हर सुबह नया सन्देश लिए आती है , हर शाम एक नया जाम बना कर नए दिन के नए सपने बुनने लगती है ज़िन्दगी ! कभी रुकना नहीं कभी थक कर बैठने को नहीं कहता ये मन मेरा , मुझे नई दुनिया दिखाने को बेताब बनाए रखती है ज़िन्दगी! आज वक़्त ठहर गया हो चाहे , लेकिन मुझे चलते रहने को उकसा रही है ज़िन्दगी ! मैं ठहरूँगा नहीं रुक कर थकना मुझे आता नहीं ! मंज़िल कब आएगी किसी को ख़बर नहीं , लेकिन सपनों में बसे मेरे मुक़ाम तक पहुँच कर ही रूकने का नाम लेगी यह ज़िन्दगी ! —-अश्विनी कपूर 6th June 2020 Music credits: Prelude No. 13 by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution license (https://creativecommons.org/licenses/by/4.0/) Source: http://chriszabriskie.com/preludes/ Artist: http://chriszabriskie.com/
2020-08-19
01 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Dost Begaane Ho Gaye (दोस्त बेगाने हो गए)
A short poem on life and friendship by Ashwani Kapoor
2020-08-17
03 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Sapno Ka Bharat (सपनों का भारत)
सपनों का भारत उठो, चलो आगे बढ़ो अब वक्त तुम्हारा आया है ! वक्त है हमारा, देश है प्यारा, सोच नई, हर डगर नई, नई दिशाएँ, नए आयाम। नहीं चाहिए बन्दुक की गोली, बंद-हड़तालें, देश एक प्रदेश की बात है बेमानी ! करना है कुछ ऐसा काम देश बने खूब खुशहाल। कुछ करने से पहले सोचें कुछ करने से पहले देखें सुनने की सारी शक्ति हम गुरु-मंत्र को सौपें। उठो, चलो आगे बढ़ो अब वक्त तुम्हारा आया है ! निंदा त्यांगें उपहास को छोड़ें कर्म को पहचानें फल देश को सौंपे सुने नही, धारण करें मैं-मैं नहीं हम सब करें देश बढ़े, हम साथ चलें आगे बढे, बढ़ते रहें ! लक्ष्य एक, मैं एक नहीं सौ करोड़ कदम, हर दिन हर पल बढ़ते रहें कल जो होना है क्षण में होगा कल का सपना, साकार अभी होगा। यह देश महान संस्कृति महान नारों से अब कुछ न होगा, बातों से न देश बनेगा बहसों के पुल टूट जाएंगे कर्म करेंगे हम सब मिल कर तभी देश का होगा उत्थान ! एक नहीं, दो नहीं सौ करोड़ गाँधी के इस देश को आगे बढ़ना है। स्वयं को सब अपने स्वयं को समझें तभी देश आगे बढ़ेगा। “ मैं तुममे खो जाऊं ", नहीं “ मैं तुमसे यही पाऊं ", नहीं हम सबको अब कहना है मैंने, तुमने, हम सबने कुछ करना है मुझको, तुमको, हम सबको मिलकर कुछ पाना है, देश को आगे बढ़ाना है। उठो, बढ़ो आगे बढ़ो साकार करो सपनो का भारत साकार करो अपना सपना। Written on 15th August 2002 by Ashwani Kapoor
2020-08-14
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Maa Tujhe Pranaam (माँ तुझे प्रणाम)
माँ तुझे प्रणाम ( 1922 - 13/08/2011 ) - In loving memory of my mother माँ तुम कहाँ हो उठते -बैठते सोते जागते तुम्हारी आहट सुनाई देती है ! शायद तुम आज भी पुकारती हो मुझे ! पूजाघर में तुम्हारी आहट सुनाई देती है , बरामदे में तुम्हारी छवि मुझे दिखाई देती है ! सीढ़ियों से उतरते तुम्हारी तस्वीर में झलकती मुस्कुराहट मुझे हर पल तुम्हारे साथ का एहसास करवाती है ! वो बीत चुका बचपन , वो गोदी में बैठा तुम्हारी मेरा लड़कपन , बहुत याद आता है ! सबकी अपनी -अपनी दुनिया है और तुम्हारी दुनिया तो मैं था ! अब कोई और न मिला , न मिल सकता है जो मेरी दुनिया को ही अपना आइना कह सके ! एे माँ ! तेरी बहुत याद आती है ! एक तुम ही तो थी जिसे मेरा रोना - चीख़ना -चिल्लाना , ग़ुस्से में सिर पटक कर रोना भी कहीं प्रेममयी लगता था ! वो तुम ही तो थी जो क़हर बीत जाने पर अपना धैर्य नहीं खोती थी ---" सब ठीक हो जाएगा तू ना घबरा तेरा हर सपना पूरा हो जाएगा ! " देख माँ ! मेरा हर सपना पूरा हो गया , तेरा बेटा आज बहुत बड़ा हो गया ! पर तुम नहीं तो सब कभी -कभी बेमानी लगता है ! मेरी हर साँस समर्पित तुम्हें ! पर वो भी बेमानी क्योंकि अब केवल यादों में तुम्हारा साथ है ! बस तुम्हारे साथ का एहसास है और मैं उसी एहसास के साथ जीना चाहता हूँ !! ऐ माँ ! मेरा नमन तुम्हें ! ----अश्विनी कपूर 13-08-2017 सदा से सदा के लिए
2020-08-13
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Viraasat (विरासत)
विश्वास नहीं होता मेरी आँखों को कि नीले आसमान से ढकी यह मेरी दिल्ली है ! ये तो मेरे बचपन का कोई सपना जान पड़ता है ! मैंने कब के बीत चुके बचपन में ही देखा था यही नीला आसमान! मेरे बचपन में चाँद- तारों से भरी चादर ओढ़कर यही नीला आसमान रात भर सकून देता था मेरे मन को ! रात के स्याह अंधेरे से कभी डर भी नहीं लगता था ! याद है अब भी मुझे चाँद तारों की रोशनी में घर - मोहल्ले में की धमाचौकड़ी, छुटपन की ढेर - सी शरारतें ! कभी कहा नहीं था माँ या बाबूजी ने कि ‘बाहर न जा , अंधेरा है ! ‘ वही दिन क्या लौट आए हैं ? आसमान फिर से नीला हो गया है रात चाँद तारों की बारात लिए अब रोज़ आती है ! पर ये क्या ? बच्चों की किलकारियाँ कहीं दूर तक सुनाई नहीं पड़ती ! इतना ख़ुशनुमा माहौल है लेकिन सूनापन क्यों छाया है चारों तरफ़ ? बड़ा भयावह लगता है रात का अंधेरा अब ! हर ओर डर का पहरा है ! ये क्या हो गया है ? सब कुछ पहले जैसा है फिर भी ख़ौफ़ क्यों है चारों तरफ़ ? मैं विरासत में ये क्या सौंप रहा हूँ अपने ही नए रूप को ! मेरे नाती -पोते क्या मेरे नए रूप में यही दिन देखने को आए हैं ? मुझे आगे बढ़कर कुछ करना होगा , मुझे ही नहीं हम सबको अब सोच बदलनी होगी! इस नीले आसमान को भी नीला ही रहना होगा इस चाँदनी रात को यूँ ही जगमगाना होगा ! —- यह होड़ की दौड़ मुझे रोकनी होगी ! तरक़्क़ी के साथ -साथ मुझे जीने की नई राह खोजनी होगी ! मुझे चाँद-तारों और नीले आसमान को यहीं टिके रहने को विवश करना होगा ! मुझे विरासत में अपने बचपन का आसमान ही अपनी नई पीढ़ी को सौंपना होगा ! —-अश्विनी कपूर
2020-08-07
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Cheen Ki Deewar (चीन की दीवार )
A short poem on ego and the mental block it creates.
2020-08-04
01 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
नि:शब्द (Ni Shabd)
A short poem by Ashwani Kapoor on the magnificent life of a tree
2020-08-04
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Swar Hi Ishwar Hai (स्वर ही ईश्वर है)
स्वर सुनकर माँ से ही तो हम मातृभाषा सीखते हैं। स्वर सुनकर ही तो हम ‘अबोध बालक’ से बड़े हो जाने की पदवी पाते हैं ! स्वर ही तो ज्ञान का भंडार है! जैसा सुनते हैं, वैसे ही बनते जाते हैं। स्वर हमारे व्यक्तित्व की पहचान है। ऐसे में शोर सुनकर, एक साथ स्वर मिले जानकर अशांत मन कैसा ठौर पता है ! सुनने में बहुत आसान लगता है लेकिन स्वर के हर शब्द को अपनाना कितना कठिन है। और अपना लिया यदि एक स्वर तो उसे बदल पाना भी बहुत कठिन है ! --- स्वर से बनी मातृभाषा स्वर ही ईश्वर है ! स्वर ने दिया हर नए धर्म को जन्म ! स्वर ही करता दो भावों का संगम ! स्वर ने ही छेड़ा महासंग्राम और स्वर से ही बनी सरगम ! कितनी सुंदर लगती है सरगम ! संगीत का साम-स्वर कितना सुखद लगता है ! ऐसे में कान जो सुनते हैं, आँखें जो देखती हैं, जिव्हा जैसा स्वाद पाती है , नाक जैसे सूंघता है, त्वचा जैसे महसूस करती है वैसा ही मन समझना शुरू कर देता है ! यही स्वर का उद्गम है ! एक स्वर से दूसरा स्वर बनता है , और इन सब स्वरों से यह प्रकृति और प्रकृति ही ईश्वर है ! प्रकृति ही स्वर लहरी है ऐसे में स्वर ही ईश्वर है। और इस ईश्वर को साम स्वर दे सकें यदि हम तो देखो ! जीवन कितना सुन्दर है।
2020-07-23
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Naya Janm (नया जन्म)
तुम चौरासी लाख योनि की बात करते हो, हर जन्म के बाद नए जन्म की बात करते हो, मैं तो एक योनि नित्य बिताता हूँ हर क्षण एक नया जन्म पाता हूँ ! जो मिल जाता है उसे खुशी मानकर, अपना भाग्य लिखा जानकर नए-नए आयाम बनाता हूँ, आने वाले हर पल को नया जन्म मानकर नई-नई योजनाएं बनाता हूँ ! भाग्य देखो मेरा ! सब सत्य जानकर भी जो पल बीत गया उसकी याद में या तो कसीदे पढ़ता हूँ या आंसू बहाता हूँ आखिर मैं अभी इस जन्म में तो इंसान हूँ !
2020-07-12
00 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Aaj Ka Raja (आज का राजा)
This poem has been taken from Kavita Mein Gita chapter 16, a book by Ashwani Kapoor.
2020-06-29
03 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Hum Ghar Se Kaam Kareinge (हम घर से काम करेंगे)
While everything seems to be falling apart right now, we will work harder than ever and come out of this pandemic stronger!
2020-06-18
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Darr Ka Mahol (डर का माहौल )
This poem from the Pandemic Series is dedicated to the frontline workers, doctors, cops, and essential commodities workers. It aims to give a perspective and boost the morale for people working from home.
2020-06-11
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Naya Savera (नया सवेरा)
Naya Savera is yet another poem by Ashwani Kapoor, from his pandemic series. The poems written during this time are about hope and positivity to help us get through the lockdown.
2020-06-09
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Ghum Se Pare (गम से परे)
Written in memory of a friend who even while battling with a disease, remembered to spread love and positivity.
2020-06-07
01 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Ek Nayi Umang (इक नइ उमंग)
This poem was written at the start of the lockdown in India during the coronavirus pandemic to instill hope in people.
2020-06-07
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Jeevan Tarang (जीवन तरंग)
Ashwani Kapoor wrote Jeevan Tarang poem in 2004. A poem on the circle of life. Whatever we do, the people we meet, everything has a purpose. We may not understand it right at that moment, but we do later and that we should be grateful for.
2020-06-05
01 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Mere Apne Jo Bichud Gaye (मेरे अपने जो बिछड़ गए)
A tribute to those we lost...
2020-06-04
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Nai Kiran (नई किरण)
Life throws many curveballs. Nai Kiran is a short poem on finding the strength within to keep moving on.
2020-06-04
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Ek Arjun (एक अर्जुन)
Inspired by the Mahabharata, this poem is a depiction of the latest political scenarios all around the world. It looks at leadership through the eyes of Arjun and it's similarities in today's world.
2020-06-02
04 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Virus Ke Din ( वायरस के दीन)
A short Hindi poem written on life during this pandemic and how we humans are adapting to the lockdown.
2020-06-02
02 min
Ashwani Kapoor Ki Kalam Se
Mene Jaadu Dekha Hai (मेंने जादू देखा है)
A short poem on understanding life.
2020-06-01
01 min