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Banarasi/singh
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DL935
#DL935 - Banarasi Paan gets GI Tag
RJ Rohan and RJ Kisna in conversation with Banarasi Pan wale bhaiya, from Banaras.See omnystudio.com/listener for privacy information.
2023-04-06
02 min
कल थी काशी, आज है बनारस
जगत गुरु दत्तात्रेय और राजा रघु, 24 गुरुओं की चर्चा
नमस्कार! आप सभी का स्वागत है बनारसी सिंह के podcast में। कुछ सीखना है, याद रखना है और किसी रहस्य को जानना है तो सुने 'कल थी काशी आज है बनारस।' आज के episodes में आप सुनने जा रहे भगवान और अवधूत दत्तात्रेय की कहानी। जया किशोरी जी जो भगवान कृष्ण की लीला और भागवत कथा वाचक हैं, वो कहती हैं कि जब व्यास जी और वाल्मीकि जी या उनसे पहले puran लिखा जा रहा था तब इनको लिखने वालों को यानी ऋषि और मुनि और वेद व्यास जी, वाल्मीकि जी, स्कंद जी आदि को यह पता था कि कलियुग में मनुष्य ज्ञान का इच्छुक होगा लेकिन वो बैठ के धैर्य से उससे सुनेगा नहीं और सुनने की और समझने की उसने इच्छा की कमी भी होगी, इसलिए जीवन को अच्छे से जीने के लिए जो नियम और मूल्य हैं उनको किताब में लिखा गया तो कोई पड़ेगा नहीं। फिर रचनाकारों ने उन मूल्यों औऱ नियमो को कहानी ke माध्यम se लोगों ke बीच फैलाने ka विचार karke कहानी को जन्म दिया। कहानी का महत्व केवल भारतीय संस्कृति और सभ्यता में ही नहीं है, इसका महत्व चीन, जापान और कोरिया और अमरीका, ब्रिटेन, रूस हर देश की संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा है। जैसे हमारा यानी manav ka चित्त यादों ka स्टोर रूम है जहां हमारे संस्कार, विचार aur भाव stor होते हैं, ठीक waise ही हर देश की संस्कृति और सभ्यता की कहानी/story ka store room ये किताबे हैं, ये कहानियां है, जहां मानव jivan ke हर एक समस्या का हल मिलता है। भागवत गीता दुनिया की सबसे बड़ी मोटिवेशन और प्रॉब्लम solving बुक और ज्ञान का केंद्र है जिसे भगवान कृष्ण ने दिया, अपने प्रिय मित्र अर्जुन को। aaj se 5000 saal pahle कहीं गई बाते aaj भी प्रासंगिक है और उपयोगी है। इसलिए पढ़ने का समय नहीं, तो सुनिए! क्या कहते है दुनिया को बनाने वाले और दुनिया में रहकर खुद का जीवन मानव के कल्याण में लगाने वाले युग पुरुष लोग। aadi गुरु शंकर, दत्तात्रेय, गुरु गोरखनाथ, ramkrish परमहंस और tailang स्वामी, lahari जी, kinaraam बाबा, तुलसीदास tailang स्वामी, kalpatri महराज अनेक विभूतियों ने भारत के इस काशी स्थान पर आकर जो पाया और जो दुनिया को सिखाया वही कहानियां आप तक लाने का छोटा सा प्रयास। एक मनुष्य सारा ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता एक जीवन में इतना ज्ञान भरा है इन भारतीय ग्रंथो और कहानियों में बस कुछ देर रुक कर सुनना है। आपको अपने कई समस्याओं का समाधान जरूर मिल सकता है, लेकिन रुकना, सुनना और सोचना औऱ कहानी का सार समझ कर aage तो आपको ही कर्म करना है। इसलिए जैसा चाणक्य कहते हैं अपने अनुभव से सीखने के लिए मानव जीवन काफी छोटा hai। चूंकि कलियुग का मनुष्य टेक्निकल है और अति बुद्धिमान है इसलिए उसे अन्य लोगों के अनुभव और जीवन की सीख से अपने लिए सफ़लता औऱ आनंद का मार्ग बनाना चाहिए। बस इसलिए पेश है आपकी सेवा में प्राचीन नगरी काशी की 1000 कहानियां। ताकि आप जान सके कि आप कितने लकी और भाग्यvaan हैं जो आपसे पहले इतने महान व्यक्तियों ने इस धरती पर जन्म और जीवन बिता कर आपके लिए अपना अनुभव और ज्ञान का भंडार छोड़ रखा है। बस चलते फिरते सुनो और समझो। क्या है जीवन। इसका उद्देश्य क्या है। मैं कौन हूं। क्यों आया हूं। सफ़लता क्या है, आनंद क्या है, खुशी क्या है दुःख क्या है? हर प्रश्न का उत्तर बस यही है। आपके भीतर। अपने भीतर जाओ और सुनो अपने अंदर के परम tatv को। ज्यादा हो गया। फिर कोई नहीं कहानी सुनो और सोचो इसमे क्या सीखने को मिला। जय siya राम!
2023-01-20
32 min
कल थी काशी, आज है बनारस
मार्गशीर्ष पूर्णिमा जब प्रकट हुए दत्तात्रेय, जन्म और जीवन की अनोखी घटना-1
नमस्कार, प्रणाम, नमस्ते इंडिया and इंडियन भाई बहनों। वसुधैव कुटुंबकम भारत की परम्परा है यानी विश्व परिवार है। इसलिए सभी श्रोताओं को नमस्कार, हर हर महादेव। आज का दिन काफी खास है आज मार्गशीर्ष पूर्णिमा है यह नाथ सम्प्रदाय या सनातन धर्म के महान गुरु दत्तात्रेय का जयंती का दिन है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि मास में वो मार्गशीर्ष का महीना हैं, और दत्तात्रेय भी उनके ही यानी नारायण के अवतार कहे जाते हैं। दत्तात्रेय के जन्म के समय उनकी मां को किस परिक्षा का सामना करना पड़ा और कैसे इनका जन्म तीन प्रमुख सनातन देवो से हुआ। यही कहानी आप सुनेंगे इस एपिसोड में। आगे जब दत्तात्रेय बड़े हुए तब क्या कुछ घटा कैसे वो शिष्य बनते बनाते काशी आए। यहां क्या किया काशी में। हर आत्मज्ञानी काशी में ही क्यों आता है यही से फिर उसकी यात्रा समाप्त हो जाती है या फिर वो धर्म मार्ग पर आगे बढ़ता है। सब कुछ जानने के लिए सुनिए बनारसी सिंह का पॉडकास्ट कल थी काशी आज है बनारस। आप के पास कोई प्रश्न हो तो जरूर पूछे और मेरे पास उत्तर हुआ तो जरूर जबाव दूंगी। पॉडकास्ट को प्यार मिल रहा सबका। शेयर जरूर करे। अपने धर्म, भूमि और विभूतियों के बारे में जानना हमारा कर्तव्य और अधिकार भी है। जानिए सीखिए और साझा भी कीजिए ताकि किसी जरूरतमंद तक, किसी जिज्ञासु तक यह जानकारी और कहानी पहुंचे। हर इंसान जिज्ञासु होता है, मेरा मतलब उसने ज्ञान और जानकारी की इच्छा होती ही है। इन mahavibhutiyon के जीवन उपदेश से जोड़ कर आप तक काशी के महात्व को पहुंचना ही मेरा कर्म है। जो ईश्वर की कृपा से मुझे मिला है। सुनिए और सुनाईये... कहानी आगे badhati रहे.. बस बाकी सब महादेव देख लेंगे. Har Har mahadev. नमस्ते. आपके लिए जल्द ही laungi और rochak कहानी. तब तक के लिये राम राम.
2022-12-07
19 min
कल थी काशी, आज है बनारस
क्रीम कुंड में बाबा किना राम से तुलसीदास tailang स्वामी और संत लोटा दास के मुलाकात की कहानी....
नमस्कार और प्रणाम! सभी का स्वागत है. कल थी काशी आज है बनारस के पॉडकास्ट मंच पर. आइये और सुनिए अनोखी कहानी काशी/ बनारस/ वाराणसी की. बनारसी सिंह जो काशी की निवासी है। वो ही यह कहानियां आप तक पहुंचा रही। पर इन् कहानियां को लिखने और आप तक पहुचाने में स्वयं ईश्वर और उन महान विभूतियों का हाथ भी है। जिनकी कहानी से आप काशी को जान रहे। समझ रहे। भगवान शिव के काशी धाम में उनके अघोर पंथ की अलख जगाने वाले बाबा और सिद्ध पुरुष बाबा किना राम और कालू राम जी को जानने के लिए यह एपिसोड सुने। kinaraam बाबा 170 से 200 साल तक जीवित रहे। ऐसा किताबे कहती हैं। बाबा ने विवेक सार और गीतावली जैसी अनेक पुस्तक लिखी। वो संत, समाज सुधारकर और समाज सेवी भी थे। उनके पास जो भी सिद्धी थी उसका उपयोग समाज और मानव कल्याण में किया। स्किन की बीमारी और सन्तान सुख से दुखी अनेकों दंपति को सन्तान सुख दिया जो इन् कहानी में बताया गया है। बाबा ने कई राजा नवाब जमींदार के घमंड को तोड़ा। बाबा ने काशी नरेश चेत सिंह को पतन और निर्वंश होने का शाप दिया जिसे 200 वर्षों तक काशी राजवंश ने सहा। चेत सिंह घाट स्थित महल जो आज भी विरान है। उसके पीछे बाबा का शाप है। राजा ने बाबा का अपमान किया था अपशब्द कहा था तब क्रोध में बाबा ने शाप दिया। लेकिन चेत सिंह के अलावा बाकी सबका बाबा ने भला ही किया।....सब कुछ जानने के लिये सुनिए कल थी काशी आज है बनारस पॉडकास्ट spotify पर anchor Google. मेरा पॉडकास्ट पसंद आए तो शेयर करे अपने दोस्तों और परिवार में. हो सकता है कोई जानना चाहता हो काशी को करीब से. शेयर is केयर do this for yourself. And subscribe my पॉडकास्ट for new stories of काशी. Coming soon. Thanks and धन्यवाद. फिर मिलेंगे जल्द ही. तब तक के लिये हंसते रहे मुस्कुराए और जिंदगी को enjoy करे.
2022-11-15
41 min
कल थी काशी, आज है बनारस
बाबा kinaraam का रहस्य से भरी जन्म jivan...गाथा
नमस्कार, मित्रों आज की कहानी काशी जैसी अद्भुत हैं। आज कहानी परा शक्ति के साधक वर्ग बाबा शिव अघोर के अघोर सम्प्रदाय की कहानी। काशी वाराणसी और बनारस के शिवाला क्षेत्र रविन्द्र पुरी नगर में narmund से सजा द्वार वाला भव्य मठ है जिसे kinaraam पीठ कहते hain। अब आप समझे आज कहानी तंत्र मंत्र सिद्ध महापुरुष की। जिसने 170 साल तक काशी में रहकर लोगों को रोग दोष से दूर किया सबका भला किया। कई राजाओ के अहंकार थोड़े कई को आशीर्वाद दिया कई को शाप दिया। सुनिए अघोर आचार्य श्री kinaraam बाबा की जीवनी के कुछ अंश। बाकी एक एपिसोड में एक महान व्यक्ति के जीवन और रहस्य को बताना काफी मुश्किल है। इसलिए बाबा kinaraam के सारी उपलब्ध कहानी आपको अन्य एपिसोड में सुनने को मिलेगा। Har Har mahadev. सुनिए सुनाए और ज्ञान के दीप को jalane में सहयोग करे. राम राम फिर मिलेंगे.
2022-10-28
37 min
कल थी काशी, आज है बनारस
दक्षिणी भारत का शंकर कैसे बना आदि गुरु शंकराचार्य? शंकर के बचपन se लेकर संत बनने की कहानी
नमस्ते कैसे हो आप सभी। सभी का कल्याण ho। COVID-19 का प्रभाव कम हो रहा। सभी अपने काम में जुट गए हैं। मैं भी वही कर रही। अपना काम आप तक उन कहानियो को पहुंचाने का असली काम। आज की story सिंगल् स्टोरी नहीं बॉक्स of story है। ये कहानी है जगत गुरु आदि शंकराचार्य के बचपन की और उसने जुड़े लोगों के उनके बारे में प्राप्त अनुभव की। कहानी है शंकर के भोले माँ पिता की उन गुरुओ की जिनका जन्म शंकर को ज्ञान देने और मार्गदर्शन के लिए hua। कहानी उन घटनाओं और रीतियों कि जिनको बदलने के लिए नयी सोच इस दुनिया को देने के लिए शांति प्रेम और सद्भावना का पुनर्निर्माण करने के लिए खुद ईश्वरत्व को जन्म लेना पड़ा। सुनिए और साझा करिए अपनों मे क्योंकि ज्ञान और जानकारी बांटने से बढ़ता है। यह धन नहीं जिसे छुपा कर रखा जाए यह तो knowledge है अनुभव का। जिसे युगों पहले किसी ने अनुभव किया। पर बहुत प्रासंगिक समाधान दिया हर समस्या का जो आज आम लोगों के जीवन और समाज के लिए परेशानी का कारण है। आपको भी यह कहानी आपकी समस्या का हल दे सकती है। सुनिए कल थी काशी आज है बनारस जहां आदि गुरु शंकराचार्य, vallabhachary, तुलसी, रैदास, कबीर, tailang स्वामी और अनेक mahavibhutiyi ने जीवन बिताया और सही जीवन का क्या ढंग होता है यह आदर्श स्थापित किया। जिसे लाइफ स्टाइल कहते हैं। वह अगर सही है तब जीवन में रोग मुश्किल नहीं होगी ऐसा नहीं कहा जा सकता पर असाध्य नहीं होंगे। नमस्कार सुनिए और आनंद लीजिए। कहानी बहुत अच्छी है।
2022-10-19
36 min
कल थी काशी, आज है बनारस
दक्षिण मुखी काले हनुमान जी की कहानी-ek दिन ही मिलता है दर्शन!
नमस्ते, प्रणाम 🙏 । सभी लोगों को jay श्री राम! कलियुग के प्रथम चरण में सभी का स्वागत है। सभी सुंदर आत्माओं का कल्याण हो। शान्ति और प्रेम हर दिशा में फैले। क्योंकि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। मन में शांति और सुकून चाहिए तो नदी का किनारा ठंडी हवा और उगता सूरज घंटियों की आवाज मन्त्रों का उच्चारण। शब्दों का मौन वातावरण का शून्य होना यही शांति है। जहाँ केवल आप और बृहद चेतना हो जिससे आप मन की बात कह sake। ये स्थान है अभी भी धरा पर वो काशी है। आज की कहानी कलियुग में धर्म की रक्षा के प्रतीक हनुमान जी की। जिनका रूप केसरिया नहीं काला है। ये ऐसा क्यूँ है? इस मंदिर को केवल शरद पूर्णिमा पर आम जन के लिए क्यूँ खोला जाता है। जानने के लिए सुनिए अपने होस्ट और दोस्त बनारसी सिंह का ये पॉडकास्ट- कल थी काशी आज है बनारस। जिंदा शहर बनारसी। इंसान जिसे छू ले बन जाए पारस। वही है अपना शहर काशी वाराणसी उर्फ बनारस। बचपन में जब दादी नानी कहानी सुनाते तब की कोई बात याद हो न हो लेकिन कहानी क्या थी ये याद रहता है। बस उसी तरह अपने शहर की 1000 कहानी कहने का छोटा सा प्रयास है ये पॉडकास्ट जो हम सभी को जोड़ने और हम एक हैं यही बताने के लिए बनाया जा रहा। हम दिखते अलग हैं पर अंदर से सब समान हैं। सभी पास उतना ही समय वही लक्ष्य और उतना ही सामर्थ है। उसको जानने के लिए इन् कहानियो का सहारा काफी है। दोस्ती भगवान से करो लेकिन पहले अपने हितैषी तो बनो। इसमें कुछ अन्य प्रसिद्ध कुंडों की जानकारी भी है। शॉर्ट स्टोरी के साथ। उसे भी जाने। आगे अब कुछ महान लोगों की कहानी। जिनमे काशी बसा है। जो काशी में बसे हैं।
2022-10-10
34 min
कल थी काशी, आज है बनारस
बनारस_ Kashi : mystery city of इंडिया
एक शहर, एक नगर, एक अति प्राचीन जनपद है काशी. जो मोक्ष देने वाली विश्व प्रसिद्ध क्षेत्र है. मनुष्य ka सबसे बड़ा भय जो मृत्यु है, वही मृत्यु यहां अंत नहीं, आरंभ कही गई है. गंगा के 84 घाटों में लिपटी काशी घर है शिव और पार्वती का. यहाँ बसने वाले लोग माता और पिता मानते हैं दोनों को. शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी जो प्रलय काल में भी नष्ट नहीं हो सकती. महाश्मशान, अविमुक्त, आनन्द कानन और अमर पुरी नाम हैं इसके. इतिहास से भी पुरातन है यह काशी. जो इतना पुराना है उस काशी शहर की कुछ घटना जो हमारे लिए कहानी है वो मैं आपसे साझा करुंगी.
2022-09-24
00 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी में कुंडों की महिमा पार्ट 2
Har Har mahadev, सभी लोगों को नमस्ते और प्रणाम। उम्मीद है सभी स्वस्थ और प्रसन्नता से होंगे। सभी इच्छा ईश्वर पूर्ण करे। चलिए इस episodes के बारे में कुछ बता दें आपको। यह काफी खास है इसमे आप धर्म राज द्वारा स्थापित कुए के बारे में, इंद्र के लिए स्थापित कूप की कहानी, जिससे उनका ब्रह्महत्या का पाप हटा, मानसरोवर कूप जिसमें आज में शिव v शिवा स्नान करते हैं, चन्द्र कूप जिसका दर्शन और स्नान आपके साथ आपके पूर्वजो को मुक्त और तृप्त कर्ता है। गौतम ऋषि द्वारा स्थापित गौतम कूप जो gadwaliya में स्थित है। वहां क्या है खास मान्यता और नियम सब जानिए इस episodes में। सुनने के लिए spotify और anchor या एप्पल या google पॉडकास्ट डाउनलोड करिए उसने सर्च करिए banarasi सिंह का कल थी काशी आज है बनारस पॉडकास्ट। खुद भी सुनिए और दूसरों को shayer करें ।
2022-09-09
27 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी में कुंड की महिमा part -1
हर हर महादेव, सब लोग कैसे हो। मस्त स्वास्थ्य और आनंद में। यही चाहिए जीवन में प्रसन्नता बनी रहे बाकी क्या लेकर आए थे जो लेकर जाएंगे। ये वाक्य आप काशी की गालियों मे हर व्यक्ति को बोलते सुनेंगे। भले यू दुकान पर आपको 500 की साड़ी 5000 में बेच दे। यही बनारसीpan है। खैर आज आपको कल थी काशी और आज है बनारस पॉडकास्ट पर काशी के उन महत्व वाले कुंड की कहानी और जानकारी दी जा रही। सब पढ़ कर ही जान लेंगे तो सुनेंगे क्या? फटाफट फोन पर spotify, anchor, google podcast, एप्पल पॉडकास्ट और भी कई है जो लगे वो ऐप्लिकेशन डाउनलोड करिए और उसमें कल थी काशी आज है बनारस नाम के पॉडकास्ट को choose करिए। और वहां आप सुनेंगे 1000 कहानियां बनारस काशी वाराणसी के जीवन यात्रा की। शिव की नगरी काशी, धरती पर सबसे प्यारी काशी। मेरा भारत महान उसमें हमारी शान। यहां जो मिलते ज्ञानी पुरुष महान वो शहर है काशी। उच्च कोटि के ज्ञानी, व्यापारी, अमीर,गरीब, पागल, संगीत, साहित्य मिठाई और पान की खान है काशी। ये केवल मंदिरों और घाटों के लिए नहीं ब्लकि कुंडों और सरोवरों के लिए भी जानी जाती है। इन् जल स्रोतो का क्या महत्व है। इनको क्यों और किसने किसके लिए बनाया? हर सवाल का जवाब इस एपिसोड में मिलेगा। तो lap से ऑनलाइन हो जाइए और ear फोन को उपयोग में लाते हुए करे अपने knowledge को on with बनारसी सिंह। stay tune I have something फॉर यू all. अपने समय को कुछ देर लीजिए थाम क्योंकि सुन रहे कहानी काशी धाम की. काशी नहीं आए तो क्या किया? मन की हर मुराद को लेकर आइये यही से मिलेगी उसकी चाभी। लोlarak कुंड, धर्म कूप और ज्ञान कूप से लेकर धन्वंतरि कूप की महता और मान्यता से कराएंगे आपका परिचय। बाकी क्या आप खुद ही समझदार हो। बाबा की नगरी में बाबा रखते सबका ध्यान। सुनते रहिये सुनाते रहिये शेयर कर दीजिए अपनों से उनको भी पता होना चाहिए। क्या है काशी। क्या थी काशी कब बनी वाराणसी और कैसे कहीं गई बनारस। शिव जी के त्रिशूल पर टिकी काशी में हर दिन है खास। मौका हो तो चले जाना एक बार। सुबह ए बनारस की धुन से होती है वहां भोर और गंगा मैया की आरती से होती है शाम। kachodhi और जलेबी एक bida पान दुपहरिया में लस्सी और शुद्ध शाकाहारी भोजन बैठ करे जलपान। शाम में मित्रों की टोली संग करे नौका विहार और घाट किनारे कैफ हो या ठेला मिलेगा जिवंत स्वाद चाहे खाएं चाट पकौड़े चाहे खाएं रसगुल्ला काला जाम। थक जाए अगर पैर तो घाटों पर ही कर ले आराम। गंगा की निर्मल जल में करे स्नान और बाबा को करे प्रणाम। सारी चिंता को कर दें किनारे जब पहुचे गंगा धाम।
2022-06-08
32 min
कल थी काशी, आज है बनारस
केदारनाथ मंदिर - काशी में भगवान केदारनाथ के प्रकट होने की घटना
नमस्ते Hello कैसे हैं? सभी स्वस्थ और मजे में होंगे भोले बाबा के प्रभाव से। आज 30 अप्रैल को काशी के रहस्य में एक और मोती की कहानी। दशाअश्वमेघ का कालांतर में बदला नाम dashsamedh घाट जो विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती के लिए जाना जाता है। उसके बगल में केदार घाट है। घाट की ओर सीढियों से जाओ तो आपको यह केदार ईश्वर मंदिर दिखेगा जहां मंदिर के सामने गौरी कुंड है। यहां मंदिर में जो शिव विग्रह है वो आपको थाली में सजी खिचड़ी जैसा लगता है। क्युकी खिचड़ी में ही गौरी और भगवान केदार प्रकट हुए थे। क्यों और कैसे क्या मान्यता है। क्यों हिमालय के केदारनाथ यहां काशी में स्वयंभू हुए। सब कुछ जानने के लिए सुनिए पॉडकास्ट। कल थी काशी आज है बनारस। सुनते रहिये और खोजते रहिये अपने भीतर उस काशी को जो प्रकाश रूप भगवान शिव की नगरी है। जिसे गंगा पावन करती हैं। जो mahashamshan है। जहा जीवन में रस है और मृत्यु में मुक्ति है। बस शिव नाम लेना है। शिवमय तो सारी दुनिया है फिर काशी में ही शिव का वास है क्यों ऐसे प्रश्न आने दें मन में जिज्ञासा से ही ज्ञान की खोज होती है। यह आपके भीतर है जिसे विज्ञान कहते हैं। जो खोजता है उसे जिससे बिछुड़ गया है। उसी शिवोहम के लिए सभी का जीवन है। केदारनाथ में इतनी चढाई के बाद बाबा के दर्शन होते है। जो काशी में आए और किसके लिए आए। क्यों प्रिय है केदार ईश्वर को खिचड़ी। जानने के लिए stay tune with बनारसी सिंह पॉडकास्ट। अभी तो 1000 कहानियां सुनाना है।
2022-04-30
15 min
कल थी काशी, आज है बनारस
पशुपतिनाथ /नेपाली मंदिर की कहानी
हर हर महादेव, सभी के उतम स्वस्थ्य की कामना के साथ महादेव की राजधानी काशी के पशुपतिनाथ शिवलिंग की कहानी आपके लिए। यह पशुपतिनाथ मंदिर तो नेपाल में है यही सोच रहे ना। सच है उसी का प्रतिरूप राजा साहा ने 1800 से 1843 के बीच जब वो काशी धाम आए और उन्हें वेद स्मृतियों से ज्ञान हुआ कि काशी में शिवलिंग की स्थापना से मनोकामना सिद्ध होती है। राजा के मन में शिव जी को कुछ अर्पित करने की इच्छा हुई। राजा ने सोचा जिसका सारा जग है उसे मैं क्या दूँ। उन्होंने नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को यहां स्थापित करने का निर्णय लिया। फिर क्या हुआ यह जानने के लिए सुनिए पशुपतिनाथ के निर्माण की कहानी। नेपाली मंदिर कहा हैं क्या है। काठ वाला मंदिर कहा है काशी में ऐसे बहुत से प्रश्नो का उत्तर आपको मिलेगा। इस एपिसोड में बहुत से अन्य विग्रहों और मंदिरों का जिक्र है उनके location के साथ। उसे भी सुनिए। काशी नगर की डगर नहीं है आसान दंडपाणि जी का दंड कर्ता है हर प्रवासी का परीक्षण। भैरव देते है काल से मुक्ति लेकिन करनी पड़ती है उनकी भक्ति। शिव बाबा के भक्तों का घर गिरजा माँ का अपना लोक यही आनंद वन है जहां असीम आनंद और जीवन रस है। तभी तो आम लोग इसे कहते बनारस हैं।
2022-04-28
22 min
कल थी काशी, आज है बनारस
ज्ञान व्यापी और काशी विश्वनाथ का सम्बंध- धर्म granth और पुराण आधारित कहानी...
Hello, नमस्ते, प्रणाम! Banarasi के इस पॉडकास्ट पर आपका और हमारे अपनों का बहुत बहुत स्वागत है। 🙏 आज 14 अप्रैल 2022 है। काशी की 1000 कहानियो में से 65 वीं कहानी आपके पॉडकास्ट पर हाजिर है। हमारे बचपन में और तब तक जब तक मोदी जी बनारस के सांसद नहीं बने और उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर को वृहत्तर रूप देने वाले सपने की बात नहीं सोची थी तब तक हम भी का गुरु सब ठीक! हाँ गुरु सब ठीक! वाले मिजाज में घूमते रहे। हमे भी यही लगता रहा की बाबा का मंदिर है। बस मंदिर हम भी सोचते रहे की इतना मंदिर क्यों है बनारस में। एक समय हम नास्तिक भी रहे। सच्ची बच्चे थे। कभी कोई बताया ही नहीं कि वो जो काशी को पवित्र कर रही वो केवल नदी नहीं है वो मां है। काशी के कोने कोने में जो शिवलिंग है वो प्रतिरूप है महादेव का। किसी ने बताया ही नहीं के हमारे मोक्ष का द्वार पर हम खड़े हैं। वो मणिकर्णिका घाट जहां दूर देश से लोग मुक्ति के लिए आते हैं। कभी किसी ने नहीं बताया। यही हमारी पीढ़ी की समस्या है। इसलिए जब मुझे मेरा होना समझ आया तब मैंने तय किया कि इस काशी और इसके होने के महात्व को और सनातन धर्म को अगली पीढ़ी और अपनी पीढ़ी के लोगों तक पहुंचाएंगे। इसलिए अपने पुनर्जागरण के बाद हमने यह कार्य शुरू किया। अब काशी मेरे लिए केवल शहर नहीं है वो हमारी जननी है। महादेव उसके राजा है हम उनकी प्रजा और भक्त हैं। काशी के प्राचीन जीवन की 1000 कहानी सुनाने में हमे जो मज़ा और आनंद आ रहा है। उतना जीवन में कभी नहीं आया। आज ज्ञान व्यापी कुआ की कहानी सुनिए। मोदी जी के काशी कॉरिडोर प्रोजेक्ट ने हमे काशी के जिवंत होने और उसके उन तमाम रहस्य को जानने को उत्साहित कर दिया। हमारी पीढ़ी और उसके पहले वाले लोग जिस रस का पान करते हुए जीवन जिए वही बनारस यानी काशी यानी वाराणसी को हर तह पर जानना और समझना जरूरी है। ना केवल भारत के लिए ब्लकि दुनिया के लिए। हमारे धर्म और ज्ञान को नष्ट करने के लिए बड़े चक्रव्यूह रचे गए। पर सांच को आंच ही क्या? यानी सत्य सदैव स्थायी होता है। बस उसे ढूढ़ने और उजागर करने का तरीका बदल जाता है। ये अपने इतिहास को जानने की जिज्ञासा है। ईश्वर से जुड़ने की स्थायी व्यवस्था से लोगों को एकाकार करने का प्रयत्न है। अभी मैंने वेदांत दर्शन पढ़ा जिसमें ब्रम्ह को सत्य बताया गया है। उससे ही दुनिया के निर्माण होने की उस इच्छा को बताया गया है। बहुत थोड़ा जाना है अभी समुद में उतरना बाकी है। आप भी अपने अन्तर्मन में जाओ पूछो खुद से वही सब प्रश्न के उत्तर मौजूद हैं। बस स्थिर होकर बैठना है एक जिज्ञासु छात्रः की तरह अवचेतन मन सब बतायेगा। हूं सब मैं ही नहीं बताऊँगा मैं तो केवल कहानी सुनाने वाली हूं सूत्रधार तो कोई और हैं। तो बाबु moshaia चलो काशी शहर की यात्रा पर उसे जानो और खुद को खोजों कहीं वही तुम्हारा घर तो नहीं। स्टे tune dear brothers and sisters। let tarvel together। you know वॉट इंडिया mythology is time travel guide। drop your mind in home because on the trip of kashi in my story you need only believe and emotion to understand indina culture and धर्मा and way of life। pack your imagination, desire to know untold story of kashi: ancient city of india and first and last civilazation of world। actully live city of century । want to know how। listen your फ्रेंड banarasi singh only on anchor, sportify , apple podcast and Google podcast many more platform।
2022-04-14
28 min
कल थी काशी, आज है बनारस
दुर्गा कुंड मंदिर के स्थापना की कहानी
जय माता दी श्रोताओं और मित्रों, जगत जननी माँ अम्बा सबको शक्ति दें सबका कल्याण करे। इसी सद्भावना से मेरा आपकी होस्ट banarasi singh का अभिवादन स्वीकार करिए। दुर्गा कुंड वो स्थान है जहां जल कभी खत्म नहीं होता। इसमे साथ कुंड है। ये सात तल पाताल लोक जैसे भान करते हैं इसलिए यहां जल पाताल से आता है। बहुत युगों पहले स्मृतियों और श्रुति के आधार पर ऐसी घटना का वर्णन मिलता है कि काशी राज्य के राजा सूबाहु के घर जया नामक कन्या का जन्म हुआ जो देवी भक्त थीं अति रूपवती और गुणवान कन्या जो जब युवा हुई तब पिता ने उनके विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। इससे कुछ समय पूर्व जया को एक सपना आया जिसमें उन्हें देवी इच्छा se उनके वर का नाम और स्थान का पता चला। जया ने पिता को सब कुछ बताया और स्वयंवर से जुड़ी चिंता पर बात की। पिता ने कन्या इच्छा को स्वीकार कर स्वयंवर रद्द किया और सभी से क्षमा याचना की। भारत वर्ष के तत्कालीन राजाओं ने इसे अपमान माना और अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन जिसे जया ने अपने पति रूप में चुना था उससे युद्ध को तैयार हुए। दूसरी ओर राजकुमार सुदर्शन अभी गुरुकुल से राज्य पधारे थे उन्हें जब पता चला कि काशी राज की कन्या जया ने उनका चयन किया है वो भी जया को स्वीकार करने के लिए काशी आए। जहां उनका अन्य राजाओं से युद्ध हुआ। आगे क्या हुआ जानने के लिए सुने पॉडकास्ट कल थी काशी आज है बनारस " stay tune and एंजॉय स्टोरी of oldest सिटी ऑफ वर्ल्ड। kashi the Mysterious land ऑफ शिव।
2022-04-06
29 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी करवत/भीम शंकर ज्योतिर्लिंग (12 ज्योतिर्लिंग of kashi), की सच्ची कहानी...
जय माता दी मित्रों शुभ चिंतक जनों को। हाय, hello, नमस्ते, kaise हैं सभी लोग, hope all is well। काशी में एक भ्रम है आने वाले भक्तों और दर्शनार्थियों के बीच वो ये हैं कि काशी करवट दोस्तों ये काशी करवत है। ये सिंधिया घाट वाला ratneshwar महादेव मंदिर बिल्कुल नहीं है। ब्लकि यह नेपाली खपडा नाम की गली में भीम शंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर को कहते हैं। उसकी स्टोरी यह है कि मोरअंग ध्वज नाम के राजा जो कृष्ण भगवान के भक्त हैं वो अपनी भक्ति दिखाने के लिए आरे से अपने पुत्र को काट देते हैं जो उन्हें दुनिया में सबसे अधिक प्रिय है। तभी कृष्ण वहाँ आते हैं और बालक को पुनः जीवित करके राजा को मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं। राजा ने जिस आरे से पुत्र को काटा था वो उसे लेकर काशी आते हैं। काशी खंड कहता है कि वो ईश्वर से मिलन को इतने उत्साहित होते हैं कि आरे से भीम शंकर ज्योतिर्लिंग के पास खुद का गला काट देते हैं। उससे पूर्व वो शिव जी की पूजा करते हैं। उन्हें बताते हैं कि मुझे कृष्ण जी से मोक्ष का वर मिला है। पर में इस शरीर से मुक्त होकर जीवन चक्र से परे अपने प्रभु में लीन हो जाना चाहता हूं। महादेव उनकी इच्छा का सम्मान करते हैं। तभी से महादेव इस काशी करवत पर अपनी इच्छा से प्राण देने वाले हर प्राणी को मोक्ष देने को वचन बद्ध हैं। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को ही काशी करवत कहा जाता है। इस मंदिर में शिवलिंग 25 फिट नीचे है। स्मृति में ऐसा कहा जाता है कि तब काशी का लेवल वही था कालांतर में यह 25 फिट ऊपर उठा है। शिवलिंग तक जाने के लिए सीडियां हैं वहाँ सावन और शिवरात्रि पर बहुत भीड़ होती है। सावन में हर दिन रुद्राभिषेक होता है। तीन पहर की पूजा का विधान है। ये काशी विश्वनाथ के पास ही स्थित है। बाकी बातेँ आप पॉडकास्ट सुन कर जरूर जाने। listen this स्टोरी to know what is काशी करवत। don't गेट confuse। stay tune I am your host बनारसी सिंह / banarasi singh. I am with you on your spiritual journey to kashi. Please listen factual and mythology based story of ancient and oldest city of wolrd yes that's kashi, banaras, varanasi. Varanasi has so many story that never told. That's happened because in indian way of living we share things vocally. We have sharp memories and learning power. That's why our oldest granth of Hindu life style called Ved these were transferred from one generation to other vocally by our गुरु/ ऋषि/ muni. Our ancestors started writing when they realized that coming generations grasping power goes down. In mordern era people focus on money and status more then knowledge and life experience. They lose their focus their freedom their happiness for material thing's. That's why our forefathers scripts upnishad and पुराण, vedant दर्शन these are summary of three vedas of sanatan dharma. Want know more about kashi. Follow my podcast " kal thi kashi aaj hai banaras ".
2022-04-02
32 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी गलियों का एक प्राचीनतम नगर-3
नमस्ते मित्रों सभी कुशल मंगल से हैं ऐसा मानकर महादेव और अपने घर काशी से जुड़ी कुछ जानकारी और रहस्य ले कर एकबार फिर आपकी दोस्त और होस्ट बनारसी सिंह आपके podcast पर हाजिर हूं। इस एक माह में अनेक कार्य हुए। बनारस जाना हुआ 15 दिन का समय पुनः मिला काशी में रहने और जीने के लिए। इसबार बाबा का बुलावा था। महाशिवरात्रि काशी में ही मनाया gya। काशी की गली का आनंद उठाने के अनेक अवसर मिले। गोविन्द पूरी गली जो आपको घुंघरानी गली से ले जाकर बांस फाटक तक ले जाती हैं और बांस फाटक इलाके की मणिकर्णिका गेट के सामने वाली गली आपको गिरजाघर किदवई गली से किदवई इलाके में ले जाती है जो रजाई ग़द्दा और इलेक्ट्रानिक आइटम का थोक मार्केट है। ऐसी ही अनेक गलियां हैं हमारी काशी में जो मोह से मोक्ष और माया से मुक्ति की ओर ले जाती हैं। आपको क्या चाहिए यह चुनाव आप ही करते हैं। खैर खिड़कियां गली, चूहा गली, कामेश्वर महादेव मंदिर गली, रानी कुआ गली, मणिकर्णिका गली सौ से अधिक गलियां जो मुख्य मंदिर और घाट और बाजार को आपस में जोड़ती हैं। यह काशी की संस्कृति और दिव्यता की पहचान hain। यह पतली दुबली संकरी कहीं चौड़ी कहीं विस्तार लिए कहीं शून्य में ले जाती हैं। इनको समझने का दावा कोई नहीं करता इनको जानना इतना आसान नहीं। ये 500 साल पुरानी भी हैं और अति नवीन भी। यह सीधी हैं जलेबी सी। टेड़ी हैं किसी रस्सी सी। यह उलझन को सुलझाती हैं और कभी आपको उलझाती भी हैं। कभी शुरू होते ही खत्म हो जाती हैं to कभी इनका ओर और छोर मिलना मुश्किल होता है। इसलिए यह काशी की गलियाँ हैं। महादेव तक जाने के अनेक मार्ग सी कठिन और सरल हैं यह गलियां । स्वागत है आपका इन गलियां में गलियां के शहर काशी में। सात पूरी में अति महत्वपूर्ण काशी शहर जो प्राचीन और आधुनिक दोनों है। प्राचीन है अपनी गलियों और संस्कृति के लिए और आधुनिक है परिवर्तन को स्वीकार करने के कारण। उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों की पहचान से परे भारत की या यूं कहें विश्व की प्राचीनतम सभ्यता को समेटे हुए धरती पर चिरकाल से बनी हुई इस पुण्य धरा काशी को नमन है। जो कलियुग में मानव मुक्ति का एक मात्र द्वार है। जहां रहने और जन्म से ही आप मोक्ष के पात्र बन जाते हैं। ऐसे जीवंत शहर काशी में प्रवास करना और उसे जीना अति दुर्लभ और शुभकारी है। ज्ञान नगरी, धर्म नगरी, विज्ञान नगरी, स्वर्ग के सुख से परे शिव धाम काशी। जिसका कण कण और हर जड़ और जीवन स्वयं शिव शंभू है। वहां जाने का स्वप्न हर मनुष्य देखता है। पर अनुमती हर किसी को नहीं मिलती। आपके पास वहां जाने का अवसर है अभी जब प्राण शक्ति अपने ओज पर है। जब यह शिथिल होने लगे तब जा कर क्या करेंगे। जीवन का रहस्य काशी में है। एक बार चरण वंदन कर आइये काशी विश्वनाथ का। फिर जिंदगी हो ना हो। दो दिन की जिंदगी है हंस के बीता लो। क्या लेकर आए थे जो लेकर जाएंगे। पैसा घर गाड़ी ज्ञान सब यही रहेगा। केवल कर्म और समर्पण साथ जाएगा। जीवन परिवर्तन है। उसे स्वीकार कर हर पल आनंद में जियो। हर हर महादेव।
2022-03-15
31 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Banaras ki संकरी गलियाँ/ बनारस is city of street part 2
हर हर महादेव सभी श्रोता गणों का स्वागत है और आभार भी मेरे द्वारा सुनायी जा रही कहानी और जानकारी को सुनने और अपना क़ीमती समय देने के लिए। चलिए आपको बनारस शहर की उन सकरी गलियों में आपको ले चलते हैं जहां जाने की हर किसी की तमन्ना होती है। आप काशी आए और गलियों में सैर नहीं किया तो काशी की यात्रा और यहां बीतने वाला समय अपने चरम पर नहीं जा सकेगा। 14 नवंबर 2021 को मैंने आपको बनारस की कुछ मशहूर गलियों से मिलाया था आज 14 feberaury 2022 को मॉडर्न ज़माने के प्रेम दिवस के अवसर पर आपको अन्य गलियों में ले जाने का मन हुआ। उम्मीद को आंस भी कहते हैं। जब तक साँस है तब तक आंस hai। बनारस के नीचे बाग इलाके में चौक की तरफ से मैदागिन जाते हुए आपको एक मंदिर दिखेगा आंस भैरव का उसके पास एक सकरी गली गुज़रती है उसे आंस भैरव गली कहते हैं। जहां अंदर एक गुरुद्वारा भी hai। गोविन्द पूरी गली चौक मजार से जब आगे बढ़ते हैं तो बायें हाथ पर एक संकरी गली जा रही wo गोविन्द पूरी गली है जो आग दाल मण्डी गली में मिलती है। इसके अलावा ढूंढी राज गली, गुदड़ी गली, हनुमान गली, भूत ही इमली गली, भैरव नाथ गली, विन्ध्यवासिनी गली नारियल गली और खोया गली आदि। काशी की गली है कि गलियों की काशी। गलियों की काशी है कि काशी की गलियां। ये एक banarasi कवि की कलम की कलाकारी hai। 1400 ईस्वी के मध्य आते आते मंदिरों का शहर काशी घाटों का शहर काशी गालियों का शहर काशी बनने लगा था। 1785 में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई द्वारा कराया गया तब विश्वनाथ गली का नामकरण हुआ। ऐसे ही घाटों और मंदिर के नगर काशी में जब गंगा पर बाँध बना तब नदी के किनारे स्थिर हुए लोग बसना शुरु किये। ये गलियां शहर के शोर और कोलाहल से आपको दूर ले जाती हैं। गंगा की ओर और घाटों की ओर आपको ले जाती हैं। ये बनारस की समान विशेष मंडी वाली गलियां भी है। जहां सस्ता और अच्छा समान मिलता है।
2022-02-14
36 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी करवट भ्रम है, ratneshwar महादेव मंदिर...है काशी सहित भारत का अजूबा
हर हर महादेव मित्रों swajano...कैसे हो सब. भगवान से प्रार्थना है सभी स्वस्थ और आनंद में हों। मौज और मस्ती का जीवन में प्रवाह बना rahe। लंबे समय से कुछ व्यस्तता में लीन थे। परंतु अपने इस वादे पर पूरा ध्यान tha। इसलिए तैयारी के साथ आए hain। 2022 का आरंभ हो चुका hai। परंतु हमारे सनातन धर्म में नव वर्ष का आरंभ देवी के आगमन से होता hai। चैत्र माह में नवरात्रि के बाद आता है उल्लास और उत्सव देने वाला नया वर्ष। हम मनुष्य हैं। जिनको सीखने और जीने के लिए सब कुछ रचना गया hai। हर मुश्किल से निकल कर हम बेहतर हो जाते हैं। tabhi मानव विकास की इस प्रवाह में सबसे आगे है। खैर विकास और मानव जाति के कल्याण पर कभी और बात होगी। आज आपके लिए कहानी है। काशी के अजूबे मंदिर ki। वह जो मंदिर hai। जहां पूजा नहीं होती। लेकिन लोगों के लिए दर्शनीय है। हाँ मां के शाप से कोई बचा है क्या। माँ का कर्ज उतरने के लिए भगवान स्वयं कितने जन्म ले चुके hain। मनुष्य सब कर्ज चुका सकता है पर माँ के दूध और वात्सल्य का कर्ज कभी नहीं चुका सकता। जिस टेढ़े मंदिर या अजूबे मंदिर की बात कर रही वह है मणिकर्णिका घाट से आगे बढ़ने पर एक झुका हुआ जलमग्न मंदिर दिखेगा। जहां केवल 2 या 3 माह ही पूजा होती है। जिसका गर्भ गृह हमेशा छुपा रहता है Ganga के आंचल mein। ratneshwar महादेव मंदिर काशी करवट कहकर लोगों को भ्रम दिया जाता है। घाटों पर रहने वाले किसी राजघराने के सेवक ने अपनी माँ रतन बाई का दुध का कर्ज उतारने के लिए यह मंदिर बनाया। जो मां के अनकहे शाप से 9 डिग्री तक झुक गया। कभी पूजन योग्य नहीं बन सका। यह साक्ष्य है कि माँ का कर्ज चुकाने के लिए मानव के पुण्य बहुत कम hai। अब की बार जब काशी जाना और कुछ समय घाटों पर बीताना । देखना हर घाट कुछ कहता है। घाट पर पसरा मौन बहुत कुछ बयान कर देता है। ' हर दिशा में कहानी बहती है। यह शिव की पावन धरती है। गंगा के जल से माँ का वात्सल्य झलकता है अन्नपूर्णा मैया के प्रेम से हर जीवन यहां पलता है। सच्चे का बोल बाला है जहां झूठे का मुह काला करते हैं काल भैरव, हाँ काशी के रक्षक हैं शिव के प्रिय पुत्र विनायक। 64 योगिनी करती हैं काशी की सेवा शिव और उमा के धाम में हर प्राणी को मिलता है निर्वाण। ज्ञानी का ज्ञान, अभिमानी का अभिमान काशी में काशी विश्वनाथ रखते सबका ध्यान। हर हर महादेव......शंभू भोले बाबा की जय...
2022-02-01
13 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी के permanent कोतवाल काल भैरव
काल भैरव जयंती के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। शनिवार अष्टमी ya काल अष्टमी नाम से जाना जाता hai। शिव पुराण के अनुसार दुनिया के आरंभ में क्षीर सागर में शेष नाग पर लेटे श्री विष्णु के नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्म प्रकट होते हैं। आँख खुलने पर दोनों देव एक दूसरे को अभिवादन करते है। फिर ब्रह्मदेव कहते हैं कि वो दुनिया के निर्माता हैं इसलिए वो विष्णु जी के भी पिता हैं। जबकि विष्णु कहते हैं कि ब्रह्म उनके नाभि कमल से उत्पन्न हुए है इसलिए वो उनके पिता है। यह बहस बढ़ती है और महादेव इसको सुलझाने के लिए सभा बुलाते हैं। सभा में एक अग्नि स्तंभ प्रकट होता है। जिसके आरंभ को ब्रह्म देव को और अंत को विष्णु जी को खोजना है। इस क्रिया में विष्णु जी जल्द वापस आ कर कहते है कि इस अग्नि स्तंभ का अंत नहीं। सभी ब्रह्मदेव के इंतजार में हैं वो क्या कहते हैं। ब्रह्मदेव बहुत समय बाद वापस आते हैं और झूठ बोलते हैं। तब अग्नि स्तंभ दो भागों में विभाजित हो जाता है। महादेव कहते हैं कि विष्णु श्रेष्ठ हैं क्यों उन्होंने सत्य बोला। ब्रह्म उनके अधीन हैं क्योंकि उन्होंने झूठ बोला। इस पर ब्रह्म क्रोधित होते हैं। शिव को अपमानित करने लगते हैं। शिव जी क्रोध में अपने स्थान से उठ खड़े होते हैं। उनका रूप रूद्र हो जाता है। मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि होती है। जब शिव काल भैरव रूप ले कर ब्रह्म के पांचवें सर को काट कर इस विवाद का अंत करते हैं। अब सब कुछ शांत होता है। पर स्वयं काल भैरव अशांत और ब्रह्म हत्या के पाप से ग्रसित होते हैं। उन्हें काशी में शांति और पाप से मुक्ति मिलती हैं। आकाश वाणी होती है। अब आप यही काशी नगरी में कोतवाल बन कर रहिये। तब से काशी के कोतवाल हैं काल भैरव। जिनके अनुमति के बिना काशी में वास और प्रवेश असंभव हैं। विश्वनाथ मंदिर से डेढ़ किमी दूर है। काल भैरव का मंदिर। भगवान विशेश्वर महादेव के विश्वेश्वर खंड में निवास करते हैं काल भैरव। आज उनका happy birthday hai। और क्या हैं काशी में खास जानने के लिए सुनिए और पढ़िए बनारसी सिंह का पॉडकास्ट। शेयर जरूर करें। एक दो बार साझा तो बनता हैं।
2021-11-27
20 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी के गालियों mei छुपा है मुक्ति और जीवन का खजाना
नमस्कार मित्रों और बंधुओं और सुनने वाले सभी लोगों का बनारसी सिंह के पॉडकास्ट में हार्दिक स्वागत है। सभी लोग सुन रहे इससे मेरा मनोबल बढ़ता है। पर अगर यह कहानियां आपके द्वारा शेयर भी हों तो जिनको काशी और बनारस के बारे में जानना है उनको भी फायदा होगा। तो मुझे आप इतना समय देते हो एक मिनट लगा कर इसे अन्य लोगों में शेयर भी कर दिया करिए। इसके लिए मैं आपकी आभारी रहूंगी। खैर आज कहानी नहीं है आज जानकारी और कहानी का संगम है। काशी को धर्म नगरी, मोक्ष नगरी, संस्कृति नगरी, ज्ञान केंद्र, आनंद वन, घाटों का शहर, साधु का शहर, मंदिरों का नगर के अलावा भी एक नाम से पुकारा जाता है। वो हैं यहां की गलियाँ। गलियों का शहर काशी या बनारस। सकरी गलियों पतली गलियों का कोई प्रतियोगिता हो तो अपना बनारस अव्वल आएगा। आज के एपिसोड में आप हमारे शहर की उन खास गालियों के बारे में जानेंगे। चलिये ले चलते है उन गलियों में जहां बिंदास बनारस और सौम्य काशी रहती है। काशी का दिल है काशी विश्वनाथ मंदिर। इस दिल से एक गली जुड़ी है जो गादौलिया स्थिति मंदिर गेट से दशा अश्वमेध घाट तक ले जाती है। अंदर इसके कई मोड़ और जोड़ हैं। कभी ये संकट गली से कभी गोपाल गली से मिलती है। इस गली में लकड़ी के खिलौने, आभूषण और पूजा सामग्री, साड़ी और स्थानीय हस्त शिल्प वस्तुएँ मिलती है। दूसरी गली है कचौडी गली नाम में ही सब रखा है। यहां दूर से ही विभिन्न प्रकार के कचौडी की महक आपको यहां आने और छक्क के खाने के लिए विवश करती है। इसी गली में हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिश्चंद्र जी का घर है। और पंच गंगा गली। जो पंच गंगा घाट से शुरू हो कर कई अन्य घाटों तक आपको पहुंचाती है। बहुत लंबी गली है। दाल मंडी यहां दाल नहीं मिलता ब्लकि चूडी, बिंदी, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री, बिजली का समान, ब्यूटी प्रोडक्ट, कपड़ा बाजार आदि का थोक बाजार है। अगर आपको मोल भाव करना आता है तो आपको यहां शॉपिंग में मजा जरूर आएगा। ये गली चौक और नयी सड़क बाजार को जोड़ती है। ऐसे ही अन्य भी गलियाँ हैं जिसके बारे में जान कर आप अपना समय और पैसा दोनों बचा सकते हैं। मंदिर दर्शन और भोजन का आनंद भी ले सकते हैं। लंबे समय तक काशी का निवास और महादेव का सानिध्य पा सकते हैं। अन्य गलियों को जानने के लिए जरूर सुनिए 'कल थी काशी आज है बनारस' बनारसी सिंह का पॉडकास्ट। आप तक कहानी पहुंचाते हुए मुझे एक वर्ष हो चुका है। आगे भी ये सिलसिला जारी रहेगा इसके लिए अपना प्यार और आशीर्वाद बनाये रखें। हर हर महादेव। इस बार भी देव दीपावली पर्व में बनारस में हूँ। इस पर्व की साक्षी बन पाउंगी। जिसके पास भी समय है वो आयें काशी के इस महापर्व में। 19 नवंबर 2021 को मनाया जाएगा। काशी के 84 घाटों पर विश्व प्रसिद्ध दीप उत्सव देव दीपावली। हर हर महादेव।
2021-11-21
22 min
Shubguzari: Hayaatus Sahaba
19 November 2021- Hayaatus Sahaba- Moulana Rashid Banarasi
19 November 2021- Hayaatus Sahaba- Moulana Rashid Banarasi
2021-11-19
09 min
कल थी काशी, आज है बनारस
सोनार पूरा तिल bhandeshvar महादेव मंदिर की कहानी
हर हर महादेव, सबको शुभ प्रभात। जल्दी से कहानी सुन लीजिए। बहुत दिन बाद लाए हैं एक दम ताजा और एक दम प्राचीन शिव विग्रह की कहानी। एक मंदिर है बंगाली टोला स्कूल के पास उस गली को सोनार पूरा कहते हैं। क्या खास है इस मंदिर में। ये जानने के लिए सुनिए मेरा पॉडकास्ट जब एक साल पुराना हो गया है। हर बार में यानी आपकी दोस्त और होस्ट कुछ नया लेकर आती हूं आपके liye।जो होता तो पुराना है बस आप को अभी पता चलता है। खैर नया पुराना बाद में करेंगे पहले कुछ बता दें। ये जो मंदिर है ये तिल bhandesvar महादेव के नाम से जाना जाता है। लोग यहां शनि और उनके चेले राहु और केतु के प्रभाव से मुक्ति पाने केलिए आते हैं। ये विग्रह स्वयंभू है यानी प्रकट हुआ hai। किसी ने बनाया और स्थापित नहीं किया hai। सतयुग से द्वापर तक ये बढ़ता रहा लोगों को लगा कि कहीं कलयुग से पहले ही धरती शिव में समा ना जाए तब काशी के लोगों ने सावन में यहां शिव की खूब पूजा की उनको बुलाया वो आए। जैसा कि सब जानते है वो भोले नाथ हैं वो आए उनसे सबने सविनय निवेदन किया प्रभु रक्षा करिए। वो बोले किस्से।बोले आपके विग्रह से। वो तो रोज बढ़ रहा। ऐसे तो धरती शिव में विलीन हो jayegi। भगवान मुस्कुराए बोले ठीक है में केवल मकर संक्रांति को ही एक तिल बराबर बढ़ा होऊँगा। जो भी मेरी पूजा करेगा उसके कष्ट हर लूँगा। फिर महादेव अंतर्ध्यान हो gaye। तभी से कलयुग में वो केवल तिल बराबर बढ़ते है। यहां शारदा माँ भी आयी और कुछ समय रही। इसलिए अन्नपूर्णा का वास है। लोग यहां दर्शन करने दूर देश से आते hain। आप भी इस बार संक्रांति पर बाबा के दर्शन करना। कुछ और कहानियां हैं जिनको आपको पॉडकास्ट में सुनना चाहिए। जैसे अंग्रेजी हुकूमत को कैसे सबक सिखाया इस विग्रह ने। मुस्लिम सुल्तान की सेना कैसे तीन बार मात खाई। और भी बहुत कुछ। सुनते रहिये और शेयर भी करिए। मेरे द्वारा और आपके सहयोग से किसी और का भला हो जाए तो अच्छा है। हैं ना कृपया इस को मित्रों और घर वालों से शेयर करें। मुझे भी हिम्मत और साहस मिलेगा आपके लिए खोज करने में। बाकी तो महादेव सब देख लेंगे। फिर बात होगी जल्द ही तब तक के लिए आपना ध्यान रखें।
2021-11-08
18 min
कल थी काशी, आज है बनारस
नीलकण्ठ महादेव- समुद्र मंथन
नमस्कार, कैसे है आप लोग। सब बढ़िया। 30 October 2021 माह के आखिरी दिन कुछ अच्छा और प्रभावकारी होना चाहिए इसलिए मेरी ओर से आपका दिन और दिल दोनों अच्छा बनाने के लिए एक कहानी महादेव के नीलकण्ठ रूप की। सुनिए और साझा करिए अपनों के साथ जिन्हें शिव में विश्वास हो। जो नास्तिक हैं उनको भी भेजिए कुछ अच्छा सुनने से उनका भी भाला होगा। ये है काशी स्थित नीलकण्ठ महादेव रूप की कहानी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार और काशी खंड के अनुसार कार्तिक माह की त्रयोदशी को ही देवता और असुर अमृत के लिए समुद मंथन कर रहे थे तब 14 बहुमूल्य रत्नों के साथ देवी महालक्ष्मी और श्री हरि विष्णु के अवतार धन्वंतरि भगवान प्रकट हुए इस मंथन से। धन्वंतरि रूप में नारायण समस्त सृष्टि से असमय मृत्यु का भय दूर करते हैं। और जरा और रोगों से सबकी रक्षा करते हैं। इस मंथन से केवल शुभ ही प्रकट नहीं हुआ था दूसरी ओर मंथन के समय ही हलाहल काल कूट भी निकला था। इसके प्रभाव से समस्त सृष्टि और उसका जीवन नष्ट होने से बचाने के लिए कल्याणकारी महादेव ने उसको पी लिया था। इससे उनका अहित ना हो इसलिए उनकी शक्ति और अर्धांगिनी पार्वती जी ने अपनी शक्ति से उसे महादेव के कंठ में ही स्थित कर दिया। जिससे महादेव का कंठ नीला हो गया। इसलिए ब्रह्मदेव ने महादेव को नीलकण्ठ नाम दिया। ब्रह्म जी ने देवताओं से कहा कि महादेव को इस विष के प्रभाव से बचाने के लिए उनका जल से अभिषेक किया जाय। सभी ने महादेव का अभिषेक किया तब उनके शरीर से विष का प्रभाव कम हुआ, प्रसन्न होकर महादेव ने सभी का कल्याण हो कहा। और कहा कि जो भी मनुष्य पावन मन से मुझे कभी भी एक लोटा जल चलाएगा मैं उसको मनचाहा वरदान दूँगा। तभी से महादेव के विग्रह पर जल अर्पित किया जाता है। काशी में नीलकण्ठ मुहल्ले में 25 फीट नीचे है nikhantheswar महादेव का मंदिर। जो उत्तराखंड के नीलकण्ठ मंदिर सा ही प्रभाव देता है इसलिए तो कहते हैं कि काशी के कण कण में..... आप सब जानते है कि काशी में क्या है...जो नहीं जनता wo एक बार काशी की यात्रा कर आए. इस युग में जीवन का सार है काशी, मोक्ष देने वाले महादेव का दरबार है काशी. नहीं हो जिसका कोई घर बार उसका घर है काशी, माँ Annapurna का आशीर्वाद है काशी. आज बस इतना ही आगे और क्या है काशी आप के लिये comment में बताएं...
2021-10-30
18 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Vijaya-dashmi: कहानी आदि शक्ति नव दुर्गा के उदय की, mahisasur के अंत की कहानी
जय माता दी, कैसे हैं आप सब. सभी स्वास्थ्य और सुरक्षित होंगे यही माता से कामना है. Banarasi/ सिंह के podcast में आप सब का तहे दिल से स्वागत hai। आज की कहानी उस भ्रम को दूर करने के लिए जो हमसे और आपसे बहुत लंबे समय से हो rahi। विजय दशमी और दशहरा एक दिन मनाए जाने वाले दो अलग मान्यता वाले त्यौहार hai। कैसे? अच्छा सवाल पूछा। विजय दशमी अश्विनी माह के शुक्ल पक्ष के दशमी को मनाई जाती है पर ये देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय का दिवस hai। दशहरा भी इस सी दिन मनाया जाता है पर ये श्री राम की रावन पर विजय का दिवस hai। यानी दोनों कहानी का महत्व एक है सत्य की विजय और असत्य का नाश पर पात्र और घटना और समय बिल्कुल अलग अलग hai। देवी आदि शक्ति की आराधना स्वय श्री राम ने भी की थी। रावन वध से पूर्व इसलिए लोग भ्रम में हैं कि दोनों एक ही hai।नहीं विजय दशमी में माता ने महिषासुर के साथ उसकी संपूर्ण आसुरी सेना और आतंक को नष्ट किया। यह युद्ध नव दिन चला था जब देवता देवी की स्तुति कर उनको ताकत वर बनाते थे इसलिए हम मानव भी अपनी माँ की आराधना कर नव दिन में उनकी शक्ति बढ़ा ते है और फिर दशमी को उनको विसर्जित करते है, अगले साल तक के लिए उनसे सुरक्षा और संरक्षण पा कर। बाद में शाम में या रात्री में मेला लगता है जहा रावन, कुंभकर्ण और इंद्रजीत को फूंका जाता है। आगे और क्या हुआ जानने के लिए सुनते रहिये banarasi/ singh अपनी होस्ट और दोस्त ka पॉडकास्ट। फिर मिलेंगे नयी कहानी और नए विचार के साथ तब तक अपना और अपनों का ख्याल रखिए। जय माता दी।
2021-10-18
15 min
कल थी काशी, आज है बनारस
दशहरा ki कहानी: मर्यादा purushotam श्री राम के 14 वर्ष वन वास की कहानी.. धर्म विजय उत्सव
नमस्ते, कैसे हो आप सभी। ईश्वर सबका कल्याण करे यही शुभ इच्छा है मेरी। चलिए आज की कहानी सुनिए। एक राजकुमार अपने भाई और पत्नी के साथ 14 साल के वनवास पर भेज दिया जाता है। स्वार्थ और अति मोह में एक माँ अपनी जनी सन्तान के सुख के लिए मुंह बोली सन्तान को वन भेज देती है। पिता के दिए वचन का मान रखने के लिए प्रजा प्रिय राज कुमार वन चले जाते है। नियति ने भावी राजा को जंगल में भेज दिया। वहां सबका भाला करते हुए 13 वर्ष बीत जाते है। अब घर वापसी में केवल 1 वर्ष शेष है। पर हाय रे विधि का विधान, बड़े राज कुमार की पत्नी कुटिया से गायब हो जाती हैं। खोजते खोज दोनों भाई बेहाल हो जाते हैं फिर एक घायल पक्षी से खबर पाते हैं, कि एक असुर हवाई मार्ग से एक स्त्री का हरण कर ले जा रहा था, वो स्त्री श्री राम रक्षा करिए, भैया लक्ष्मण रक्षा करिए की पुकार लगा रही थी। दक्षिण दिशा में ले गया वो असुर देवी को यह कह कर पक्षी के प्राण छूटे हैं। अब अयोध्या के राज कुमार राम और लक्ष्मण किसकिनकंधा राज्य में पहुचते हैं, वहां हनुमान जी से मिलते हैं। हनुमान सुग्रीव से राम जी को मिलते है। राम जी पत्नी विरह में हो कर भी सुग्रीव के कष्ट हारते है बाली को मार कर सुग्रीव को राजा बनाते हैं। सुग्रीव श्री राम के लिए सीता को खोजने की योजना बनाते हैं हनुमान लंका पहुच सीता माँ की खबर लाते हैं। लंका पति रावन के अहंकार रुपी सोने के महल में अपनी पूछ से आग लगा देते हैं। राम और रावन का युद्ध होता है। रामसेतु बनता है। राम सेना सहित लंका जाकर रावन का वध कर सीता को ससम्मान वापस पाते है। रावन पर श्री राम की विजय ही विजय दशमी और दशहरा के पर्व के रूप में माना जाता है। धर्म की विजय पताका श्री राम लंका में लहराते हैं। उसका विजय घोष भारत के हर कोने में आज भी गूँज रहा। श्री राम भी रावन से विजय से पूर्व आदि सकती जगदम्बा की पूजा करते हैं। आदि सकती के सहयोग और आशीर्वाद से ही सत्य की असत्य पर, धर्म का अधर्म पर, अच्छाई की बुराई पर विजय सम्भव होती है। देवी के नव रूपों से शक्ति पा कर ही मानव रुपी श्री राम (नारायण के अवतार ) सीता की रक्षा और धर्म की विजय पताका लहराते हैं। इसलिए दशहरा से पूर्व नव रात्री का पावन उत्सव मानते हैं। अपने अंदर के सभी दशानन अवगुणों को त्याग कर राम की मर्यादा अपना कर श्री राम बनते हैं। सीता स्वाभिमान हैं हमारा इसकी रक्षा के लिए नव दुर्ग से शक्ति पाकर हम सब श्री राम बन कर खुद में छुपे रावन को जलाते हैं। तबाही सही मायने में दशहरा मानते है। ये परंपरा हम यूं ही नहीं निभाते हैं। खुद में बसे रावन को जला कर ही बाहर के रावन पर विजय पाते हैं। यही सार है इस कहानी का, महत्व है इस पर्व को मनाने का। सुनते रहिए अपने दोस्त banarasi सिंह को। होंसला बढ़ ता है। कहानी पुरानी है पर सिख नयी और प्रासंगिक है। बस यही करना है। सीखते जाईए। हम भी सिख रहे। आप से। अपने विचार जरूर साझा करें।
2021-10-15
07 min
Souranshi Magazine | Podcast Interviews
Podcast Inerview with Ruchi Agarwal |Founder of Khinkhwab Essence of Banaras | Banarasi silk Saree
Khinkhwab is all set to put forward this precious and regal form of art in front of the world. Promoting the handloom weavers, traditional designs, and gorgeous handmade Banarasi silk saree, Khinkhwab is a global platform that bridges the gap between handloom silk lovers and Banarasi silk art. We strongly believe in supporting handmade and artisans and weavers in Varanasi. . Featuring @khinkhwab_essence_of_banaras. Founder Ruchi Agarwal.
2021-10-11
29 min
Souranshi Magazine | Podcast Interviews
Podcast Inerview with Ruchi Agarwal |Founder of Khinkhwab Essence of Banaras | Banarasi silk Saree
Khinkhwab is all set to put forward this precious and regal form of art in front of the world. Promoting the handloom weavers, traditional designs, and gorgeous handmade Banarasi silk saree, Khinkhwab is a global platform that bridges the gap between handloom silk lovers and Banarasi silk art. We strongly believe in supporting handmade and artisans and weavers in Varanasi. . Featuring @khinkhwab_essence_of_banaras. Founder Ruchi Agarwal.
2021-10-11
29 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Yogi शिव or fabulous family man Shankar का अन्तर
Namaskaram, Sabhi ko Jate hua September aur aate hue October ki or se bahut bahut shubh kamna. Sab kuch bahut Sundar aur shubh ho. बहुत समय बाद अंततः मैंने अपने phone main हिन्दी और उससे जुड़े फ़ॉन्ट aur app को कीबोर्ड main जगह बना ली। खैर हिन्दुस्तान main रहकर अगर हिन्दी bol नहीं रहे, लिख नहीं रहे तो फिर क्या kiya। हिन्दी दिवस main नहीं manati। are ye कोई लुप्त हो रही भाषा नहीं बस इसके बोलने वाले इसका महत्व नहीं समझते यही दुख hai। मैंने तो माँ, पिता, नाना, नानी, दादा दादी, पड़ोस, स्कूल college, प्रोफेशनल जीवन main भी हिन्दी ही चुना hai। पहले इसने mujhe aur फिर मैंने इससे chuna। हमारा तो प्रेम संबंध hai। यह तो खून main बहती है, हिन्दी पर विचार kabhi aur। आज की कहानी बहुत मजेदार aur प्रेरणादायक hai। kaise पूछो, ? Jao सुनो, और फिर अपने सुझाव दे कर बताना कि कहानी kaise lagi। एक समय main कैलाश पर्वत पर एक दिन bahut बड़े महोत्सव की तैयारी हो रही थी सभी साज श्रृंगार कर yaha आने को the ganesh जी भी आए और पिता के सामने gaye। dekha भोलेनाथ साधना main लिन hain। आग्रह कर जगाया pucha आप तैयार नहीं हुए, shiv जी बोले तैयार तो hun, कब से ganesh जी बोले पिता जी देखो माता कितनी सुन्दर और मनमोहक लाग रही उनके साथ ऐसे भूतनाथ रूप main ही आसान पर baithenge। मेहमान aa rahe। थोड़ा नहा धोकर साज श्रृंगार कर आइये। mahadev बोले acha, gaye मानसरोवर नहा कर तैयार होकर कैलाश aaye। yaha सब जान उनको एकटक निहारते रह gaye। उस रूप को देख कर ganesh जी सोचने लगे पिता जी के इस रूप के साथ meri माता धूमिल lagengi। ये क्या कर दिया maine। मेरे पिता का भूतनाथ रूप ही सबसे सुन्दर hai। क्युकी इस रूप main तो कोई भी Prabhu के समक्ष उपस्थित भी नहीं रह sakta। mahadev ke इस अति सुन्दर रूप पर समस्त ब्रम्हांड के करोड़ों कामदेव की सुंदरता फीकी lag रही thi। सभी देवी देवता बस shiv जी के इस रूप को निहार रहे the। अब ganesh जी पिता के पास आए, प्रणाम कह कर प्राथना की Prabhu माफ करें mujhe मेरे शब्दों और पहले के आग्रह के liye। Kripa कर अपने भूतनाथ रूप main punah aa jayen। मुझे मेरी भूल का abhas हो गया hai। Kripa कर mujhe क्षमा karein। bhole नाथ मुस्कुराए और कहा thik hai, पर पुत्र क्या कुछ समय पूर्व tumne ही mujhe साज कर आने का आग्रह नहीं किया था । फिर अब कह रहे की पहले वाला रूप ही acha tha। ganesh जी की मनोदशा भाप कर shiv जी फिर से भूतनाथ रूप main aa gaye। जटा जुट धारी, शंभू त्रिपुरारि, जो अरूप है, स्वरुप है, जो अजन्मा है, जो कहीं नहीं पर हर जगह है, जो सर्वव्यापी है, सर्वज्ञात हैं, जो हर जीवित और मृत्यु main hai, जिसकी काया bhasmibhoot है, जो मुण्डों की माला और नीले कंठ वाले हैं, जो चन्द्रशेखर हैं, जो सत्यम, Shivam, सुन्दरम hain। मीनिंग सत्य shiv हैं, shiv ही सुंदर हैं । जैसे सत्य से परे कुछ नहीं वैसे ही shiv से परे कुछ nahi। जो कुछ नहीं वही तो shiv hai। hai की nahi। आज की कहानी का मॉरल क्या hai।।।ki showoff पर mat Jao, मन की सुंदरता पर ध्यान do, जो मन सुंदर है सरल है वही bhagwan है, जो showoff है वो भ्रम है, छल hai। इसलिए तो कहते है भैया, कहे showoff पे इतना जोर दिया है, यही showoff दुनिया डुबो रहा hai।।। kaise है कहानी यह जरूर बताएं क्युकी सुधार जरूरी hai। sunte रहिए banarasi/ singh ko। 'sanatan shehar kashi ke banaras banne ki yatra' podcast par। ये हर जगह hai। anchor, sportify, गूगल, तो doston सुनते रहिए अपने सुन्दर इतिहास को, ताकि future acha ho। हर हर mahadev।।
2021-09-30
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Piplad rishi: जो हैं mahadev अंशावतार
Namskar doston, today you are going to listen story of shivansh mean Shiva ansh avatar. Yes piplad rishi was Shiva ji avatar. Because rishi dadhichi was lord Shiva devotee and student too. So once he and his wife prayed so long for son like Shiva. Shiva appeared and blessed them. But in this duration dadhichi died for world well-being. As you know indra came to rishi and asked his boon for vitrasur end. So his wife gabhistini was pregnant that time . When she knew that dadhichi is no more she decided to Burn herself with her husband body. So she...
2021-09-27
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Rishi dadhichi: monk who gave his bone to dev for world wellness..
Hey friends, hope you all doing good. Have faith, do better get greater. Ok so today you are going to listen story about mahadev favorite rishi. Yes rishi dadhichi. He was son of atharav and Shanti. From his childhood he was very pour and simple be living and higher through his thoughts. He was protector of nature. He was great scholar of Ved and maharishi. Means he was in saptrishi group. This group of rishi taught by mahadev. So dadhichi was dedicated toward Shiva ji. Once he was doing chant in his ashram where sathi first wife of Shiva reached...
2021-09-23
09 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Kashi main karma bane vishwakarma kaise ?
A very beautiful morning everyone. Stay healthy and safe. Now with this story my podcast 'sanatan shehar kashi ke banaras banne ki yatra ' ab 50 mean half century par Kar gayi hai. Sab kuch mahadev ke Kripa se hua. He is Devine and super power. Omnipresent Shiva give me this task to help people. We the citizens of India don't aware about our tradition, culture, Ved and Puran. So I get that idea that Indian should know what we have. New generation must be aware and knowledge full of their ancient stories and trends. Misconception are every where we need...
2021-09-20
14 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Mahotkat vinayak aur kashi naresh
Om Gan ganptye namah: . Namskar doston, kaise hain aap Sabhi. Sabka shubh ho aur jivan manglmay ho. Har Har mahadev. Aaj story hai ganesh janam ki. Jo sabne dekha suna aur padha hai. Ganpati name ki kahani aur ganesh ke Pratham Pujan ki kahani.yah bhi Sabko Pata hoga. Par jo Katha main hai wo hai mahotkat aur kashi ke Naresh ki. Mahotkat vinayak ganesh ke incarnation hai. Jo rishi Kasyup aur aditi ke Putra hai. Rishi Kasyap kashi Naresh ke Kul purohit hain. Kashi king Jate hai kasyap rishi ke pass kashi aane ka anurodh Karte hain. Kashi Naresh...
2021-09-10
22 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Chet singh cursed king of kashi..
Namskar mitron, hope you all doing good. Stay safe and healthy. Har Har mahadev. Today you are going to listen story of royal king of kashi. Chet singh ghat is one of kashi famous ghat. In past 'budwa mangal mela' was organized at this place. But now that replaced to dashaswamedh ghat for some specific reason. That ghat was part of shivala ghat before its renamed as chet singh ghat by king of kashi Prabhu Narayan singh in 20th century. Kashi was Jagir of awadh Naresh. Balwant singh was jagirdar of awadh dynasty. When balwant died in 1870 his elder son...
2021-09-07
20 min
कल थी काशी, आज है बनारस
अहिल्या बाई घाट: कहानी एक रानी की
Hello listeners and friends, kaise hain aap Sabhi. Mahadev Sabka Kalyan. Today your host banarasi presenting ghaton main ghat ahilya Bai ki kahani. When whole Northern India was ruled by mughals. Sanatan dharma destroyed and disappeared physically. demolition of temples and destruction of Indian native Kingdom through mughal ruler. comman man deprived from normal and happy life. There were no peace and harmony in any one life. People were threatened from attacks of authotorien mughal rulers and sardar. Few Indian Kingdom survive in this time. Bharat lives in village. As we know India is country of village. In this horrified...
2021-09-02
23 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी के 88 घाट के नाम और उससे जुड़ी कहानियां..
Namskar mitron, today we will go for kashi 88 ghat की mansik yatra. Believe me you can do it. According to my experience I am also not able to do this traveling by mind in beginning. But when I tried so many times what I come to knew that is possible. Yaa, it is possible. Just play a peaceful music concentrate on your mind and focus on your thoughts. Just stop thinking garbage and unnecessary things. Take long breath and start chanting om pranav मंत्र sound with breathing out. The whole focus of inner vision will be at middle of eye brose that called aagya C...
2021-08-28
14 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Mangla Gauri temple situated at ramghat in varanasi
Hello friends, namskar today story is about Maa Mangla Gauri temple situated at ramghat and near by panchganga ghat. Once upon a time Surya dev came Kashi. Take holy bath at panch Nad tirth know as panchganga ghat. That place now belongs lord Shiva and his wife Parvati. Surya start tenacity on Hindi its called tap' after so many years of Surya tap, his rays gets warm like fire. At the pick of his tenacity his body rays become like fire boll all creatures of earth became sculpture of stone. Then Shiva and Shakti came to this place Surya become...
2021-08-27
07 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी विश्वनाथ से पूर्व आयी विशालाक्षी देवी काशी में [शक्ति पीठ]
नमस्कार आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है बनारसी सिंह के पॉडकास्ट में. आज की कहानी विशालाक्षी देवी की. यह मंदिर काशी के अन्य मंदिरों से अधिक प्राचीन है. यह महादेव द्वारा स्थापित शक्ति पीठ है. यह शिव और शक्ति का एकाकार रुप है. शिव की पत्नी सती के आत्मदाह के बाद शिव जी उनके शव को लेकर ब्रम्हांड में रुदन कर इधर उधर भटक रहे थे. अपने देवत्व का त्याग कर दिया था. त्रिदेव टुट गया था. सृष्टि का निर्माण और रक्षण खतरे में था. देवता शक्ति हीन हो रहे थे. असुर शक्ति धरती पर अपना कब्जा जमा रही थी. सभी के निवेदन पर नारायण ने सुदर्शन को भेजा ताकि देवी सती के शव को शिव से अलग किया जाये. सभी भयभीत थे कि कहीं महादेव क्रोध में ब्रम्हांड को ही नष्ट ना कर दें. फिर भी श्री हरी ने अपराध बोध को दूर करने के लिए सती के शव को खंडीत किया. अब शिव सती के शव से भी हीन हो गये. इन पिंडों को पुनः एकत्र करने के लिए धरती पर आये. धरती पर भटकते रहे. भूखे प्यासे विरह में. सबको पहचानने से इनकार कर दिया था. नंदी को भी पहचान नहीं रहे थे. मानव वेदना के चरम पर थे. तब देवी आदि शक्ति सती के रुप में आयी समझाया कि आप त्रिकालदर्शी है सब जानते हैं फिर यह संताप क्यों. पुनः अपने देवत्व को आपनाये और इन पिंडों को एकत्र कर धरती पर स्वयं शक्ति पीठों का निर्माण करें जो अनंत काल तक मानव कल्याण का केंद्र रहेगा. यह शिव और शक्ति के मिलन और एकाकार रुप का प्रतीक होंगे. तब महादेव ने पुनः अपने जगत पिता रुप को धारण किया. सभी सप्तर्षि और देवता भी सहयोग में आये. इन पिंडों को स्पर्श कर महादेव ने जाग्रत किया अपनी शक्ति से और सभी 52 पीठों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कालभैरव को दिया. काशी स्थित विशालाक्षी देवी सती माता के शक्ति पीठ में से एक है जिसका निर्माण स्वयं महादेव ने किया. और कालभैरव को भक्तों और पीठ के सुरक्षा हेतु रखा. काशी में भविष्य में मेरा ज्योतिर्लिंग स्थापित होगा और यहाँ गंगा का अवतरण होगा यह भी बताया. इस प्रकार शक्ति पीठों का निर्माण स्वयं महादेव ने किया. विशालाक्षी देवी का मंदिर मीर घाट से उपर गली में गणपति गेस्ट हाउस के पास धर्मेश्वर महादेव मंदिर के समीप है. चैत्र माह और नवरात्रि में देवी की पूजा पंचमी को गौरी रुप में होती हैं. अन्य जानकारी के लिए पॉडकास्ट जरूर सुनें. हर हर महादेव... स्वस्थ रहे, दो गज दुरी का ध्यान रखें. वैक्सीन जरूर लगवाए. मास्क पहने, अपने और अपनों का ध्यान रखें. फिर मिलेंगे नयी कहानी के साथ. राधे राधे...
2021-08-20
33 min
कल थी काशी, आज है बनारस
भगवान के भक्त नंदी के जन्म ka उदेश्य, जो है shivansh
अभिनंदन मित्रों, आप सबको सावन के सोमवार की हार्दिक बधाई. आज की कहानी भक्त शिरोमणि नंदी जी की. जिनका जन्म ही शिव जी के सेवा के लिए हुआ. शिव की सवारी और सेवक के रुप में सब उनको जानते हैं. पर उनका जन्म एक कृषक के घर हुआ था. शिlaad नामक कृषक और साधक के घर में. शिलाद जी ने महादेव की आराधना कर शिव अंश रुप में पितृ इच्छा को पूरा करने के लिए बैल रुपी पुत्र की कामना की. महादेव की कृपा से उन्हें नंदी जी पुत्र रूप में प्राप्त हुए. शिलाद पुत्र रुप में शिवांश पाकर बहुत प्रसन्न थे. समय के साथ जब बालक बड़ा हुआ तो शिव की भक्ति में लीन रहने लगा. आठ वर्ष की आयु में माता पिता से आज्ञा लेकर हिमालय आ गये शिव जी की सेवा करने लगे. जब नंदी महाराज युवा हुए तब पिता महादेव के पास आये और नंदी के जन्म का उद्देश्य याद दिला कर नंदी जी को गृहस्थ जीवन से जोड़ने के लिए आग्रह कर अपने साथ ले गये. शिव जी ने समझा कर नंदी को घर भेजा दिया. अब नंदी जी घर जा कर उदास रहने लगे. भोजन त्याग दिया. केवल शिव नाम जपते. और हिमालय की ओर देखते रहते. एक मास के बाद पिता पुनः शिव जी के पास पहुंचे. प्रभु नंदी को वापस अपने शरण में ले लो. वो तो देह त्याग देगा अगर आप ने उसे स्वीकार नहीं किया. यहाँ महादेव भी अपने भक्त के बिना अधूरे थे. वो स्वयं नंदी को लेने उनके घर गये. नंदी जी शिव जी को देखकर अति प्रसन्न हुए पर कोध्रीत भी हुए. कि महादेव ने उनको पिता के साथ भेजा. अब महादेव ने नंदी जी को हिमालय चलने को कहा. और वर दिया. जो भी आपके कान में अपनी मनोकामना कहेगा वो मैं सुनकर उसे अवश्य पूर्ण करुंगा. तब से ही नंदी भक्त शिरोमणि बन गये. आगे की कहानी के लिए बनारसी सिंह के पॉडकास्ट सुने... हर हर महादेव..
2021-08-16
22 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Kashi ka नाग लोक, जानिए इस episodes में...
आप सभी मित्रों और स्वजनों को नागपंचमी पर्व की हार्दिक बधाई. आज काशी की कहानी में पाताल निवासी शिव और उनके भक्तों यानि नाग देवताओं के अस्तित्व और सनातन धर्म में उनके स्थान और छोटे गुरु और बड़े गुरु परंपरा के बारे में थोड़ी जानकारी मिलेगी इस कड़ी में. देखिए बचपन में हम त्योहार बस घूमने फिरने और खाने पीने का एक मौका मानते थे. है ना. पर कभी हमें यह नहीं बताया गया कि कोई पर्व और उत्सव का हमारे जीवन में क्या महत्व है. पर सभी हिन्दू पर्व एक गहरी सोच और जीवन ज्ञान को लेकर निर्मित किए गये हैं. यह मानव समाज में समानता, पोषण और सह- अस्तित्व की भावना को अंजाने में ही आदत बनाने का एक बेहतरीन कला है. अब नाग पंचमी में नाग देवता की पूजा करो. शिव के शरणागत हैं यह नाग देवता. मनुष्य ने इनसे धरती झीन लिया इसलिए सभी पाताल में रहते हैं. यह भोले भाले जीव है. पर मनुष्य कभी सपेरा बन के, कभी बाजार में मुनाफा कमाने के लिए, कभी सौंदर्य प्रसाधन के लिए, कभी दवा बनाने के लिए, इनका इतना शिकार करता है कि यह अपने अंत पर आ गये. पांडव जब हस्तीनापुर से निकाले गये तो खांडवप्रस्थ आये. यहाँ तकक्षक रहते थे अपने सर्पों के साथ. यही इंद्रप्रस्थ बना. और अब दिल्ली है. नागों को पाताल भेज दिया गया. इसी वंश में राजा परीक्षीत को तक्षक ने शाप वश डंसा. यह तक्षक का संकल्प भी था कि मैं पांडव कुल के नाश का कारण बनूं. फिर जनमेजय ने अपने पिता के मृत्यु का बदला लेने के लिए नाग यज्ञ किया ताकि पूरी धरती नाग हीन हो जाये. तो नाग और मानव की शत्रुता नयी है पर मित्रता और सह अस्तित्व का संबंध बहुत पुराना. काशी में नागवंशी राजाओं का शासन था. ऐसा स्कंध पुराण में लिखा गया है. नागवंशी राजा महाराजा हुए हैं पूरे भारत वर्ष में. नागवंश से हमारे महादेव और श्री हरि को अति प्रेम है. शेषनाग धरती को थामें हैं तो वासुकी ने समुद्र मंथन में रस्सी बनकर देवो को अमृत और धनधान्य प्रदान किया. कोई ब्रह्म लोक में रहता है तो कोई बैकुंठ में. कोई कैलाश पर. सृष्टि के सृजन में और निमार्ण में इनका भी महत्व रहा है. इस योगदान के लिए अगर नागों को पूजा जाये और उनको संरक्षित किया जाये. क्योंकि वो जीवन परंपरा की प्राचीन धरोहर हैं तो नागपंचमी अवश्य मनानी चाहिए. इससे कालसर्प दोष और पितृ दोष से मुक्ति मिलती हैं. सेवा और संरक्षण ही तो सनातन धर्म की परंपरा है. है ना. तो प्रेम से मनायी ये यह पर्व. हर हर महादेव.
2021-08-13
30 min
कल थी काशी, आज है बनारस
भगवान शिव को प्रिय है, बेल पत्र और एक लोटा जल, dhatura जाने इनका वैज्ञानिक प्रयोजन...
आज की कड़ी में घटना और जानकारी है मित्रों. यह केवल आरंभ है जानकारी और घटना का. मैं केवल माध्यम हूँ यह जानकारी और बातें आपतक पहुचाने की. प्रयास और प्रेरणा सब ईश्वर ने दी है. इसमें बहुत से लोगों का प्रयास और समय लगा है सभी को मैं आभार व्यक्त करती हूँ. आगे उनके नाम भी जरुर बताउंगी. खैर आज शिव नाम का अर्थ आप को बता रही. शिव पूजन में उपयोग होने वाली हर वस्तु की प्रकृति शीतल है. इसलिए यह शिव पूजन में उपयोग होती है. श्रावण माह में धरती की सुरक्षा और संचालन को तत्पर महादेव जो ब्रम्हांड की समस्त उर्जा का केंद्र हैं. उनकी विनाशक उर्जा से उपासक भस्म ना हो इसलिए उनके विग्रह को ज्योतिर्लिंगों में चार बार अलग अलग पदार्थ से पूजन होता है. जलाभिषेक, दुध, दही, शहद, घी और फूल, फल, बेल पत्र, धतूरा, भांग, सभी औषधि गुण वाली वस्तु चढायी जाती है. जिससे शांति और शीतलता का प्रवाह होता है ईश्वर की और. वही जो आप प्रेम भाव से समर्पित करते हो वो वापस कल्याण कारी उर्जा में आपको मिलता है. मेरे प्रबोधन काल में मैंने पढ़ा कि धर्म एक वो है जिसकी रक्षा के लिए श्री हरि विष्णु ने दस अवतार लिए. धर्म वो जो गीता में वर्णित है. धर्म वो जो एक जीवन जीने की प्रक्रिया है. वही धारण करने योग्य है. मैं धर्म पालन में विश्वास रखती हूँ. धार्मिक हूँ. पर मैं हिसंक नहीं हूँ. मै कट्टर नहीं हूँ. मैं संरक्षक हूँ. मै सनातनी हूँ. मैं मानव हूँ. यही मेरा धर्म है. मेरे भगवान और उनका आदेश और वेद मेरे लिए जीवन ज्ञान और मार्ग हैं. हम काशी वाशी हूँ. हमारा ईश्वर आदिवासी हूँ. आदिवासी मतलब जो आदि काल से है. जो आरंभ है. काशी में शिव शंकर है. जो हर किसी की शंका को, भय को, संशय को, अज्ञान को हर लेते हैं. सहनशीलता, धैर्य और विवेक ही हमारा धर्म है. यह हमारे ईश्वर का गुण है. तो पूरे विश्वास और प्रेम से बोलते रहीए हर हर महादेव....
2021-08-06
40 min
कल थी काशी, आज है बनारस
शीतला घाट पर पाकिस्तान से kaise आया शिवलिंग
सावन का महिना, पवन करे... शोर... जियरा रे ऐसे झूमे, जैसे मनवा नाचे मोर, यह गीता सबने सुना है और सुनते भी हैं. जब भी बारिश होती है. बादल से जल का बरसना मोर, धरती, किसान, प्यासे व्यक्ति के मन में, प्रकृति के आगन में शीतला भर देता है. है ना. मानव शरीर जो अंदर से रासायनिक ऊर्जा का केंद्र है, वह भी बारिश से आनंद और शीतलता पाता है. सावन में हवा ठंडी हो जाती है. शरीर का तापमान सामान्य होने लगता है. वरना जयेष्ठा माह में तो सूर्य देव की अति विकिरण ऊर्जा से पूरी धरती तप रही होती है. तब सागर का खारा जल बादल में भरा जा रहा होता है. दो महिने की अति गर्मी के बाद सावन में यह मेघ ना केवल धरती को जल से शीतल करते हैं बल्कि पूरी प्रकृति शीतल और मनोरम हो जाती है. सब कुछ धुला और साफ. यह मौसम जो परिवर्तन काल का प्रतीक है जो शीत को आने का मार्ग भी देता है. ऐसे मौसम में विषाणु, जीवाणु भी अति तीव्र गति से विकसित होते हैं. बीमारी का मौसम नहीं है पर अगर हम साफ सफाई का ध्यान नही देंगे. तो यही सावन रोगी माह भी बनता है. सनातन धर्म में हर नियम जो जीवन शैली का हिस्सा है सब वैज्ञानिक आधार पर बनाये गये हैं. हमारे देवी और देव सब जीवन और मरण के शक्ति को धारण करते हैं. शिव जो हर परमाणु में है. शक्ति उसी परमाणु का ऊर्जा रूप है. शिव और शक्ति एक है. शिव के बिना शक्ति और शक्ति बिना शिव अधूरे हैं. यह भी सब जानते हैं. पर मानते नहीं. तो मानो. शीतला देवी पर बनी फिल्म हम सब ने देखी है. है ना. पर बाजार और विज्ञान के अज्ञान ने हमारे मन और मष्तिष्क से यह सब मीटा दिया. पर यह यही है. हमारे जगने और नियम पर चलने का इंतजार कर रहा. आज कोरोना काल में सबने खुब हाथ धोया, खुब नहाये, खुब सफाई की, खुब प्रोटीन और काढ़ा पिया. क्या है यह सब वही जो सनातन धर्म और आयुर्वेद कहता है. जीवन शैली. मानव का शरीर भी विषाणु और जीवाणु से भरा पड़ा है पर वह हमें नुकसान नहीं पहुचाते. हम उनका घर है. पर कोई दुसरे देश का विषाणु जो अति चालु है दैत्य है. असुर है. वो आपके शरीर में आयेगा तो युद्ध होगा अंदर. शरीर का ताप बढेगा. जहाँ भी यह जगह पायेगा कमजोर वहाँ हमला करेगा. छुपेगा. संख्या बढायेगा फिर हमला करेगा. अगर हम जीवन शैली में नियम और अनुशासन का पालन करते हैं तो स्थिति पर पहले ही काबू पा लेते. पर नहीं, आंख, नाक, कान, बंद कर जी रहे हम. वास्तविक में मृत्यु का इंतजार कर रहे. शिव के हर होकर भी समझे नहीं. योगी यानि योग से जो सब साध ले. साधने के लिए नियमित आदत से इस साफ, सफाई, स्वच्छता को पालन करो. देखो को जीवाणु वायरस आपका बाल भी बाका नहीं कर पायेगा. इसके लिए अगर मानसिक बल आपको अपने देवी देवता को चरण वंदन से मिलता है तो हम सनातनी लोग अज्ञानी कैसे. खैर दशाश्वमेध घाट के पास है शीतला घाट. वहाँ है शक्ति के शीतला रुपी देवी का मंदिर. जो निरोगी काया की देवी हैं. सभी वायरस जनित, जीवाणु, जनित रोग, ज्वर, रक्त विकार, और त्वचा विकार को हरती हैं. नीम, हल्दी, बसोड़ा. यानि बासी भोजन एक दिन पुराना ही उनका प्रसाद है. यही है ब्रह्म जी द्वारा स्थापित शिव विग्रह, और पाकिस्तानी महादेव का मंदिर भी. यह महादेव पड़ोस से आए हैं. दो व्यापारी लाऐ इन्हें. हर शिवालय सा यहाँ भी बहुत श्रद्धा है भक्तों की. विश्वास और प्रेम सीमा में नहीं बंधता. आस्था एक भाव है. जो बहती नदी सा है अपने आराध्य से जा मिलता है किसी सागर सा. अब राम जी ने लंका में जाने से पूर्व शिव उपासना किया. तो शिव लिंग बनाया समुद्र किनारे. रामेश्वरम वही है. शिव और उनके भक्त पूरी दुनिया में हैं. काशी पर एक ही है. जो छोटा भारत है. छोटे भारत में अपने सहोदर भाई पाकिस्तान के लिए हमेशा स्नेह रहा है. स्नेह राज्य की सीमा से बंधा नहीं होता. बस होता है. आकाश सा. समान भाव सा. आगे और काशी में क्या क्या है जानने के लिए सुनिये, बनारसी सिंह को. सुनने के लिए एंकर, गूगल, आदि पर जाए और लिंक शेयर करें. जब आप सकारात्मक ऊर्जा को ज्ञान रुप में साझा करते हो तो क्या होता है... वो लौट कर आपके पास आता है और सब मै ही बताऊँ और कहानी चलती जाती है कल्याण की. सुनो, सुनाओ, शिव के गुण गाओं. बम भोले..
2021-08-05
26 min
कल थी काशी, आज है बनारस
दशाश्वमेध घाट और अद्भुत गंगा आरती
काशी के पंच तीर्थों में से एक है दशाश्वमेध घाट. काशी आए और गंगा नहीं नहाए... काशी आए और पान नहीं खाए. काशी आए और घाट पर आरती नहीं देखे, जैसे कयी वचन सुनने को मिलेंगे जो काशी के हर गली और मोहल्ला और घाट को महत्व देते हैं. पर काशी में जो बहता है वो विश्वास और मोक्ष वाली शांति आपको शहर के इस घाट वाले क्षेत्र में जरूर मिलेगी. कहानी उस घाट की जहाँ स्वयं धरती के रचयिता ब्रह्म ने दशाश्वमेध यज्ञ किऐ. जहाँ विष्णु सह परिवार रहे, जहाँ आना सौभाग्य समझा स्वयं शिव जी ने. ऐसे दिव्य स्थान काशी का मुख्य आकर्षण गंगा के घाटों का घाट दशाश्वमेध घाट है. वैसे हर घाट का अपनी कहानी और कथा है. पर जो काशी सा प्राचीन और बनारस सा नया है. जो जिंदा है जो चेतन है. वह है दशाश्वमेध घाट. जहाँ गंगा आरती अति विशेष और विशिष्टता के साथ परंपरा अनुसार हर दिन होती है. सनातन धर्म में नदी को माता का दर्जा दिया गया. यहाँ माँ की रोज आरती कर उस भाव को हर रोज व्यक्त किया जाता है. क्या देशी क्या विदेशों हर मनुष्य बस इस जगह आना चाहता है रुक जाना चाहता है. इस ठहराव में जो आनंद है उसे कोई फोन में कोई दिमाग में कोई यादों में सजों लेना चाहता है. पर हम सब सजोंते है एक दृश्य को पर इसके पीछे कितना कुछ घटता है हमारे मन में उसे बस मौन होकर अनुभव ही कर पाते हैं. जीते नहीं. जीना है तो रुकना पडे़गा. सीमा से परे जाकर. काशी एक अनुभव है जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता. बस यह एक जीवंत सत्य है. यही इसकी महत्व है. काशी के लोग उसे छोड़ नहीं पाते उन्हें पान का भांग का नशा नहीं. उन्हें ज्ञान का, विज्ञान का, शिव को बाबा कहने का नशा है. गंगा को मां कहकर उसके जल में घुल जाने का जुनून है. वो कहते हैं कि पैसा त खुब कमा लेब बहरे जा के लेकिन बाबा का सेवा करे खातिर इहे जनम कम पड़त हव. जवन मजा गमछा में हव उ कवनो और पोशाक में नाही. जवन मजा भोले के काम करे में हव उ मजा एसी वाला आफिस में नाही. काम भर बाबा दे देलन. अब कतो भटके के ना हा, अगर भटके के हव त काशी में भटकब बहरे नाही. दुनिया क कुल ज्ञान क केन्द्र हव बनारस. बस इहें जन्म स्थान ह, इहे मोक्ष देयी. खैर यह भाव काशी के लोगों का है. आप कुछ भी सोच सकते हैं. इहा के लोग मस्त रहेलन. जिंदगी में कुल समस्या क हल भोले से कहेलन. उहे इहां के राजा हवन. का समझ आइल. जाये दा. जवन समझ में आ जाये उ बनारस थोडे़ हव. हर हर महादेव. बम बम बोल रहा है काशी. सावन में गंगा जी में अति विस्तार होता है. पर भक्ति में डुबी रहती है. काशी. जैसे गर्मी, बारिश, सर्दी सब मौसम आता है और जाता है पर काशी में बाबा की भक्ति का कोई मौसम नहीं. बस एक लोटा पानी, चंदन, फूल, और गमछा पहने काशी के लोग मिल जायेंगे. बाबा को नहलाते हुए. जहाँ ईश्वर की आराधना आदत हो, वही तो काशी है. सुबह शाम की पैलगी, इहाँ परंपरा नहीं है शौख है, आशा है. जैसे घर से निकलने से पहले मां बाबा का आशीर्वाद जरूरी है वैसे ही बाबा के दरबार में सर झुकाना भी उतना ही जरुरी है. बस ऐसा ही है काशी.
2021-08-02
22 min
कल थी काशी, आज है बनारस
दक्षिण वासी सरस्वती कैसे बने तेलंग स्वामी, जिनसे मिल रामकृष्ण परमहंस बोल गए ये बात..
जिसके जन्म से चमत्कार जुड़े हों. जो स्वयं चमत्कार करते थे. जो वैरागी और साधक थे. जिन्हें योगी शिव का अवतार कहा गया. जो शिव का अंश थे. जिसने साधना को जीवन बना लिया. जिसने मौन भाव से काशी को पावन किया. जिससे मिला रामकृष्ण परमहंस भावुक हो गये. आये थे शिव दर्शन को मिलकर एक वैरागी से तृप्त हो गये. बोले यह ही काशी के विश्वेशवर महादेव हैं. जिसे काशी के लोग चलते फिरते काशी विश्वनाथ कहते थे. जी हाँ तैलंग स्वामी नाम था उनका. जिनका मठ पंचगंगा घाट पर आज भी है. जिसने नर्मदा में दुध की नदी बहा दी. जिसने काशी नरेश को ज्ञान दिया. जिसने कोढ़ी को काया दिया और मृत को जीवन. जिसने विषपान किया और फिर भी 280 की आयु में जल समाधि ली. ऐसे तैलंग स्वामी जो योग और आध्यात्म के चरम पर थे. जो लाहिड़ी जी जैसे विद्वान के मित्र और प्रसंशक थे. जिनको छुने मात्र से किसी का जीर्ण रोग दुर हुआ. जिसमें शिव ने ज्वाला रुप में प्रवेश किया वह है तैलंग स्वामी. जिसने 78 की उम्र में दिक्षा लिया. जो एकांत में ही प्रसन्न रहते. भोजन नहीं करते तब भी विशालकाय काया वाले स्वामी गणपति सरस्वती कहें या तैलंग स्वामी. और बहुत कुछ है जानने को तो सुनिए सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा की 1000 कहानियाँ. बनारसी सिंह के पॉडकास्ट पर. एंकर और गूगल आदि पर पढ़ा और सुना जा सकता हैं मुझे. एक नई परंपरा बना रही मैं अपनी जड़ो की तलाश में हूँ. हम में से हर कोई जब भी कहीं कभी एकांत में होता है तो मन से एक प्रश्न उठता है जहन में कौन हूँ मैं क्यों हूँ मैं क्या हूँ मैं. यहीं से एक यात्रा आरंभ होती है नयी नहीं पुरानी पहचान की. बस हमें याद नहीं होता. माया के परे एक जहाँ और भी है जहाँ केवल आप है मैं हूँ. हम है. वही हमारा घर है यह तो सराय है कुछ समय ठीकना है फिर वापस वही जाना है. हम एड देखते हैं और बिना सोचे कोई भी वस्तु चाहे उपयोगी हो या नहीं बस खरीद लाते हैं. क्योंकि हमें प्रभावित किया जाता है धीरे धीरे आवाज और चित्रों द्वारा. ठीक वैसे ही हमारी सोच और आत्मा को दो सौ साल की गुलामी ने मार दिया है. हमें लगता है बड़े हो जाओ, अच्छे नंबर पाओ, नौकरी करो, शादी करो, बच्चे करो, फिर पालो और मर जाओ. अगर परिवर्तन ही जीवन है तो मृत्यु से भयभीत क्यों होते हैं हम. इतना डरा रखा है भगवान के नाम पर धर्म ने, संस्कार के नाम पर समाज ने, असफलता को जीवन का अंत और सफलता को जीवन का लक्ष्य किसने बनाया. समाज ने. समाज कौन वो चार लोग जो कभी खुश नहीं रहे, जिसने जीवन जीया नहीं, जो सफलता से बहुत दूर हैं. ऐसे चार लोगो को फालो मत करो. जो करना है करो. बस एक बार यह सोच लेना इससे कितनो का भला और कितनो का नुकसान होगा. हमें लगता है कि जीवन हमारा है नही हम सब जुड़े हैं एक ही ईश्वर से और तार से. जो भी करो उसमें खुशी मिले तो जरूर करो. पर किसी को दुख देकर नहीं. सहयोग करो, प्रेम करो, मिलजुल रहो. यही जीवन का मूल है. प्यार बांटते चलो. ज्ञान बांटते चलो. शुद्ध मन से दान दो. ध्यान करो. स्वयं से बात करो लोग पागल बोलेंगे बोलने दो. आत्मज्ञान कहीं बाहर नहीं हमारे भीतर है. बस मौन और ध्यान से इसे स्पर्श किया जा सकता है. खैर यह मेरे विचार है. जितने महापुरुष को पढा़ सबके ज्ञान का सार. आप भी सुनो और समझो. कौन हो आप. क्या हो आप. कहाँ हो, कब से हो, क्यो हो, इससे पहले कहाँ थे. यही मार्ग है आत्मज्ञान का. बहुत ज्ञान दे दिए. अब बस बाकी महादेव देंगे ज्ञान. हर हर महादेव.
2021-07-28
25 min
कल थी काशी, आज है बनारस
संत रविदास पार्क और संत रैदास की कहानी...वाह क्या संदेश दिया उन्होंने सुनिए...
सनातन धर्म का जन्म पता है आपको. नहीं. मुझे भी नहीं पता. मृत्यु का पता है. मुझे नहीं पता. क्या हम अपने जन्म और मृत्यु से परिचित हैं. नहीं. किसी ने या माता पिता ने हमें बताया कि हम उनके कुल में जन्में. वो किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय के हो सकते हैं. हैं ना. पर एक जीव का पुनर्जन्म तब होता है जब वो गुरु से मिलता है. उसे ज्ञान होता है अपने अस्तित्व का. तब उसमें ईश्वर को जानने की इच्छा का जन्म होता है. जिज्ञासा तो गुरु ही देता है. वह गुरु आपको सत्य असत्य दोनों बताता है आप पर छोड़ देता है कि अब राह तुम्हारी है चलो और वो पा लो जिसकी तुम्हे अभिलाषा है. इसलिए कबीर गुरु को गोविन्द से बड़ा बताते हैं. इसलिए रविदास गुरु के ज्ञान से स्वयं को पानी और ईश्वर को चंद बताते हैं. ईश्वर तो एक ही है बस उसके अनेक नाम और रुप भी भिन्न-2 है. इसी तरह मनुष्य का भी अलग अलग वर्ग और जाति में जन्म होता है पर उसकी असली पहचान उसके मानवीय गुण है. जैसे धैर्य, सहनशीलता है, विनम्रता है. सहयोग, सदाचार है. इन्ही गुणों को अपने अंदर सजोने के लिए मनुष्य किसी भी कुल में जन्म लेकर जीवन यात्रा में वहाँ पहुचने का प्रयत्न करता है जो उसकी पहचान है. सनातन धर्म यही तो सिखाता है. सहनशीलता, सदाचार, धैर्य, ज्ञान, सहयोग, प्रेम, सह अस्तित्व, उपकार. यह सब धारण कर आज भी कोई मनुष्य ईश्वर तुल्य हो सकता है. है ना. यही ज्ञान और उपहार है संत रविदास का मानव समाज को और उनकी प्रिय नगरी काशी को. उन्होंने ईश्वर के निराकार रुप की उपासना की. शरीर से वह कर्म किया जिसमें जन्मे पर मन और आत्मा के स्तर पर वो संत बन गये. सरल, सहज, सत्य के समान. आज की कहानी यही तक. अगली कहानी किसी और व्यक्ति, स्थान, और घटना पर. जिसकी आज भी महत्व हो. हर हर महादेव.
2021-07-27
20 min
कल थी काशी, आज है बनारस
सावन में शिव पूजा की कहानी और काशी विश्वनाथ केलिए सावन महीने का महत्व
नमस्कार मित्रों आप सभी को सावन के पावन माह की बहुत बहुत शुभकामनाएं. महादेव सबकी रक्षा करें और स्वास्थ्य लाभ दें. आप सभी अपना और अपने परिवार का ध्यान रखें. आपकी वाचक बनारसी सिंह लेकर आयी है आप सभी के लिए सावन महिने से जुड़ी कुछ पौराणिक और स्मृति आधारित कथाएँ. क्या हैं यह कहानियाँ जानने के लिए मेरे द्वारा संचालित पॉडकास्ट को जरूर सुने. सनातन शहर काशी के बनारस बनने की इस अद्भुत यात्रा में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है. आज से एक दो दिन पहले पूर्णिमा थी. उससे पूर्व देवशयनी एकादशी थी. इस दिन से देव दिवाली तक चार मास के लिए विष्णु जी विश्राम करते हैं. इसे चौमासा कहते हैं. यह साधु संतों और शैव पंथ के साथ सभी हिन्दू और सनातनी लोगों के लिए बहुत खास समय होता है. इसे वैदिक यज्ञ कहा जाता है. यह एक पौराणिक व्रत है जिसमें शिव जी को पालनहार का काम करना होता है इस चौमासा माह में. इसकी शुरुआत सावन में होती है. सावन वैसे तो 25 जुलाई से आरम्भ है. पर आज सावन का पहला सोमवार है. इस दिन से सभी शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. कावड़ यात्रा का पूरे उत्तर भारत में बहुत प्रचलन है. इस बार यह यात्रा स्थगित है पर हर बार हजारों की संख्या में शिव भक्त कावड़ लेकर भोले बाबा का जलाभिषेक करने लंबी यात्रा करते हैं. बारह ज्योतिर्लिंगों में जाकर अपने व्रत के संकल्प अनुसार जलाभिषेक करते हैं. यह पदयात्रा होती है. अब तो लोग गाड़ी और अन्य साधनों का उपयोग करते हैं पर पहले यह पैदल यात्रा होती थी. कहते हैं सदाशिव धरती में व्यापत जल का स्त्रोत हैं इसलिए उनको जलाभिषेक इस माह में करना फलदायी है. बाबा जल्दी प्रसन्न होते हैं. एक कथा ऐसी है कि बाबा धरती पर इस दिन आये और अपने ससुराल गये वहां उनका स्वागत जलाभिषेक और अर्घ्य देकर किया गया तब से यही मान्यता हैं कि इस समय में ज्ञ शिव जी धरती पर होते हैं. उनको जलाभिषेक कर भक्त अपनी श्रद्धा व्यक्त कर उन्हें जल्द प्रसन्न कर सकता है. अन्य भी बड़ी ही अदभुत कहानियाँ हैं सावन से जुड़ी. सावन के चार सोमवार में व्रती उपवास कर शिव मय होने का प्रयास करते हैं. शिव से जो भी मिला उन्हें सप्रेम समर्पण कर उनसे कृपा पाने का भरसक प्रयास करते हैं. काशी में यह पर्व रोज ही मनता है पर सावन में काशी पूर्णतः शिव पुरी बन जाता है. सभी उनके बच्चे पिता को सुबह शाम आभार करते हैं. गंगा जल ले जाकर अभिषेक करते हैं. मंगला आरती से रात्रि के शयन आरती तक शिव जी भक्तो को बस सुनते रहते हैं. कोई बाबा को धन्यवाद कहता है. कोई अपना दुख कहता है कोई रक्षक बनने की मांग करता है. यहाँ बाबा अपने बारह रुपों में विराजमान होकर हर काशी वाशी का न्याय करते हैं. काशी का हर कण शिव है और शिव हर कण में हैं. यह अनुभव आपको अकस्मात हो जाता है. ऐसी देव प्रिय काशी में बसने के लिए शिव जी को भी एक संघर्ष करना पड़ा था कभी वो कहानी कभी और. पर जिसकी रमणीय और प्रकृति पर स्वयं शिव मोहित होन ऐसी काशी में कौन नहीं आना चाहेगा. काशी विश्वनाथ मे बाबा वामांगी होकर शक्ति के साथ विराजते हैं. यह गृहस्थ शंकर और पार्वती की नगरी काशी है. जहाँ सावन कभी खत्म नहीं होता. बस हर दिन रात्रि शिव रात्रि और दिन सावन है. सावन के माह में बाबा की पूजा नहीं किया तो क्या किया. कबीर दास जी कहते हैं ना कि पांच पहन काम किया, तीन पहर सोय के खोये, एक पहर भी ईश्वर को नहीं भजा तो भवसागर पार कैसे होगा. तो ॐ नमः शिवाय बोलते रहिए. बाबा सब ठीक कर देंगे. दुनिया की रक्षा के लिए जिसने हलाहल पिया वो अपने भक्तों को तारेगा नहीं. असंभव है. शिव जी के लिए सब संभव है. वो कुछ नहीं होकर भी सब कुछ हैं. ऐसे महादेव को मेरा प्रणाम है. फिर मिलेंगे एक नयी कहानी के साथ बहुत जल्द नमः पार्वती पतये हर हर महादेव...!
2021-07-26
26 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Sant कबीर की कहानी और काशी से उनका judaav..
हमारे बचपन में हिंदी साहित्य में और नीति की क्लास में एक कवि बहुत विख्यात थे. जो पढ़ने और समझने में अति सरल थे. चंद शब्दों में गहरी बात कहना उनकी कला थी. जी हाँ आज की कहानी के मुख्य पात्र वही कवि वर हैं जो संत हैं. अगर आप ललित कला में पारंगत हैं तो आप समय के साथ बहते रहते हैं प्रेरणा स्रोत बन कर लोगों में. जन कवि कबीर दास. जो जन्म से ही विपत्ति के शिकार थे पर उन्होंने विपत्तियों का हरा कर ईश्वर को पाया. गुरु को पाया. गुरु ने उनको ईश्वर तक पहुंचाया. ईश्वर से मिलकर वो संत बन गये. संत जो समाज, पंथ और अनीति से परे एक ऐसा उदाहरण जो पारस बन गया जिसे छुकर आप सोना बन जाना चाहते हो. हां एक मौलीक गुरु. जो अपने वचन से आपको ऐसे मार्ग दिखाते हैं जो है पर दिखता नहीं. जीवन को जीने योग्य बनाते हैं. वही हैं कबीर संत. मित्रों मैं कबीर दास की बात कर रही कबीर सिंह की नहीं. प्रार्थना है गुरु सोच समझ कर चुनें. खैर यह एक मजाक था.. जीवन आपका है चुनाव भी आपका ही होगा. बस परिणाम वही होंगे जैसा मार्ग आप चुनते हो. तो सतमार्ग पर चले, थोड़ा टेड़ा है पर आनंद वही है. नदी सा निरंतर बहते रहिये. मन और आत्मा शुद्ध रहेगी. जो कार्य कर के मन खिल उठे वही करीये सहज भाव से. गलत का विरोध करीऐ. मौन को धारण कर ज्ञान की गंगा में डुबो जाइए फिर देखीऐ सब कुछ सहज और सरल है. हर एक व्यक्ति का जीवन प्रेरणा स्रोत है. बस उसको जानने और समझने की जरूरत है. ध्यान देने की जरूरत है. ध्यान आएगा योग से. योग से ही सब कुछ संभव है. यह योग जीवन शैली है जैसे भोजन करना, सांस लेना, आदि. बस इसे अपनाना है और जुड़ जाना है एक असीम कृपा से. वही ईश्वर है. वही गुरु हैं. वही ज्ञान का आधार है. हर हर महादेव.
2021-07-24
20 min
कल थी काशी, आज है बनारस
राम भक्त संत रामानंद की अनन्य भक्ति की कहानी और सिख..
जात-पात पुछे ना कोई हरि को भजे सो हरि का होई' यह एक आंदोलन का नारा है जिससे पंचगंगा घाट से संत रामानंद जी ने दिया. उन्होंने राम भक्ति की सगुण और निर्गुण धारा को समान रुप से प्रचलित और प्रसारित किया. उसे जनजन तक पहुँचाया. उनसे जुड़ी एक किंवदंती है - द्रविड़ भक्ति उपजौ लायो रामानंद' रामानंद जी ने अपने समाज में व्याप्त हर कुरीति और विसंगति पर प्रश्न चिन्ह लगाया और उसे बदलने का मार्ग बताया. श्रीमठ जो पंचगंगा घाट पर है वो रामानंद जी की सहिष्णु और भक्ति आंदोलन का आरंभ बिंदु है. सनातन धर्म को सभी के लिए सुलभ और सरल करने का बहुत सार्थक प्रयास है. श्री राम राज्य की आधार नीति है. यह घाट इतिहास का संग्रह स्थल है. यहाँ रमण और स्नान यात्रा से मन की दुविधा दुर हो जाती है. यह घाट सनातन धर्म के सहिष्णु और मानवीय मूल्यों को धारण करता है. तभी तो यहाँ बिस्मिल्ला खां को हनुमान जी मिलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं. कबीर जो मुस्लिम हैं पर हिन्दू गुरु से ज्ञान लेते हैं. और मुगल शासक को धर्म का मर्म समझाते हैं. धर्म जिसे आप मूर्ति पूजा और कर्मकांड तक ही सीमित समझते हैं वह धर्म का एक बहुत छोटा रुप है. धर्म है कर्म का सहयोगी, जीवन की एक कला, जो समय के साथ अपना रंग और रुप बदलती है पर उसका मर्म सदैव सभी का कल्याण होता है. सनातन धर्म का प्रतीक वाक्य वसुधैव कुटुबं कम् सदा से है. हम सनातनी सदा ही सभी के कल्याण में अपना कल्याण समझते हैं. तभी तो हजार वर्षों की गुलामी भी हमारे संस्कार और संस्कृति और सभ्यता को नष्ट नहीं कर पायी. हम सदा से थे और सदा रहेंगे सनातन समय के साथ और समय के बाद भी. हर हर महादेव.
2021-07-22
14 min
कल थी काशी, आज है बनारस
बिस्मिल्लाह खान को काशी ke पंचगंगा घाट पर मिला वो संत जिसने कहीं उनके भविष्य की कहानी
पंचगंगा घाट है एक जो स्थित है गंगा किनारे. कांची पुरम है यह काशी का. शिव के आराध्य हरि का धाम. पूर्वजों को दिखाता है यह रोशनी का मार्ग. कबीर, तुलसी, रामानंद और तैलंग स्वामी के जीवन चिंह लिए बैठा है यह. राम भक्ति की निर्मल धारा का प्रतीक है यह. बालाजी और राम का स्थान है. हिंदू मुस्लिम परंपरा का जीवंत प्रमाण है. पंचनद तीर्थ है एक और हिंदू के लिए तो दूसरी ओर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की इबादत और कला के अभ्यास का स्थान है. हरि के द्वार पर श्रद्धा सुमन और समर्पण ही पूजा और इबादत है इसका प्रमाण है यह घाट. यह बनारस नाम सा रस से भरा और अद्भुत रुमानियत वाला स्थान है. बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का काशी के द्वार पर. आइए और काशी के ठाठ का मज़ा लिजीए इसके मनोरम घाटों पर. जाने अंजाने आपके तार जुड़ जाने हैं. यह आध्यात्म और ज्ञान की नगरी काशी है. यह संगीत और बनारसी घराने की नगरी काशी है. यह यह कचोड़ी, जलेबी और आम की नगरी काशी है. यह हिंदू और मुस्लिम सोहार्द की नगरी काशी है. कहते हम खुद को बनारसी हैं पर मन में बहती काशी है. यह चिंता से मुक्त करने वाली काशी है. यह मोक्षयिस्यामि देव नगरी काशी है. इहाँ हर के हुं गुरु हव. काहे कि गुरु शिष्य परंपरा के उदगम स्थान काशी हव. ज्ञान, विज्ञान, तंत्र-मंत्र, कर्मकांड, अध्यात्म, वैराग्य, जीवन- मृत्यु का संगम काशी है. पर हम सब बनारसी हैं. काहे कि बनारसी होवे में भौकाल हव. बनारसी पन इहाँ एटीट्यूड हव. काशी चरित्र ह. सब कुछ बड़ा विचित्र हव. पर इहे काशी क चरित्र है. कुछ समझे नहीं... हम दिल में आते हैं समझ में नहीं... समझो नहीं बस स्वीकार करो... समझने के लिए काशी आना पड़ेगा यहाँ आकर गंगा नहाना पडेगा, सुबह कचोड़ी जलेबी और संझा को समोसा और लवंगलता खाना पडेगा, तब जाकर समझोगे क्या है बनारस उर्फ काशी... सबकी आती नहीं हमारी जाती नहीं... अकड़... हर हर महादेव... सुनीए और सुनाईए जिंदगी बनायीए कभी दिल करे तो काशी हो आईए... जिंदा है यह शहर दिल से... जय हो...
2021-07-19
23 min
From Nothing to Something
Finding Passion | Krishan Agrawal | Prakhar Singh | @Banarasi_ceo
“Passion is energy. Feel the power that comes from focusing on what excites you." As promised we are here with the first session of the interview series "From Nothing To Something" , In this session you'll learn about "Finding Passion " by a great mind Mr Krishan Agarwal (Founder & CEO: @anterprerna)
2021-07-17
13 min
From Nothing to Something
Believing in yourself | From nothing to something | Prince Gupta | Prakhar singh | @banarasi_ceo
This is episode 4th of the "From Nothing To Something" series called "Believing in yourself," for this session, we have invited @prince Founder and CEO MLVolt. In this session, he talks about his journey from a college dropout guy to a successful entrepreneur, so dive into the video for much more.
2021-07-17
27 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी के नए नाम वाराणसी और उसके नामकरण की प्राचीन कहानी, varuna और अस्सी नदी
ओह रे ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना, यह गीत आज से पचास वर्ष पूर्व गाय मुकेश जी ने. हमारी पीढ़ी जो नब्बे के दशक में धरती पर अवतरित हुई उसको सौभाग्य से ताल, नदी, तलैया, झील, तालाब पोखरा, समुद्र, देखने और जीने का अवसर मिला. ईश्वर और अपने पूर्वजों को इस उपहार के लिए मैं धन्यवाद देती हूँ. पर हम क्या देकर जायेंगे आने वाली पीढ़ी को यह सोच कर घबरा जाती हूँ. कोरोना, ग्लोबल वार्मिंग, जलती धरती, जंगल विहीन समाज, सोच कर इतना भय लगता है अगर यह आने वाले समय का सच हुआ तो बाप रे... हमारी पीढ़ी न ही बहुत बुजुर्ग हुई है ना ही युवा अवस्था में है. हम सब आधी उम्र इस सुन्दर धरती पर जी चुके हैं अब हमारे पास सूचना और ज्ञान है हमारे वातावरण और समाज और देशकाल का. तो समय कि मांग यह है मित्रों अपने बच्चों और उनके बच्चों को कुछ बेहतर माहौल और समाज और संसार देने का. है ना. आप सब भी यही सोचते हो. पर समय सोचने का नहीं यह समय है प्रयास और संगठीत होकर बेहतर संसार और जीवन के लिए कुछ योजना बद्ध ढ़ग से काम करने का. काम है वृक्ष लगाना, काम है जल के लिए नदियों और तालों का संरक्षण करना, जमीन का संरक्षण, हवा को स्वच्छ रखने के लिए योजना बनाना. और काम में लग जाने का. सोचने में आधा जीवन बीत चुका है. आप ने जो गीत सुना ओह रे ताल मिले नदी के जल में यह कहानी अगर आप भी अपने बच्चों को सुनाना चाहते हो तो उठ जाओ, जागो निंद से, सरकार और प्रशासन केवल योजना बनाती है पर काम तो हमें ही करना है. इस धरा से जो लिया है वो देने का समय है. उठो, चलो, और तब तक नहीं रुकना जबतक यह एक संस्कार न बन जाये लोग यह आदत ना बना ले कि जो पाया है उसे सूद समेत लौटाना भी है. धरती को फिर से रहने योग्य बनाना है. अपनी जड़ो से फिर जुड़ जाना है. अगर हमने यह कदम नहीं उठाया तो क्या कहुँ आप सब जानते हैं. खैर आज की कहानी एक ताल से निकली नदी की जिसके नाम पर काशी का एक नाम वाराणसी है. वाराणसी एक जिला है उत्तर प्रदेश का. जिसकी सीमा वरुणा और अस्सी नदी बनाती थी कभी. अब यह केवल नाम है. इस वरुणा का जन्म फूलपुर गांव में एक झील से होता है. यह नदी वाराणसी में आने के पहले वसुही सहायक मौसमी नदी से मिलती है. वसुही से मिलकर वरुणा विषधर के बिष को हरने वाली बन जाती है. यानि वरुणा के जल में एंटी डोट है आज की भाषा में. है ना. पर क्या फायदा वरुणा पाप हरना,काशी पाप नाशी, कहावत को काशी के जनता ने इतना गंभीरता से लिया कि वरुणा नदी से नाला बन गयी. अतिक्रमण और सीवेज के पानी से नदी जल का स्त्रोत नहीं, बिमारी का घर बन गयी. इस कलयुग में इतना अंधकार है कि लोग बस अपने भोजन, सांस की चिंता में मरे जा रहे. उपयोगिता वाद और संसाधन का दोहन चरम पर है. पंचतत्व जो मानव जीवन का आधार है मानव उसे ही शोषक की भाती चूस रहा. आदि केशव घाट और वरुणा की जन्म कथा यही तक. आगे की कड़ी में और भी सच से पर्दे उठेंगे. यह तो अभी आगाज है.. अंजाम आना बाकी है. अपने मित्र बनारसी सिंह का होसला आफजाई जरूर करें. कहानी सुनाने के लिए. आपके सुझाव और प्रोत्साहन का इंतजार रहेंगा. हर हर महादेव.
2021-07-16
12 min
कल थी काशी, आज है बनारस
84 घाटों मे काशी ke उत्तर में स्थित, आदि केशव घाट और मंदिर ki आनंद दायी कहानी
काशी दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ है. हिंदुओं के लिए. एक अति प्राचीन और अमरत्व का गुण रखने वाले इस दिव्य अमर पुरी नगरी काशी में भी पांच महत्वपूर्ण तीर्थ हैं जिनके भ्रमण और दर्शन से काशी की तीर्थ यात्रा पूर्ण हो जाती है. आज की कहानी एक ऐसे घाट की जो संगम स्थान है और जहाँ श्री हरि विष्णु ने स्नान किया. अपनी भर्या और मित्र वरुण के साथ श्री हरि काशी की यात्रा पर आये. यहाँ आने का प्रयोजन यही था कि यह काशी जो स्वर्ग का प्रकाश रुप है वो ज्ञान और धर्म के प्रकाश को भी अपने अंदर समेट सके. विष्णु जी ने काशी के जिस संगम स्थल पर अपने मंगलमय पग पखारे यानि धोये वह संगम था वरुणा और गंगा का संगम स्थल. जिसे तब 'पादोदक' नाम मिला. यहाँ पर श्री हरि ने लक्ष्मी जी के साथ रमण किया. फिर श्री हरि ने इस घाट पर एक मूर्ति का निर्माण किया. और उसकी प्राणप्रतिष्ठा की. यहीं घाट 11 वीं सदी में गहड़वाल राजाओं का आस्था स्थल रहा. इसे वो वेदस्व घाट कहते थे. आज इसे आदि केशव घाट कहते हैं. यह पूर्णतः श्री हरि को समर्पित घाट हैं. 1780 में मराठा राजवंश के राजा सिंधिया के दिवान ने इसको पुनः निर्माण कराया. यह अति प्राचीन और दिव्य घाट पर अब बन रहा वरुणा कोरिडोर. ताकि इसके महत्व को जनता और लोगों में पुनः स्थापित किया जा सके. लखनऊ की गोमती नदी की तरह वरुणा नदी को पुनः संरक्षित और साफ करने का प्रयास जारी है. काशी के बदलते स्वरूप में इस घटा का रुप भी बदलेगा. पर इसकी पहचान श्री हरि से जुड़ी रहेगी. आदि केशव पेरुमाल मंदिर और ज्ञान केशव रुप में भगवन सबको ज्ञान और धर्म पथ पर चलने का मार्ग बताते रहेंगे. लोग यहाँ श्रद्धा सुमन और पाप को त्याग करने सदी के अंत तक आते रहेंगे. ईश्वर में आस्था बनी रहेगी. सदमार्ग और सरल जीवन का ज्ञान इस काशी से पूरे विश्व में बहता रहेगा. जीवन दायनी नदियों को ईश्वर केवल भारत में ही कहा जाता हैं. नदियों को मां सा सम्मान केवल भारत और काशी ही देता है. क्योंकि हमारे पूर्वज जानते थे कि नदियाँ ही मानव जीवन का स्त्रोत हैं. अन्न, जल, जीवन सब इन नदियों से मिलता है. इसलिए काशी के घाट आज भी हर दिन इन नदियों को श्रद्धा सुमन और पूजन कर धन्यवाद कहते हैं. यह घाट जिनपर ना जाने कितने जीवन और युग बीत गये यहाँ आना और उन चिंहो को निहारना अदभुत एहसास देता है. काशी की हवा में भक्ति का नशा है. जो भांग सा चढ़ता. जहाँ पर दिमाग शुन्य में विलीन हो जाता है. काशी तर्क पर नहीं तजुर्बा पर चलती है. काशी कला और विज्ञान की जन्मभूमि है. यहाँ से विज्ञान जनमा है. यह विज्ञान जो तथ्यों पर चलता है उसके जन्म के तथ्य उड़ते हैं काशी में. गणित और विज्ञान को जन्म देने वाली नगरी काशी को बारंबार प्रणाम है. इस काशी के रचनाकार को दंडवत् प्रणाम है. गंगा और उनकी सहायक नदियों को प्रणाम है. काशी ज्ञान की गंगा हैं लोग मन भर कर आते हैं और ज्ञान के पारस को देख कर महसूस कर बस पगला जाते हैं. उनके शब्द इसकी व्याख्या नहीं कर पाते इसलिए बस भोले भोले चिलाते हैं. जोर से दिल खोल कर बोलिये नम: पार्वती पतये हर हर महादेव... ॐ शांति...
2021-07-15
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Lolark कुंड की कहानी जहाँ लगता है सन्तान प्राप्ति के लिए लखा मेला
को नहीं जानत हैं कपि संकटमोचन नाम तिहारो.... संकट मोचन मंदिर में जब आप सुबह और शाम जाते हैं तब यह संकट मोचन हनुमाष्टक आप सुनते हैं जो संत तुलसी ने अपने प्रिय प्रभु हनुमान जी के लिए लिखा. संकटमोचन नाम जरूर श्री राम ने दिया हनुमान जी को पर उसे जग में अमर किया गोस्वामी तुलसीदास ने. तुलसी दास जी ने जो सेवा की श्री राम और हनुमान जी की उसी भक्ति से वो काशी का एक घाट बन कर अमर पुरी काशी और संसार में अमर हो गये. उनकी रचनाओं ने उनकी बुद्धि ने उनको अमर कर दिया. मानव शरीर और जीवन से जुड़े सब भाव और सुख दुःख सह कर भी रामबोला नामक बच्चा ईश्वर को पाकर कैसे तुलसी दास से गोस्वामी तुलसीदास बन गया. इतना धैर्य और इतना विश्वास केवल एक भक्त में ही हो सकता है. जो अपने आराध्य को खुद तक खींच लाये. फिर वही होता है जो तुलसीदास जी के साथ हुआ. यह रथयात्रा का समय है जहाँ असि घाट पर जगन्नाथ मंदिर में यात्रा के बाद मेला लगा होगा, वही तुलसी घाट पर श्री कृष्ण जन्म उत्सव के लिए लखी मेला और नाग नथैया के आयोजन की तैयारी चल रही होगी. मैनें कहा था यह शहर बनारस है जो आत्मा से काशी है. हर दिन यहाँ उत्सव है. यह महाश्मशान वाशी शिव बाबा की काशी है. यहाँ जीवन में आनंद है. और मृत्यु अमरता प्रदान करती है तभी तो तुलसी जी आज बाबा धाम में चार सौ साल बाद भी जीवित हैं. इसलिए बाबू मोसाय जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए. कर्म प्रधान है. कर्ता को अमर कर देता है. कोरोना काल में मेले लगेंगे पर हर किसी को मिलकर इस कोरोना से लड़ना और हराना है. यही तो सीख है जीवन से हमें मिलती कि चार दिन की जिंदगी है सुबह शाम बस बाबा का नाम ले और मौज में गुजार दो. किसी को मदद कर दो किसी से मदद ले लो. क्या लेके आये थे क्या लेकर जाना है जो लिया यही से लिया सब यही छोड़ जाना है, इसलिए तो बनारस में लोग गमछा में खुश. चार कचोड़ी और सो ग्राम जलेबी सट से उतार के मगही पान चबा के अपनी धुन में खुश रहते हैं. क्योंकि यहाँ महादेव सबका ध्यान रखते हैं. अन्ना पूर्णा माई सबका पेट भर देती हैं भैरो बाबा सबका दुरूस्त रखते हैं, दुर्गा जी सबको निरोगी तो हनुमान जी सबका संकट हरते हैं. गुरु बृहस्पति ज्ञान देते हैं. श्री हरि ध्यान देते हैं. गंगा के घाट पर सूरज और चांद अपनी डयूटी करते हैं. मंदिर के घंटे नकारात्मक शक्ति को भगाती हैं. तो अघोरी बाबा लोग सब काली शक्ति को मुट्ठी में रखते हैं. डोम राजा जहाँ अंत क्रिया में आपके साथ वैतरणी तक पहुचाते हैं वही काशी के पंडा लोग काशी में बाबा के दर्शन और इतिहास बता कर जीवन चलाते हैं. नाविक आपको गंगा पार कराते हैं, अलकनंदा क्रूज रविदास घाट से चल कर राजघाट की छटा का बखान करती है, गंगा मां की संध्या आरती दिखाती हैं. गंगा की निर्मल और निरझर धारा मोक्षयिस्यामि के लिए ही बस काशी आती है. यहाँ असि और वरुणा नदी से मिलकर वाराणसी बनाती हैं. पच गंगा घाट पर यमुना और सरस्वती बहनों संग मिलकर गंगा सागर की ओर चली जाती हैं. आज बस इतना ही कल फिर कुछ और कहानी और रहस्य... तब तक के लिए अपने वाचक बनारसी सिंह को आज्ञा दें. हर हर महादेव...
2021-07-13
10 min
कल थी काशी, आज है बनारस
संकट मोचन मंदिर जो 400 साल पुराना मंदिर है जानिए क्या है खास इसकी कहानी में
जय सीया राम, मित्रों आज की कथा साकेत नगर में स्थित संकट मोचन हनुमान की. पहले यह क्षेत्र आनन्द कानन वन था. जहाँ पर हनुमान जी ने संत तुलसी दास को दर्शन दिये. तुलसी दास के प्रार्थना पर इसी वन में प्रभु महावीर ने मिट्टी की मूर्ति में प्रवेश किया. ताकि श्री राम द्वारा दिए गये संकट मोचन नाम और रुप को स्थापित किया जा सके. श्री राम के जीवन में वनवास के अंत से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक श्री राम की सेवा करने वाले हनुमान जी को राम जी ने धरती पर ही रह कर धरती के अंत तक सभी भक्तों के संकट हरने का आशीर्वाद दिया. इसलिए संकट मोचन में विश्व भर से भक्त आते हैं और अपनी झोली भर जाने पर महावीर को धन्यवाद करते हैं. साल में हर मंगल और शनिवार को जरूर संकट मोचन मंदिर सजता है किसी भक्त की इच्छा पूरण हुई होती है वो अपनी श्रद्धा को दर्शाने के लिए विभिन्न आयोजन करते हैं. तुलसी दास जी ने ही हनुमान जी के पूजन के लिए हनुमान चालीसा और हनुमान बाहुक लिखा. हनुमान बाहुक कि एक लोक कथा है. कहते हैं एक बार तुलसी दास को बाह में अति पीड़ा हो रही थी तब उनको हनुमान जी याद आये. उन्होंने प्रार्थना की पर दर्द बंद नहीं हुआ. फिर पीड़ा से क्रोधित होकर हनुमान बाहुक ग्रंथ लिखा. जब गग्रन्थ समाप्त हुआ तब पीड़ा भी समाप्त हो गयी. ऐसी और भी कहानियां हैं. जंहा ईश्वर और भक्ति के मेल से कुछ सुंदर रचा गया. देखिए पीड़ा सहन कर ही संसार जीवन और मनुष्य निखरता है. रावण ने पीड़ा में शिव तांडव स्त्रोतम् रचा. श्रृष्टि मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र लिखा. बहुत से ऐसे प्रमाण हैं आप भी जानते हो. तो कभी पीड़ा हो अति असहनीय तो समझो ईश्वर कुछ बड़ा और बृहद रच रहा. सकारात्मक रहीए. राम का नाम लिजीए. ईश्वर को मन में रखकर कार्य करिये. सब सुंदर और अच्छा होगा. जय श्री राम.
2021-07-12
09 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी विश्वनाथ मंदिर में राम नाम की गूँज, कठिन परीक्षा, विजयी हुए गोस्वामी तुलसीदास, कैसे जानिए?
श्री राम मित्रों, आज की कथा है काशी में जब तुलसी दास आते हैं वापस रामचरितमानस की रचना करने के बाद. श्री राम के आदेश पर महादेव से आशीर्वाद लेने तब वो एक साधारण भक्त रुप में विश्वनाथ मंदिर में अपने महाकाव्य का पाठ करते हैं. मां पार्वती और बाबा शिव को रामचरितमानस सुनाते हैं. इस रात्रि प्रभु के पास पुस्तक रख दी जाती है सुबह मंगला आरती पर पट खुलते हैं तो लोग निशब्द और आश्चर्य में बस दर्शनार्थियों से खड़े रह जाते हैं. यह क्या पुस्तक पर सत्यं शिवमं सुंदरम् लिखा है. महादेव द्वारा पुस्तक को सत्यापित किया गया. अब तो हर ओर तुलसी दास के ही नाम की गूँज थी. पर कलियुग में या किसी भी युग में भक्ति और ज्ञान को अग्नि परीक्षा देनी ही होती है. फिर क्या हुआ सुनिए बनारसी सिंह के पॉडकास्ट में. सनातन शहर काशी के बनारस बनने की हजार कहानी की यात्रा में आप भी साथ हो लें हो सकता है वो मिल जाये जिसे सब ढूंढ रहे पर जानते नहीं. वही जिसे खरीदा नहीं जा सकता. जो मिल जाये तो एक पल में ही संपूर्णता का आभास हो जाये. मुझे क्या पता आप क्या खोज रहे. मैं तो बस आनंद और शांति की बात कर रही. अच्छा आप भी वही सोच रहे. नहीं दुविधा है. कोई नहीं यह भी होना चाहिए जिज्ञासा और दुविधा ही है पहली सीढ़ी. जहाँ से यह तलाश शुरू होती है. खैर कहानी के अंत में क्या होता है. कैसे तुलसी को महादेव अपने निर्णय से स्तब्ध करते हैं. कैसे तुलसी को पीड़ा में हनुमान याद आते हैं कैसे वो हनुमान से दर्द निवारण के लिए हनुमान बाहूक लिखते है. सब कुछ जानने के लिए सुनिये बनारसी सिंह द्वारा प्रस्तुत अगली कहानी. तब तब खुश रहिये. स्वस्थ रहिये. बम बम भोले.
2021-07-09
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
रामबोला कैसे बना गोस्वामी तुलसीदास
श्री राम-श्री राम जय राम जय जय राम. आज कथा है भक्त रामबोला की. यह कथा है श्री राम और कलियुग के तुलसीराम की. जो श्री राम को खोजते खोजते तुलसीराम से तुलसीदास बन गये. आज दुनिया उन्हें गोस्वामी तुलसीदास के नाम से याद करती है. उनकी रचना रामचरितमानस दुनिया के श्रेष्ठ महाकाव्यों में 46 वें स्थान पर है. यह कथा है मोहभंग से श्री राम शरण तक की. राजापुर गाँव में जन्में हुलसी और आत्मा राम के पुत्र जो दांतों के साथ एक वर्ष तक माँ के गर्भ में रहकर पैदा हुए जो रोते हुए नहीं श्री राम धुन को गाते हुए पैदा हुआ. जिस पर माता के लिए अपशकुन होने का दोष लगा. पिता ने त्याग दिया. चुनिया दासी माँ ने पाला रामबोला को. राम बोला का बचपन कष्ट भरा था. फिर महादेव की प्रेरणा से नरहरिदास ने रामबोला को खोजा और पालन पोषण किया. वेद ज्ञान दिया. राम कथा का वाचक बनाया. पर यह रामबोला जो गुरु से मिलकर तुलसीराम बन चुका था वो अभी भी सांसारिक मोह में फंसा हुआ था अपने जीवन लक्ष्य से दुर. 29 वर्ष में विवाह हुआ पर पत्नी का गौना नहीं हुआ. वो अपने मैके में रहती. तुलसी काशी में वेदपाठ करते. एक दिन पत्नी से मिलने की इच्छा हुई. गुरु आज्ञा से घर गये. पत्नी से मुलाकात के लिए इतने अधीर हुए रात्रि में यमुना को तैर पार किया. पत्नी के कक्ष में जा पहुंचे. घर चलने की जिद्द की. रत्नावली ने बहुत समझा पर नहीं माने तब पत्नी ने ब्रह्म ज्ञान दिया कि हाड़ मास की काया से जो आप इतना प्रेम कर रहे इसका रंच मात्र भी श्री राम को भजते तो भव सागर से पार हो जाते. यह सुन तुलसी मोह से जागे. उल्टे पैर घर भागे. घर पर पिता का शव था पुत्र के इंतजार में. अंतिम संस्कार कर घर त्याग कर तुलसीराम अब तुलसीदास बन गये. वो राम कथा का पाठ करने लगे अस्सी घाट पर काशी के. भक्तों की संख्या बड़ने लगी. फिर किसी राम भक्त प्रेत ने तुलसी जी को हनुमान जी के बारे में बताया. तुलसी जी ने कोढ़ी रुप में राम कथा सुनने आये बंजरंग बली को पहचान कर उनको दर्शन देने की प्रार्थना की. हनुमान जी के दर्शन कर धन्य हुए राम भक्त तुलसीदास. अब अनुरोध किया प्रभु रघुनंदन से मिला दो. हनुमान जी बोले जाओ चित्रकूट वही मिलेंगे राम. तुलसी पहुंचे रामघाट और आसन लगा कर राम नाम गाने लगे. दूसरे दिन उन्हें दो सुंदर रुप वाले बालक तीर धनुष लिए दिखे. तुलसी प्रभावित हुए पर पहचान ना पाये रघुनंदन को. बहुत पश्ताये तब हनुमान जी बोले कल फिर होंगे दर्शन अब नहीं चुकना. तुलसी व्यग्र हो करते हैं राम प्रतिक्षा. सुबह राम धुनी गाते पीस रहे चंदन एक सुंदर बालक आया उनके पास बोला स्वामी चंदन मिलेगा क्या. अब भी भक्त प्रभु से अनभिज्ञ. तब तोता बन हनुमान जी बोले चित्रकूट के घाट पर भयी संतों की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर..... बोलो... राम राम फिर क्या तुलसी दास अब भावविभोर होकर रोने लगे. सब भूल गये. श्री राम ने बालक रुप में तुलसी को तिलक लगाया और अंतर ध्यान हो गये. यही पर लिखा गोस्वामी ने रामचरितमानस. आगे क्या हुआ. सुनने के लिए पॉडकास्ट सुने. बनारसी सिंह द्वारा प्रस्तुत सनातन शहर काशी के बनारस बनने की हजार कहानी की यात्रा. कैसे काशी में मिले राम और कैसे रामचरितमानस पहुंची काशी. कैसे बाबा ने रामचरितमानस को कलियुग की श्रेष्ठ महाकाव्य बताया. संकट मोचन हनुमान के लिए हनुमान चालीसा क्यों रचा. सब कुछ सुनने को रहिये तैयार. आईये मेरे साथ काशी की विस्मरणीय यात्रा पर. हर एक पहलू से होगी मुलाकात. क्योंकि कहानी तो अभी शुरू हुई है. अपने कानो को रखिये खोल कर... हर रहस्य से परदा उठेगा हर कंकड़ बोलेगा. इतिहास से भी जो है पुराना जिसको किसी ने नहीं माना, वो कहानी लेकर आउंगी आपकी वाचक. बनारसी सिंह हर हर गंगे.
2021-07-08
16 min
कल थी काशी, आज है बनारस
अस्सी घाट की अनोखी कहानी, जो है काशी का हरिद्वार
राम राम मित्रों, आज की कड़ी में आप जानेंगे संगमेश्वर महादेव, जगन्नाथ मंदिर, अलकनंदा क्रूज़, घाट संध्या कार्य क्रम और तुलसी दास जी का यहाँ से क्या संबंध है. रामचरितमानस और मानस मंदिर का संबंध. असि घाट की सीमा और विस्तार. असि घाट पर बने अनेक मंदिरों के निर्माण की तथ्यात्मक कहानी. कुछ तत्कालीन घटना भी जो सुनकर और देखकर आप बस अचंभित और आश्चर्यजनक भाव में डुबकी लगाते हो. क्या कुछ हुआ है यहाँ इह घाट पर उन सब को सरसरी निगाह से देखने और सुनने के लिए आप को मेरे पॉडकास्ट सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा पर जाना होगा. बनारसी पान का मज़ा चाहिए तो बनारसी सिंह को सुनिए. पान से जो रस आनंद आपको उसे खा कर चबा कर मिलता है वही इंद्रिय सुख आपको इस पॉडकास्ट की कहानी सुन कर मिलेगा. बस मन कोश्रखाली कर, यहाँ आयें और मन भर कर आनंद पाए. मैं जब आनंद कहती हूँ तो आप खुशी नहीं समझना. खुशी क्षणिक होती है. बुलाती है मगर जाने के नहीं. जाना है तो आनंद की तलाश में जाओ यह परम आनंद की प्रथम सीढ़ी है. दुनिया का कोई भी नशा इसके सामने फिका है. यह कहानी और शहर की यात्रा नहीं यह जीवन यात्रा है. जन्म और मृत्यु से परे यह आदि से अनंत की, दृश्य से अदृश्य की, मोह से प्रेम की, पाप से पवित्र होने की, महाश्मशान से देवनागरी होने की, नास्तिक से आस्तिक, द्वंद्व से एकात्म की पावन पवित्र और मंगलमय यात्रा. यह यात्रा है समय की, काल की, इतिहास की, त्याग की, समर्पण की, सत्य की, सुंदरता की, भक्त की, वैराग्य की, यह यात्रा है सदाशिव अदृश्य के दृष्टिगत होकर माता पिता बनने की, यह यात्रा है आत्माओं के परमात्मा से मिलन की, यह यात्रा है कुछ नहीं से सबकुछ की. यह यात्रा है अमर पूरी काशी की और उसके आधार बिंदु महादेव की. जो दिखते नहीं पर हैं जो बोलते नहीं पर सुनते हैं. जो शरीर नहीं अंतर मन हैं. जो पंचतत्व हैं. जो कणकण में हैं वही जो ब्रह्माण्ड से परे हैं. जो निराकार हैं और ओमकार हैं. जो शुन्य हैं, जो सबका आरंभ और अंत भी हैं वही सदा शिव हैं. हर हर महादेव. नमः पार्वती पतये हर हर महादेव.... जय श्रीराम.
2021-07-06
21 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी का अस्सी घाट
बहुत बहुत स्वागत है आप सब का बनारसी सिंह के पॉडकास्ट में. 'सनातन शहर काशी कैसे बना बनारस, से जुड़ी एक हजार कहानियाँ लेकर आ रही मैं आपके बीच. आज की कहानी काशी के उत्तर से दक्षिण सीरे पर बसे अर्ध चंद्राकार घाटों में से सबसे मसहूर और प्राचीन घाट की कहानी. कहानी असि घाट की. जी हाँ. जहाँ आज कल सुबहे बनारस का मंच सजता है वह हमेशा से शक्ति और साहस का केंद्र रहा है. असि वो घाट जो गंगा और असि नदी के संगम पर बसा है. असि नदी भी अति प्राचीन है. मंगलकारी है. क्योंकि यह असि यानि तलवार के गिरने से उत्पन्न हुई. तलवार यानि असि थी देवी दुर्गा की. जब उनका और दो असुर शुंभ और निशुम्भ का युद्ध हो रहा था. उन दोनों का अंत कर देवी दुर्गा ने अपनी तलवार यही फेंकी थी काशी में इस आनंद कानन में उस असि के गिरने से धरती से एक नदी एक जलधारा उत्पन्न हुई वह बनी असि नदी. इस असि नदी के कारण इस घाट का नाम पडा़ असि घाट. अस्सी मोहल्ला भी है इसके पीछे. असि समिति अब यहाँ सब देख रेख करती है. गंगा आरती या कोई भी आयोजन उनके संरक्षण में होता है. इस असि घाट की लोक कथा आपने सुन ली. आगे और क्या क्या है यहाँ जानने के लिए सुनिये आगे की कहानी. अपने पसंद जरूर बतायें. कहानी हर किसी को पसंद आती है. 90 के दशक तक यह कहानियाँ हमें हमारे अतीत से जोडती थीं. दादा, दादी, नाना, नानी, मासी, मामा इन कहानियों के वाचक होते थे. कभी दशहरा में रामायण तो कभी कला मंडली द्वारा प्रस्तुत नाटक इन कहानियों से हमें जोडते थे. हमारे बचपन में गावों में लोकल गीतकार भी आते थे जिन्हें भाट कहते थे वो भी अपनी आवाज में इन मनोहारी कहानियों को कथाओं को गा कर सुनाते थे. कभी स्कूल में गीता पाठ या रामायण का साप्ताहिक पाठ होता तब भी आचार्य और कोई श्रेष्ठ वाचक इन कथाओं को सुनाते थे. इसलिए यह हमारे बीच हमारे साथ जिंदा है. पर अगर सुनना और सुनाना बंद हो गया. फिर आने वाली पीढ़ी को अपने संस्कृति अपने संस्कार और नैतिकता, मानवता का पाठ कोन पढाएगा. इसलिए आधुनिक समय की इस तकनीकी का लाभ उठाकर आपको और आने वाली पीढ़ी तक यह कहानी पहुचाना है. यही उद्देश्य है इस पॉडकास्ट का. इसे सफल बनाने में आप सबकी भागीदारी और साझेदारी जरुरी है. तो बेधड़क साझा करें उनको जिनकोे आप अपने कहानियों से परिचित कराना चाहते हैं. सभी का आभार. हर हर महादेव.
2021-07-05
14 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Ek काशी/ ek बनारस: नाम_रूप ka अन्तर- जो दिख रहा वो बनारस, जो महसूस हो वो काशी
यह काशी और बनारस की यात्रा पर लिखा एक बनारसी द्वारा लिखा और बोला गया काव्य रस में डुबा पान है. जिसमें रस ही रह है. क्योंकि यह बनारस है. पढ़ के मेरी यह काशी की कहानी मन में जग जाये भ्रमण की प्यास तो बस चले जाना बैग लेकर झोला उठाकर काशी की यात्रा पर. काशी जंहा वेद, पुराण, स्मृति, सहिंता, साहित्य, श्रुतियों, मान्यताओं, परंपरा, कला, ज्ञान, की अति प्राचीन धरा है वही बनारस आधुनिकता, द्वन्द्व, विषमता, बदलाव, परिवर्तन, ठेठ, कहीं उजडा़ तो कहीं निखरता हुआ शहर है. एक शरीर है एक आत्मा है. शरीर जमाने के साथ चल रहा तो आत्मा चेतना के साथ विवेक के साथ. तभी तो यह जिंदा शहर बनारस है. काशी में आने के लिए आध्यात्मिक होना होगा. पर बनारस में आप कैसे भी आ जाआे बनारस आपको थोड़ा बनारसी तो बना ही देगा. नदी की दो धारा सी साथ चल रही यह काशी और बनारस. बनारस में काशी है या काशी में बनारस. यह ज्ञात करने के लिए ज्ञान, विज्ञान सब फेल है. क्योंकि यह नाम का ही खेल है. काशी की यात्रा ध्यान, त्याग, शांति, मौन, मोक्ष है तो बनारस की यात्रा मोह माया, भागमभाग, चील्लपों. बनारस जंहा जिंस, बड़ा गाड़ी, फोन, चश्मा, पिज़्ज़ा और बर्गर हव. उहाँ काशी विश्वनाथ गली के कचौरी चलेबी हव. बनारस जंहा मोमोज, सैंडविच बा, काशी ठंडयी, लस्सी, भांग, मीठका आम हव. अब क्या बोले जाइये एक चक्कर लगा आइये तब समझेंगे इ काशी काशी का ह. सुनते रहिये वाचक बनारसी सिंह को. मै लेकर आती रहूंगी ऐसे ही भयंकर काव्य रस से भरी काशी और बनारस से जुड़ी कहानी आपके लिए. नमस्कार महादेव मित्रों.
2021-06-29
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
राजा हरीशचन्द्र ने स्वयं को डोम राजा को क्यों बेचा?
सतयुग यानि सत्य का युग. जंहा सत्य ही सर्वोपरि है. उस युग में मानव मूल्य बहुत श्रेष्ठ थे. ऐसे समय में अयोध्या में एक राजा का शासन था. जिनका नाम था हरिश्चन्द्र. उनकी पत्नी तारा देवी और पुत्र रोहित. हरिश्चन्द्र जी की प्रजा बहुत खुश और संपन्न थी. राजा धर्म निष्ठा जो थे. एक बार स्वपन में किये कार्य को भी राजा ने जगने के बाद सच में प्रत्यक्ष रुप में पूर्ण किया. अपना सारा राजपाठ दान में दे दिया श्रृषि विश्वामित्र को. श्रृषि राजा के पास इश्वर आज्ञा पर राजा की परिक्षा लेने आये थे. राजा इस बात से अंजान थे. विश्वामित्र ने कुछ ऐसा मांगा जिसको पूरा करने के लिए राजा की पत्नी को जाती बनना पड़ा और राजा को भी स्वयं को दो स्वर्ण मुद्रा में डोम राज के यहाँ बिकना पड़ा. क्या राजा इस परिक्षा में सफल हुए. क्या आशीर्वाद मिला ईश्वर से उनको. सब जानने के लिए सुनिये बनारसी सिंह का पॉडकास्ट. सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा' से जुड़ी रहस्यों भरी हजार कहानियाँ. हर हर महादेव.
2021-06-28
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
एक श्राप, जो आज है इनके लिए वरदान
जन्म और मृत्यु सत्य है. है ना. इसके मध्य जो समय मिलता है वही जीवन है. पर काशी एक अद्भुत नगरी है. शिव जी की. जहाँ मृत्यु और मोक्ष एक ही सिक्के के दो पहलू है. काशी में कुल चौरासी घाट हैं. जीव को कितने रुप में जन्म मिलता है. चौरासी लाख. कुछ संबंध है काशी के मणिकर्णिका पर शव के दाह और अंतिम यात्रा का. नहीं. अभी जो कहानी आप सुन रहे वो कल्लू डोम राजा की है. जिनको पार्वती जी का मणिकर्ण मिला था पर महादेव के पूछने पर उन्होंने सत्य नहीं स्वीकार किया. फिर भोले बाबा को क्रोध आया डोम राजा को श्राप मिला. आगे कि कहानी आप सुनो पॉडकास्ट से. मुझे सुनने और पड़ने के लिए धन्यवाद. यह सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा है. जिसमें आप सुन रहे हजार कहानियाँ जो बनारसी सिंह सुना रही. आज तक आप ने जितनी भी कहानी सुनी वो वाचक कोई भी होगा पर मैं नहीं थी. मज़ाक था. पर आप सबको इन कहानियों को केवल सुनना नहीं है शेयर भी करना है. बांटने से ज्ञान बढ़ता है कहावत तो सुनी होगी ना. फिर शेयर करें और बनारसी सिंह के पॉडकास्ट को सब्सक्राइब भी करें. कैसी लग रही कहानी अपना विचार भी अवश्य दें. हर हर महादेव.
2021-06-26
13 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी थी नारायण पुरी, फिर बनी कैसे बाबा धाम
राधे राधे मित्रों, आज कहानी में ट्वीस्ट है. काशी आरंभ में विष्णु जी की नगरी थी. यहाँ वैष्णव मत का बोलबाला था. फिर आज यह बम बोल के शंखनाद से क्यों गुंजायमान है. सोच रहे. तो कहानी सुनो ना. एंकर या स्पोटिफाइ एप डाउनलोड करो. सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा' से जुड़ी हजार कहानी सुनने के लिए बनारसी सिंह को सर्च करो. या फिर जो लिंक मैं शेयर कर रही उस पर जा कर सुनिए. यह बहुत आसान है. थोड़ा समय दीजिये कुछ ऐसा करने के लिए जो देखना नहीं सुनना है. जैसे पहले रेडियो सुनते थे. यहाँ आप अपना काम भी कर सकते हो और मुझे सुन भी सकते हो अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं. बनारस में काशी को ढूंढना है. तो मेरी मदद लिजीए. मैं आपको वो बता रही जो है सदा से बस आप ने सुना नहीं और देखा नहीं. यह यात्रा है आइए मेरे साथ बनारस में काशी को खोजते और समझते हैं. क्यों कि यह हमारे अस्तित्व के आरंभ से है. बहुत पुरानी और आज भी है. आगे भविष्य में भी होगी. इस शांति और आनंद यात्रा की जरूरत सबको है. आज नहीं तो कभी नहीं. अपनी अंतरमन को भी सुनना चाहिए. बाहर तो हम सब भटक ही रहे. एक डुबकी मन और आत्मा के सागर में भी लगाआओ ना. दिए के बूझने से पहले एक बार काशी जाआे ना.हर हर महादेव का जयकारा लगाओ ना. अपने अंदर एक प्यास खुद के तलाश की जगाओ ना. एकबार तो काशी आओ ना. काशी वाराणसी, बनारस, अविमुक्त, मोझदायीनी गंगा घाटो पर कुछ पल बिताओ ना. एक यही रुक जाओ ना. वाह आज तो कवि रुप भी दिख गया मेरा. खैर कहानी सुनना और सुनाना हमारी परंपरा है. मैं बस उसी को जी रही. आप भी इन कहानियों को सुनो और जीओ.
2021-06-25
13 min
कल थी काशी, आज है बनारस
भोले नंदी गये भूल, शब्दों में हुआ फेर प्रायश्चित करने आना पड़ा धरती पर
नमस्कार दोस्तों सभी का स्वागत है. इस बार कहानी बहुत ही स्थानीय है. यह बहुत प्रचलित है काशी में. कहानी है संदेश और विस्मृत होने की. शिव जी धरती पर मानव के लिए एक संदेश भेजते हैं वो संदेश नंदी जी मानव समाज को देते हैं पर संदेश में कुछ गड़बड़ी हो जाती है और नंदी जी को प्रायश्चित करने धरती पर आना होता है बहुत लंबे समय के लिए. यह कहानी हास्य और परिहास पर आधारित है पर इससे सीख बहुत बड़ी मिलती है. जो समझ सके उन सबको. क्या है मुझे किसी के भी समझ पर संदेह नहीं. बस समस्या यह है कि कोई कुछ भी कहे हम सब ऐसे प्रशिक्षित हैं कि वही समझेंगे जो हमें समझना है. जो समझाया जा रहा वो नहीं समझेंगे. क्योंकि मंथन नहीं करते. एक्शन और रिएक्शन मोड में जीवन को जी रहे हम. बस बाकी आप सब स्वयं समझे कि यह कहानी क्या समझा रही. हर हर महादेव.
2021-06-24
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
आदिनाथ, आदिश, शिव, हैं इनके नाम, नाम लेने से बन जाते सब काम
मित्रों, दोस्तों, साथियों हर वर्ग के मनुष्य को सादर नमन. आज की कथा है धरती के आरंभ की. शिव, जी वराह काल में धरती पर आते हैं और कैलाश पर्वत को अपना निवास स्थान चुनते हैं. अभी धरती पर हिमयुग चल रहा होता है. पर अब युग के निर्माण का समय है इसलिए तीनों देव धरती पर आकर अपना अपना निवास स्थान चुनते हैं. ध्यान से सुनियेगा यह कथा. ईश्वर का हर कर्म ज्ञान और परोपकार के लिए होता है. ईश्वर भी तप, साधना, योग, ध्यान से शक्ति को सही दिशा देते हैं. शिव जी कैलाश पर, विष्णु जी समुद्र में और ब्रम्हा जी सरोवर में निवास कर धरा पर सूक्ष्म से विशालकाय जीवन को आरंभ करते हैं. विनाशक देव शिव ही सबसे पहले कैलाश से जीवन को आरंभ करते हैं. धरा पर यक्ष, गण, देव, दानव, ॠषि मुनि, योग, कला, विज्ञान को वेदों में वर्णित कर ज्ञान को पूरी धरती प्रवाहित कर जीवन राग आरंभ करते हैं. इसमें उनको उनके प्रिय मित्रों हरि और ब्रम्ह देव का सहयोग भी मिलता है. तीनों मिलकर एक सुंदर सहज सरल धरा बनाते हैं. जीवन और समय को उत्पन्न करते हैं. शिव जी को इसलिए आदिनाथ कहते हैं. यह आदि का अर्थ आरंभ है. यह शिव सदाशिव का ही रुप हैं. जो शून्य और निर्वात के निर्माता हैं. जो सूक्ष्मतम हैं और अनंत हैं. परमाणु तत्व भी वही हैं और पदार्थ भी वही हैं. वही सदा शिव हैं. जो दिखते नहीं पर हर जगह केवल और केवल वही हैं. कैलाश पर्वत ही धरती का केंद्र है यह पुराण और वेद में लिखा गया है. आज भूवैज्ञानिक इसे प्रमाणित कर चुके हैं. आगे क्या हुआ. जानने के लिए सुनिये सनातन शहर काशी के बनारस बनने की हजार कहानियाँ. बनारसी सिंह आपकी कथा वाचक यानि मैं हूँ. मैं भी शिव अंश हूं. तभी तो प्रभु की सेवा का मौका मिला. फादर्स डे पर शिव जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं. बारंबार धन्यवाद. उनसे अच्छा पिता कोई नहीं. हर हर महादेव. हर जगह अब दिखे तू... तेरे नाम से ही काम है.... बस तेरा ही तेरा नाम है.... बम भोले...
2021-06-24
10 min
कल थी काशी, आज है बनारस
भक्तों की भक्ति का नशा है शिव को, एक पल की पुकार पर रक्षक बन जाते हैं भोले भंडारी...
सबसे पहले मुझे क्षमा दान दिजिए सभी श्रोता गण. इस बार विलंब अधिक हुआ पर वजह भी थी. सभी जानते हैं कोरोना और लाॉकडाउन पूरे भारत में अपने पैर पसार चुका था. मेरे परिवार में भी कुछ लोग ग्रस्त हुए. मैं भी इस अदृश्य विषाणु के प्रभाव में रही. महादेव की भक्ति और दवा और परिवार के स्नेह से सब कुछ उत्तम है. अब आपकी कहानी. किरातों के नगर में रहने वाला निर्धन ब्राहमण देवराज. जिसमें लालच है और लोगों को छलने में उसे आनंद आता है. वह असत्य के मार्ग पर चल कर अति शीघ्र धनी हो जाता है. अपने नगर के किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ता. नगर में आने वालो को भी छल लेता. इतना धनी होने पर भी उसकी धन लोलुपता नहीं छुटी. अब उसने अन्य नगर को अपनी ठगी की कला से जीतने का मन बना या वो अपने नगर से निकल कर प्रतिष्ठान पुर पहुचा. वहा एक शिवालय में विश्राम के लिए रुका. जो संतों और ब्राह्मण लोगों से भरा था वहा रोज शिव पुराण का पाठ होता. देवराज यहाँ आते ही ज्वर का शिकार हो गया. इसी शिवालय में उसका एक माह उपरांत अंत हो गया. मृत्यु उपरांत जब यमलोक गया तो वहाँ शिव गण आये और उसे शिव के धाम ले गये. आगे क्या हुआ उसके लिए एंकर डाउनलोड कर बनारसी सिंह के पॉडकास्ट को सर्च कर 'काशी के बनारस बनने की हजार कहानी ' खोजें और सभी कहानी सुने और मित्रों को भी शेयर करें. कहानी का आनंद तो सबको मिलना चाहिए. हर हर महादेव बोलते रहिये.
2021-06-15
07 min
Uninterrupted
Episode #18: Weaving Heritage into Luxury with Palak Shah
This week’s guest on Uninterrupted is Palak Shah, the force behind India’s first handloom luxury brand, Ekaya, presenting the finest work of Banarasi art from the Indian craftsman’s repertoire. Tune into this candid conversation to step into the enticing and fascinating world of textiles as Palak spill the beans on how to ace brand photoshoots, the power of collaboration, top tips to grow your brand & more!
2021-05-12
21 min
कल थी काशी, आज है बनारस
मणिकर्णिका में मनता है श्मशान नाथ उत्सव, चैत्र नवरात्र की सप्तमी को, संगीत और नृत्य का मंचन
आप सून रहें हैं अपने वाचक बनारसी सिंह को. आज की कहानी है मणिकर्णिका घाट के नामकरण की और महाश्मशान नाम की. शिव जी देवी पार्वती के साथ काशी आते हैं अपने विहार के बाद तब श्री हरि से तप साधना रोकने और बैकुंठ जाने का अवरोध करते हैं. तब श्री हरि शिव से दो वर मांगते हैं पहला कि प्रलय काल में भी यह धरा नष्ट न हो. आप इसका संरक्षण करो. और दुसरा कि इस कुण्ड में जहाँ मैंने ध्यान और तप किया है वहाँ जो भी सच्चे मन से आपको पुकारे उसे आप मोक्ष प्रदान करो. जाने से पूर्व श्री हरि ने एक कुण्ड बनाया उसमें तप से जल भरा. यह मणिकर्णिका कुण्ड कहलाता है. इस कुण्ड में देवी पार्वती और शिव ने जल क्रिडा किया था तभी शिव जी को अपने पास अधिक समय तक रोकने की मंशा से देवी पार्वती ने अपने कान का कुण्डल कुण्ड में छुपा दिया था जिसे खोजने की जिम्मेदारी शिव जी की थी. इस कुण्डल के नाम पर इस कुण्ड का नाम मणिकर्णिका पड़ा. अन्य कथा के अनुसार जब सती ने अग्नि दाह किया अपने पिता के यज्ञ में तब उनके शव का अन्तिम क्रिया यहाँ इसी घाट पर शिव जी ने किया था इसलिए तब से यह घाट महाश्मशान घाट बन गया. जहाँ कभी शव अग्नि शांत नहीं होती. इस घाट पर 1585 में आमेर राजा सवाई मान सिंह ने एक मंदिर बनावाया और काशी में ज्ञान और संगीत परंपरा को अमर करने के लिए शिव को प्रसन्न करने के लिए एक उत्सव का आयोजन किया जिसमें सभी कलाकार बुलाये गये पर कोई भी भय के कारण और शमशान होने के कारण नहीं पहुंचा तब राजा ने नगर वधुओं से यहाँ नृत्य और संगीत का आयोजन करवाया. नगर वधुओं ने जलती चिता के मध्य रात्रि भर नृत्य कर शिव के नटराज स्वरूप की आराधना की और इच्छा कि इस जीवन के उपरांत वो कभी भी नगर वधुओं के रूप में जन्म ना ले भगवान उन्हें मोक्ष दें. तब से श्मशान नाथ महोत्सव मणिकर्णिका घाट पर हर वर्ष मनाया जाता है. हर हर महादेव... यह थी 16 वी कथा काशी शहर-ए-बनारस के जीवन की. आगे कुछ और अनजानी और अनसुनी कथा और कहानी सुनाउंगी. कुछ अवसर के लिए धन्यवाद... स्वस्थ रहे सुरक्षित रहे. नमःपार्वती पतये हर हर महादेव.....
2021-04-10
14 min
कल थी काशी, आज है बनारस
अड़भंगी भोले नाथ और उनके भक्त
आज की कहानी बड़ी सरल और सहज है. आज बात ही बाबा भोले को भक्ति के कौन से रुप से प्रसन्नता मिलती है. भक्त का भाव कितना महत्वपूर्ण होता है. एक समय कि बात है शिव और पार्वती आकाश मार्ग से सृष्टि के एक ओर से दुसरे छोर पर जा रहे थे और भक्त और भक्ति पर बात हो रही थी. विधि और नियम धर्म महत्वपूर्ण है या भक्त की सरलता. मुद्दा थोड़ा गरम हो गया. तब महादेव ने कहा कि चलिए आपको उदाहरण से समझाते हैं. देखिए मेरे यह दो भक्त है. आप बताये इनके व्यवहार देख कर कौन सच्चा भक्त है. देवी ने दोनों भक्तों को देखा और कहा क्या प्रभु जो स्नान और विधि पूर्वक पूजा करते हैं पंडित जी वही हैं सच्चे भक्त. यह साधारण मनुष्य तो बहुत ही विचीत्र है. जिस लोटे से नित्य कर्म में पानी प्रयोग करता है उसी लोटे से आप को जल भी अर्पित करता है. यह तो बिलकुल भी आपका भक्त नहीं. प्रभु ने कहा ठीक है क्यों न दोनों की परीक्षा ली जाये. अब दुसरे दिन जब पंडित जी मंदिर में पहुंचे और किसान भाई नित्य कर्म से लोट मंदिर पहुंचे तो मंदिर हिलने लगा भूकंप आ गया. दिन में ही रात हो गया. पंडित जी पूजा पाठ छोड़ कर भाग गये. पर किसान मंदिर में गया भोले नाथ के शिव लिंग को पकड़ कर बैठ गया. प्रभु घबराना मत मैं हूँ आपके साथ. सब ठीक होगा. अब माता पार्वती को पता चल गया था कि भक्ति का आडम्बर और असल भक्त कौन है. अब आप भी समझ गये होंगे कि भोले भंडारी को प्रेम भाव ही प्रिय है. जो विनाश के देव हैं जो संतुलन के कारक हैं. उन शिव शम्भू को प्रेम ही प्रभावित करता है. दिखावा नहीं. हर हर महादेव.
2021-04-09
10 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Mahadev ka हठयोगेस्वर रुप, जो धरती पर नहीं निवास करते
आज की कहानी बड़ी ही विचीत्र और रोचक है. देवी सती के यज्ञ में प्राण त्याग देने के उपरांत महादेव उनके शव को अपने हाथों में लेकर समस्त धरा पर भ्रमण करते हैं. रुदन करते हैं.. समय का ध्यान नही रहता. उनका शांत स्वरूप अब अशांत और भयंकर दिखने लगा है. नारायण आकर देवी सती के शव को सुदर्शन से 51 खण्डों में बांटते हैं धरती पर 51 खण्ड पीठों का निर्माण होता है. परंतु नारायण शिव को शांति नहीं दे पाते. शिव व्यथित मन से विचरण करते रहते हैं. महादेव को शांति प्रदान करने के लिए श्रृषिमुनियो द्वारा तप किया जाता है. शिव योगी रुप में रुदन करते हुए सती सती पुकारते हुए श्रृषिमुनियो के आश्रम से गुजरते है बेसुध महादेव के इस रुप को समक्ष नहीं पाते ऋषि गण तप भंग से क्रोधित होकर महादेव को पाताल लोक में जाने का श्राप देते हैं. महादेव हठयोगी रुप में ही पाताल चले जाते हैं. और वहा पर दानव, भूत, प्रेत और तामसिक गुण के जीव उनको अपना गुरु मानकर ध्यान रखते हैं और पूजन करते हैं. यहाँ धरती पर प्रलय सा आरंभ हो जाता है. देवराज इंद्र को ज्ञात होता है कुछ अनिष्ट हुआ है वो धरती पर जाकर ऋषि से बात करते हैं उनको बताते हैं कि ऋषि मुनियों से अपराध हुआ है. उन्होंने अपने महादेव को ही पाताल भेज दिया. यह सत्य सुन कर ऋषि बहुत व्यथित होते हैं. पश्चात करने के लिए भविष्य की घटना को देख कर इंद्र देव को बताते हैं कि महादेव के दुख को कम करने के लिए उनको बताया जाये कि उनकी शक्ति का जन्म होगा पुनः जल्द ही.. देवता और ऋषि महादेव से प्रार्थना करते हैं वो धरा पर महादेव स्वरूप में निवास करे. ताकि सृष्टि का विनाश ना हो. हठयोगी शिव पाताल से धरा पर आते हैं और फटकार लगाते हैं ऋषि मुनियों को. इंद्र मनुहार करते हैं महादेव का. उनको ऋषि मुनियों के भूलवश श्राप देने और देवी सती के पुनः जन्म का सत्य बताते हैं. शिव का रुद्र रुप कुछ शांत होता है और फिर महादेव से एक अंश निकलता है जो धरती पर रहते हैं और अपने कार्य का वहन करते हैं. हठयोगी शिव पाताल में जाकर तामसिक शक्ति को संरक्षण देते हैं. परंतु वह वहाँ भी देव ही है. एक मात्र देव जो पाताल लोक में रहते हैं. हैं ना रोचक और रहस्य मयी कथा. अभी तो यह आरंभ है. जितने निराले महादेव है उतनी ही निराली काशी. काशी में शिव है या शिवमय काशी. अंतर करना मुश्किल है. इस जीवन में मैं मेरे महादेव के सहस्त्रौ वर्षों के जीवन चक्र की समस्त घटना और जीवन तो नहीं परंतु जानने योग्य कथाओं को आप तक पहुंचाने का प्रयास जरूर करुंगी. आप भी एक छोटा प्रयास करें बस इन कथाओं को लोगों तक पहुंचाने में मेरी सहायता करें. पॉडकास्ट पर मेरी इस काशी यात्रा की कहानियों को सभी लोगों तक पहुंचाए. आपको बस शेयर करना है यह लिंक जो मैं आपसे साझा करुंगी. आपकी आभारी बनारसी सिंह.
2021-04-05
19 min
कल थी काशी, आज है बनारस
मसान महाश्मशान में क्यों खेलते हैं होली काशी में....
रंगभरी एकादशी 24 मार्च को थी. उस दिन से मथुरा और काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है. पर दोस्तों काशी की होली बृन्दावन की होली से अलग होती है. यू कहें कि सारी दुनिया में जिस भी प्रकार की होली मनायी जाती है उसकी जड़े भारत से जुड़ी है. सबसे अद्भुत होली पूरे संसार में काशी में मनाया जाता है. सबसे निराले ईश्वर महादेव की प्रिय नगरी काशी में मसान की होली होती है सदियों से. यहाँ देवी पार्वती को गौना करा कर लाये बाबा भोले रंग भरी एकादशी को महाश्मशान काशी के हरिश्चंद्र घाट पर अपने गणों के साथ भस्म की होली खेलते हैं. चिता की राख या भस्म में रमे रहने वाले भूतनाथ भगवान आज के दिन काशी वासियों से मसान में होरी खेल ते हैं. सारी काशी में आज से ही पांच दिवसीय होली पर्व आरम्भ हो जाता है. इससे जुड़ी कहानी इस पॉडकास्ट में आप सुन सकते हैं.
2021-03-26
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Kahani of river ganga ... मोक्षदायिनी गंगा की धरती आगमन- भागीरथी का तप
नमस्कार मित्रों, कहानियों की एक खेप आप तक आ चुकी है. आज की कहानी काशी की जीवनधारा पतित तपावनी और मोक्ष दायिनी नदी श्री गंगा की. काशी की दिव्यता और बड़ जाती है जब वो गंगा से जुड़ जाती है. गंगा जी बहन हैं पार्वती की. और शिव के जटा में उनका वास है. वो श्री हरि विष्णु के चरणों से उत्पन्न हुई हैं. धरती पर पाप और पापियों के नाश और कल्याण के लिए. धरती पर उनको भागीरथी ले आये. गंगा जब से धरती पर आयी है मनुष्यों के पाप को हरा है और जीवन दान दिया है. राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष देने के लिए धरती पर आयी गंगा की एक धारा सदासरवदा से गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक सबका कल्याण करती हैं. गंगा माँ है. वो अपने बच्चों का पालन और पोषण करती हैं. हर हर गंगे. हर हर महादेव.
2021-03-20
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
मणिकर्णिका नाम की महिमा, मोक्ष का मार्ग बताया शंकर भगवान ने नारायण को
श्री हरि की उत्पत्ति करके, उनको वेद ज्ञान सौंप कर, आनंद कानन में शिवा संग विहार पर चले गये महादेव. श्रेष्ठ की आज्ञा शिरोधार्य कर हरि पचास सहस्त्र वर्षों की तपस्या में लीन हो गये. जब तप बल से उनका शरीर सूख कर जलने लगा और उसके ताप से सृष्टि व्याकुल होने लगी तब दिव्य नेत्रों से इस घटना को देख कर महादेव ने नारायण से तप को रोकने का आग्रह किया. और चक्र परिष्करण कुंड को मणिकर्णिका नाम देकर उस जलाशय के और मणिकर्णिका स्थल के महत्व को बताया शिव शंभू ने. जो स्कंद पुराण में काशी खंड में वर्णित है. आगे किसी और नाम और रहस्य से उठेगा पर्दा सुनते रहिये और सुनाते रहिये... कहानी सुनाना यह परंपरा है हमारी. यह भावी पीढ़ी की धरोहर है उनके लिए हर तरह से सहेज के रखना है इस सत्य को. शिव, काशी और तीनों लोकों की कथा कथा नहीं सत्य है भारत वर्ष का. हर हर महादेव...
2021-03-12
11 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी को आनंद कानन नाम se क्यों बुलाया जाता है? जानिए इस episodes se
आनंद क्या है. हंसना, मुस्कुराना या पार्क में जोर जोर से हंसने का प्रयास तो बिल्कुल नहीं. फिर क्या है यह आनंद कहाँ मिलेगा. यह मिले गा आप के अंदर. जब भी आप स्वयं से संतुष्ट होंगे, स्वयं को जानने की यात्रा पर निकलेंगे. आनंद एक सि्थती एक दशा है. जिसे पाने के लिए भ्रम और अंहकार का त्याग करना पड़ता है. अपने अंदर स्थित आत्मा से साक्षात्कार करना पड़ता है. विकारों को त्याग कर गुरु को खोजना पड़ता है. योग और ध्यान को साधना पड़ता है. बंद पडे़ दिमाग को पूराने अनुभव को निकाल कर नये अनुभव से सजाना होता है. आंख को या यूँ कहें पंच इंद्रियों को साध कर उन पर नियंत्रण कर सरल और सत्य को जानने का प्रयास आरंभ करने मात्र से यह आनंद अनुभव होने लगता है. बहुत कठिन लग रहा है ना... फिर बस छुट्टी लो और काशी चले जाओ. गंगा के किनारे बैठो सबह शाम मौन होकर सब कुछ देखो... बस देखो, सुनो और जीवो.. अपने अंदर की आवाज को सुनो... आनंद वही से मिले गा. कहानी आनंद वन की यह है कि भगवान शिव को जब घूमने की इच्छा हुई तो पत्नी संग काशी आए. यहाँ वो आदि योगी नहीं केवल पति, पिता और महाश्मशान में भ्रमण करने वाले अघोरी हैं. यहाँ काशी में वो सृजन कर्ता हैं. प्रेम का प्रतीक हैं. श्रद्धा का केंद्र है. उमा देवी एक पत्नी भी है माँ भी है और अन्नपूर्णा भी हैं. दोनों के प्रेम का प्रतीक है काशी. काशी में उनके एकात्म के क्षण भी है और दाम्पत्य की सहभागिता और समर्पण है. गंगा और सूर्य की पहली किरण से मिल कर होने वाला अलौकिक सवेरा भी है. वेदों का पाठ हैं... मंदिर की घंटे की आवाज भक्त गणों की जय उद्घोष भी है. बस यहाँ पापहिन्ता का एहसास है. मुक्त होने का भाव है. खुद को कुछ नहीं से संपूर्णता में विलीन करने का एक प्रयास है. इसी एक पल में व्याप्त आनंद को जीवन कहते हैं. जो बह रहा है काशी में यहाँ के हर वाशी में... आइए और छोड़ दिजिए स्वयं को महादेव के शरण में फिर देखिए कैसे भोले भंडारी आपके सब दोष हर कर आपको हर हर महादेव कर देते हैं.... सृष्टि के कर्ता के सानिध्य में पाने की चाह ले कर नहीं देने की इच्छा लेकर आना... जीवन का रस प्राप्त हो जाएगा... तब कहना कि आनंद कानन में आनंद के कंद मूल प्राप्त हुए या नहीं... सब कुछ देकर जो प्राप्त होता है वही तो आनंद है. आगे की कड़ी में सुनिए मणिकर्णिका क्षेत्र की महता. जय हो सबकी... नारायण नारायण...
2021-03-12
10 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी के अन्य नाम आनन्द वन की कहानी...
शिवोऽहम् दोस्तों, आज की कहानी है बहुत छोटी क्यों कि आज आप और मैं बहुत व्यस्त हैं. अरे भाई घर में विवाह हो तो काम होते हैं, न. किसका विवाह. अरे बाबा भोले नाथ और गौरी माँ का. तो जल्दी और थोड़े में समझ लिजीए कि प्रलय के समय परम ब्रह्म से उत्पन्न शिव स्वयं को जानने की यात्रा में अपने विग्रह से प्रकृति रुपी शिवा को रचते हैं. और उनके साथ विहार करने के लिए एक भूमि का निर्माण करते हैं. जब वहाँ बसते हैं तो वहाँ के जीवन से वहाँ की शान्ति से इतना प्रेम हो जाता है वही सदा के लिए रह जाते हैं. उस धरा का नाम काशी है. जो भोले बाबा और शिवा के प्रेम और करुणा से कभी विमुक्त नहीं हुआ. इसलिए यह अविमुक्त क्षेत्र कहलाया. यह कथा श्रुति पर आधारित है. श्री हरि विष्णु ने अपने गणों को यह कथा सुनायीं है. इस सत्य को हर कोई नहीं जान सकता. केवल वही इसे जानने के योग्य हैं जो शिवा और शिव को मानते हैं. उनको जानते हैं. उनको खोजते हैं. उनसे मिलने और आशीर्वाद पाने की इच्छा रखते हैं. जो जीवन को समझने और उसे समझाने के लिए तत्पर हैं, जो परम ब्रह्म को स्वीकार करते हैं. जो सतकर्म करते हैं. जो न्याय संगत जीवन जीते हैं, जो हर जड़ और चेतन में शिव को देखते हैं. उसे नमन करते हैं बस वही शिव के गण इस रहस्य को सुनने और जानने के योग्य हैं. आगे स्कंध देव महर्षि अगस्त्य को बताते हैं कि प्रभु ने जब भी हिमालय से अन्य कही विहार किया वह जगह जो शिव को शंकर बनाती है. पिता तुल्य बनाती है. जो शिवा को अपने हिमालय राज्य से भी अधिक प्रिय है. जहाँ से कभी नहीं जाने का वचन लिया देवी गौरी ने भोले नाथ से. जिसमें आकर स्वयं को आनंद से भरा हुआ महसूस किया है उस आनंद नगरी का नाम शिव और उनके गणों ने आनंद कानन रखा. वही अन्नपूर्णा की प्रिय नगरी मोक्ष दायिनी नगरी केवल एक है. काशी. अंधकारमय जीवन में तेज और सजीव प्रकाश है काशी. तीनों लोकों में जब अंधकार चरम पर होता हैं तब भी जो जीवन की अभिलाषा से जलता रहता है. ऐसा कभी भी नहीं बूझने वाला जीवन रस है काशी. आह काशी, वाह काशी, जीवन का अंत और आरम्भ है काशी. शिव और शिवा के प्रेम और समर्पण का अनंत रंग है काशी. माँ पार्वती का शक्ति पीठ है यह काशी. तीन युगों का महाश्मशान, कलियुग की शान है काशी. इस धरा पर अभिमान है काशी. शब्दों से परे है हमारी काशी. नमः पार्वती पतये हर हर महादेव... का जयघोष है काशी.
2021-03-11
09 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी जो अविमुक्त क्षेत्र है- जाने क्या कहता है स्कंद पुराण
काशी कभी भी नष्ट नहीं होगी ऐसा कभी आपने भी सुना है. इसी तथ्य को स्पष्ट करने के लिए... यह कथा रुपी कहानी आपके लिए लायी हूँ. सुनिए. अगर लिंक नहीं खुल रहा तो अपने फोन में एंकर एप्प डाउनलोड किजीए. उसमें जाकर बनारसी सिंह की काशी के बनारस बनने की यात्रा की 1000 कहानियाँ सर्च करिये आपको मेरा पोडकास्ट मिल जाएगा. खुद भी सुनिए और औरों को भी बतायी ये. कहानी सुनाने की परम्परा को बचाना भी है और आगे की पीढ़ी को बताना भी है. कि मोबाइल और टीवी से परे भी एक दुनिया थी. जहाँ एक गाँव परिवार हुआ करता था....
2021-03-10
15 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Shankar bane aadi guru shankara charya, mila chandal rupi shiv se gyan...
In this episode you know about kashi impact on general people. Once Shankar as guru roaming in kashi after ganga snan. Early morning he met a chandal. Guru get angry and scoled that chandal. Why you roaming so early. You spoil my day. Get away from my way. Chandal smile and discuss with guru Shankar about moral and gyan and knowledge. Guru was shocked after some time he realized that chandal is holy god shiv. The father of kashi and mahadev of all lords. Supream power of distruction Lord shiv gave gyan in chandal costum to guru Shankar after that...
2021-03-05
09 min
कल थी काशी, आज है बनारस
देव दीपावली और भगवान शिव के त्रिपुरारि नाम में है ये sambandh
नमस्कार दोस्तों, कार्तिक पूर्णिमा की बहुत बधाई. आज की कहानी है शिव जी के त्रिपुरारी नाम पड़ने की. शिव जी ने तारकासुर के तीन पुत्रों त्रिपुरासुर का दिव्य रथ और बाण से अंत किया और देवों को उनके लोक लौटाए. सब ने शिव का गुण गान किया पुरी काशी को दियों से सजाया. तब से ही कार्तिक पूर्णिमा को काशी में देव दिपावली का पर्व मनाया जा रहा. इसकी इतनी महिमा है की दूर विदेशों से सैलानियों को काशी खींच लाती है.
2020-12-01
09 min
कल थी काशी, आज है बनारस
Kashi ka शक्ति केंद्र अन्नपूर्णा mandir
इस बार की कहानी या लोककथा को प्रत्यक्ष रुप से आप महसूस भी कर सकते हैं. पर इसको अनुभव करने के लिए अब आपको अगले वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी यानि तेरस तक इंतजार करना होगा. क्योंकि हर वर्ष धनतेरस को ही देवी अन्नपूर्णा के मंदिर के द्वार आम भक्तों के लिए पांच दिन के लिए खुलते हैं. तभी से काशी में दिपोत्सव भी शुरू हो जाता है जो अन्न कूट तक चलता है. इस दौरान भक्तों को अन्ना धन का प्रसाद भी मिलता है. जिसे पाकर भक्त का जीवन और परिवार समृद्ध हो जाता है. लाखों की संख्या में लोग देश दुनिया से काशी आते हैं और माता अन्नपूर्णा के स्वर्णिम प्रतिमा के दर्शन करते हैं. इस सनातन परंपरा से जुड़ी एक कहानी है. स्कंध पुराण में वर्णित हैं कि जब देवी पार्वती ने काशी में शिव जी के साथ गृहस्थी शुरू किया. तब काशी महाश्मशान के रुप में जानी जाती थी. आम गृहणी की तरह देवी को भी अपने घर 🏡 यानि काशी के श्मशान कहे जाने पर उचित नहीं लगता था फिर उन्होंने शिव जी से भी इस बारे में बात की. तब दोनों लोगों ने तय किया सतयुग, त्रेता युग और द्वापरयुग में काशी को भले ही महाश्मशान नगरी कहा जाए पर कलियुग में काशी समृद्ध और संपन्न नगरी के रुप में जानी जाएगी. इसलिए अब की काशी जहाँ एक ओर शिव का प्रिय श्मशान है वहीं यह देवी के प्रधान शाक्ति पीठ में से एक है. काशी के केदारखंड में स्थित अन्नपूर्णा देवी यही काशी से सभी के लिए अन्ना और धन का प्रबंध करती हैं. कहते हैं काशी में मां का आशीर्वाद है यहाँ कोई भी भूखा पेट नहीं होता. एक अन्य पुराण कहता है कि शिव जी काशी में एक गृहस्थ के रुप में रहते थे, देवी पार्वती जो शिव की अर्धांगिनी हैं वह एक गृहणी सी सारे काशी की व्यवस्था देखती हैं, काशीवासी बाबा और माता की संतान है जिनकी सुरक्षा और पोषण इन दोनों दंपति का दायित्व है जिसे महादेव और देवी गौरी सदियों से निभा रहे. देवी का अन्नपूर्णा स्वरूप मातृत्व से भरा और जीवन उर्जा से भरा है. काशी एक मस्तमौला शहर है. यहाँ लोग उठते हैं हरहर महादेव हर हर गंगे बोलते हुए और सोते हैं मां अन्नपूर्णा को धन्यवाद करते हुए. बेफिक्ररी काशी की हवा में है. क्योंकि जहाँ के इष्ट महादेव हो और माँ देवी पार्वती वहाँ के लोग को चिंता कैसी. आप भी सब कुछ महादेव और माता के सामने समर्पित कर दें. उनमें विश्वास रखें आपका कल्याण होगा. प्रेम से बोलिये उमा पार्वती पतये नमः हर हर महादेव..... शुभ रात्रि..
2020-11-16
10 min
कल थी काशी, आज है बनारस
भगवान राम की काशी की यात्रा? जानिए क्या था इसमे खास!
हर हर महादेव साथियों, आप का बहुत बहुत स्वागत है काशी के बनारस बनने की यात्रा में... यह यात्रा इतिहास से भी पूरानी है. इस यात्रा में सतयुग, त्रेता युग, द्वापरयुग और कलयुग से जुड़ी अनगिनत कहानियाँ और घटनाएँ हैं जो हमारे जानने और विचार करने के लिए जरुरी हैं. इस पंचकोसी यात्रा की पहली कहानी जो मुझे मिली वो श्री राम और सीता जी की है. रावण वध के बाद राम जी अयोध्या आये तब अपने पिता को श्रवण कुमार के माता- पिता द्वारा दिए गये श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए चारों भाई और सीता जी काशी की पंचकोसी यात्रा पर आये थे. यहाँ रामेश्वर मंदिर में उनके द्वारा स्थापित शिव लिंग भी है. दुसरी कहानी द्वापर युग की है, महाभारत काल में जब पांडव अज्ञात वास में थे तब उन्होंने भी काशी की पंचकोसी यात्रा की. काशी विश्वनाथ से विजय की कामना की. शिव पुर के पांडव मंदिर में द्रौपदी जलकुंड है. जो प्रमाणित करता है कि पांडव इस स्थान पर आए थे. इन कहानियों को सुनकर आपके मन में भी इस यात्रा की इच्छा हो रही तो बैग पैक करें और अपना भोजन साथ लाएं. ठहरने और रात गुजारने के लिए हर पड़ाव के बाद आपको सस्ती धर्म शाला मिलेगी. आज कल विलेज टुरिजम फैशन में भी है. प्रकृति का सान्निध्य हो, गंगा के घाट हो, महादेव का आशीर्वाद हो तो यह यात्रा आपके जीवन में आनंद भर देगी. पंचकोसी यात्रा से आप अपनी कोई भी इच्छा पूर्ण कर सकते हैं. किसी अपने के पाप काटने, विजय कामना और मोक्ष प्राप्ति के लिए और धार्मिक विश्वास को अटूट करने के लिए, अपने धर्म के इतिहास को स्वयं जानने के लिए, जीवन मूल्य को समझने के लिए काशी की पंचकोसी यात्रा सबसे अहम लक्ष्य है. आगे और भी कहानियाँ आपके इंतजार में हैं आप भी तैयार रहे इन अदभुत और आश्चर्य से भरी काशी के जीवन की यात्रा के लिए. पढ़ते रहिये और सुनते रहिये. यही हमारी धरोहर है. इसे बांटना और सबके जीवन का हिस्सा बनाना ही मेरा धर्म है. फिर मिलेंगे जल्द ही. कहने और लिखने में कोई भी हुई हो तो इस मित्र को क्षमा करिये गा.
2020-11-11
12 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी के बनने की क्या थी वजह ..सुनिए यहां
ॐ नमः शिवाय. आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरे पाॅडकाॅस्ट पर. आप सुन रहे बनारसी सिंह को. काशी के बनारस बनने की यात्रा की हजार कहानियाँ पाॅडकाॅस्ट में अब तक आपने दो कहानियाँ सुनी है.आज 8 नवंबर रविवार को आप सुन रहे तीसरी कहानी. इस कहानी का आधार भी लोक कथा है. शिव जी से उनकी पत्नी पार्वती जी आग्रह करती है कि मुझे एकांतवास के लिए कोई अन्य शांति पूर्ण स्थान बताऐं. कैलाश पर मन थोड़ा विचलित रहता है. शिव जी ने कहा ठीक है देवी आपके लिए नये स्थान की खोज करता हूँ. शिव जी श्रृषि द्रोणागिरि के पास गये. उनके बड़े पुत्र द्रोणार्थ को मांगा. उनसे लाकर गंगा के उतरी तट पर रखा. गंगा की धारा से पर्वत हरा भरा हो गया. मानव बस्ती बस गयी. तब शिव जी देवी को वहां ले गये, पार्वती जी को हरा भरा और जीवन से भरपूर स्थान पसंद आया. देवी ने वही तप किया. उनके तप के प्रभाव से वह स्थान पवित्र और दिव्य हो गयी. शिव जी ने देवी की रक्षा में काल भैरव को यहाँ भेजा. फिर कुछ समय बाद स्वयं आये तो देवी ने कैलाश के बजाय इसी स्थान पर रहने की इच्छा जताई. प्रभु से आग्रह किया आप भी यही विराजो. पत्नी की इच्छा को मान शिव जी ने निराकार रुप से विश्वेश्वर रुप में ज्योतिर्लिंग में स्थित हुए. इस तरह काशी के नाथ विश्वनाथ की कृपा से काशी की स्थापना हुई. आगे की कहानी काशी के पंचक्रोशी यात्रा की.
2020-11-08
12 min
कल थी काशी, आज है बनारस
गौरी का रूठना और शिव जी का ध्यान में जाना, देवों ने की लीला और बसी काशी धाम....
नमस्कार सभी को. आपके लिए काशी के निर्माण की कथा ले आई हूं. देवी पार्वती के हजार साल तपस्या के बाद जब भोले नाथ ने उनके प्रेम और समर्पण को स्वीकार उनसे विवाह कर लिया. दोनों दंपति दांपत्य का आनंद ले रहे थे. तब एक दिन देवी पार्वती अपने माता पिता से मिलने हिमालय गयीं. वहाँ बड़ा आदर सत्कार किया माता पिता ने गौरी जी का. फिर गौरी जी से मिलने उनकी सखियाँ भी आयी. बातचीत हंसी मजाक में किसी सखी ने गौरी जी से यह कह दिया कि अरे पार्वती विवाह बाद भी तुम मायके में रहती हो. तुम्हारा ससुराल कहाँ है. अरे भोले बाबा तो भोले हैं. उनका कैलाश तुम्हारे पिता के राज्य का हिस्सा ही तो है. तो तुम अपने मायके में ही रहती हो न. हंसी मजाक में बात आयी गयी हो गयी. पर देवी गौरी को बुरा लगा. जब वो कैलाश लौटीं तो अपने स्वामी से सब बात कही. फिर आग्रह किया कि क्यों न हमारे लिए भी एक नयी नगरी का निर्माण हो. मुझे अच्छा नहीं लगता कैलाश पर रहना सखियाँ ताना मारती हैं. प्रभु ने देवी को सुना और समझाया भी पर पार्वती जी एक राज्य कन्या अपना हठ छोड़ ने वाली नहीं थीं. उनको समझा भोले बाबा ध्यान में लीन हो गये. देवी को चैन कहां. वो झलाहट में इधर उधर टहलती रही. उसी समय देवों के संचार प्रमुख नारद जी वहां से जा रहे थे तो सोचा क्यों न बाबा भोले नाथ और पार्वती के दर्शन कर लूं. जब वो कैलाश पहुंचे तो देखा कि भोले नाथ ध्यान में लीन है और देवी पार्वती उदास बैठी है. नारद जी ने देवी को नमन किया और दुःख का कारण पूछा. गौरी जी ने अपनी मन की व्यथा बतायी. नारद जी ने सांत्वना दी देवी को और फिर महादेव को प्रणाम कर उनके ध्यान से उठने का इंतजार करने लगे. भोले बाबा को आभास हुआ कि कोई उनकी प्रतीक्षा कर रहा. बाबा ने आंखें खोली और नारद का कैलाश पर आने का कारण पूछा. नारदजी ने पुनः नमन कर दर्शन की अभिलाषा को आने का प्रयोजन बताया. बातचीत जब आगे बड़ी तो नारद जी से भोले बाबा ने भी पार्वती जी की इच्छा से अवगत कराया. नारद जी ने कहा प्रभु भक्त पर तनिक विश्वास करिये और एक अवसर दिजिए. बाबा ने अनुमति दी. नारद मुनि देव लोक गये देवों से विचार विमर्श किया.... आगे की कहानी आप सुन कर आनंद लीजिए. हर दिन काशी से जुड़ी एक नयी कहानी आपको सुनाना है. इस कहानी को सुनिए. कोरोना से बच कर रहिये, दो गज दुरी अभी है जरुरी. मास्क पहने और अपनो का ध्यान रखें. फिर मिलेंगे तब तक के लिए हर हर महादेव. हंसते और मुस्कुराते रहिए.
2020-11-07
20 min
कल थी काशी, आज है बनारस
काशी/ वाराणसी/बनारस: जो है शिव-शिवा लोकप्रिय धाम, एक कहानी काशी नगरी की
काशी नगर के वाराणसी और फिर बनारस बनने की हजारों वर्षों पुरानी यात्रा से जुड़ी कुछ कहानियों का संग्रह है यह पाडकाॅस्ट. कहानियों का हमारे जीवन से बड़ा गहरा और पुराना संबंध है. जब हम बच्चे थे तो दादी और नानी, दादा, मौसी, ताऊ, ताइ घर के सभी बच्चों को अपने आस पास बैठा कर सोने से पहले कभी राजा की कहानी,कभी परियों की ,तो कभी वीरगाथा, कभी भूतों की तो कभी भक्ति रस से भरी कथा और कहानियाँ सुनाते थे. यह कहानियाँ आपके जीवन को दशा और दिशा देने का काम करती. कहानी सुनना और सुनाना मुझे आज भी पसंद है. यह कहानी एक ऐसे शहर की है जो पौराणिक और पुरातन से भी पुरातन है. जिसका इतिहास इतिहास विषय के जन्म से भी पुराना है. काशी भारत की मोक्षदायिनी और धार्मिक, सांस्कृतिक और कला और ज्ञान का केंद्र है. काशी की इस यात्रा में पहली कहानी काशी के निर्माता और प्रेरणा स्रोत भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी माता गौरी से जुड़ा है. आगे की कहानी में काशी के वैदिक स्वरूप से आरम्भ होकर, आर्य सभ्यता, जनपदीय व्यवस्था भारतीय शासकों से होकर, मुगलकाल में बनारस बनने और फिर अंग्रेजों के काल में आजादी की लड़ाई में बनारस की भूमिका, स्वतंत्र भारत देश के आजाद शहर बनारस की कहानी, फिर आज की काशी और आधुनिक बनारस की कहानियाँ आपके सामने अपनी आवाज में प्रस्तुत करती रहूंगी. आप को काशी और बनारस की कहानियाँ सुनाने वाली इस आवाज यानि मेरे बारे में भी कुछ जानकारी दे ती हूं. मैं बनारस में ही पली हुं. यही मेरी धर्म और ज्ञान भूमि है. यही से जीवन को जाना है. इसी काशी से पत्रकार बनने का स्वपन बुना. काशी ने मुझे चुना और मैनें काशी को. यह प्रेम है. मेरा काशी शहर के लिए और यह काशी नगरी का प्रेम और विश्वास है मुझ पर जो मुझे काशी ने अपनी यात्रा में शामिल किया. बाबा काशी विश्वनाथ मेरे प्रिय प्रभु हैं. जैसे उन्होंने सभी ज्ञान को सप्तर्षि को प्रदान किया और श्रृषिमुनियो ने वेदों की रचना की. वैसे ही महादेव काशी से जुड़ी हर कहानी को आप तक पहुंचाने में मेरा मार्ग दर्शन करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है. क्योंकि काशी शिव की नगरी है शिव ही सत्य हैं. सत्य पर विश्वास करना मेरा धर्म है. मेरा धर्म है आपको यह बताना कि इस सृष्टि में कुछ भी ईश्वर और समय से परे नहीं. केवल ईश्वर ही है जो सब जगह है और कहीं भी नहीं. आप सभी को मेरा आमंत्रण है आइए काशी के बनारस बनने की इस यात्रा का आनंद लिजीए और दुसरों को भी सुनाऐं. कहानी चलती रहनी चाहिए क्योंकि काशी सृष्टि के आरंभ से है. जीवन के अंत तक रहेगी क्योंकि यह काशी है जिसे विनाश कर्ता भगवान शिव का संरक्षण प्राप्त है. काशी में अन्नपूर्णा मां का वास है. भैरव काशी के क्षेत्र पाल हैं. संकट मोचन हनुमान सबका मंगल करते हैं और दुर्गा कुण्ड में विराजमान कूष्माण्डा देवी भय और शत्रु का नाश करने वाली है. गंगा के उत्तर तट पर बसी काशी जीवंत और जिंदा शहर बनारस बा. इहां जिंदगी में ठाठ हव. घाटन पर वेदन के पाठ हव. बनारसी घराना के संगीत हव, मिठ्ठ बनारसी पान हव, बनारसी साड़ी और रेशम के भरमार हव. गलियों में बसला बनारस हव कि बनारस में गली हव. घण्टा, घंटी, ताली के ताल हव, ब्रह्मा मुहर्त में जागे वाला, बाबा के नाम गावे वाला इहे त शिव क मोक्षधाम हव. अट्ठासी ठो घाट हव. मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र के तारन घाट हव. आगे और भी बहुत कुछ है काशी में. सुनने के लिए जुड़े मेरे पाडकाॅस्ट काशी के बनारस बनने की हजार कहानी से. गलती के लिए क्षमा करिएगा. बनारसी सिंह को सुनने के लिए आपको धन्यवाद. हर हर महादेव....
2020-11-06
05 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi-11
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2020-06-04
11 min
Kavita Kahani
Kashi ka Assi-10
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2020-06-03
22 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi-9
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2020-05-05
19 min
Kavita Kahani
Kashi ka assi-8
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2020-05-04
23 min
Highway On My Podcast
Ep 10: Raan Ke Kabab Musallam from a royal kitchen, and trying Panchhi Petha in Agra
In this episode, Rocky, Mayur, Abhinandan and Prashant visit the wild wild west of India: Uttar Pradesh. As the gang wonders where to begin, Rocky decides to go someplace that’s “done to death” and talks about why it still stands ground: Tunday Kababi in Lucknow. While Rocky, Abhinandan and Prashant cannot stop gushing over the delicious food, Mayur enlightens listeners about how the famous kebab place came to be. Rocky says Tunday has a taste that’s unmatched anywhere else in the world, which is what makes it the legend it is today. From Tunday Kababi, which was born at the b...
2020-05-03
1h 20
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi-7
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2020-05-01
32 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi- 6
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2020-04-28
20 min
Kavita Kahani
kashi Ka Assi-5
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2020-04-27
29 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi-4
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2020-04-23
21 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi- 3
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2020-04-19
19 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi- 2
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2020-04-18
26 min
Kavita Kahani
Kashi Ka Assi- 1
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2020-04-17
22 min
Morning No. 1
RJ VISHAL TALKS ABOUT BANARASI HEADLINES
#Superhits #Redfm #Bajaate #Raho #Varanasi
2018-03-29
02 min
Morning No. 1
RJ VISHAL TALKS ABOUT BANARASI KHOOBSURATI
#Superhits #Redfm #Bajaate #Raho #Varanasi #Morning #Number #One
2018-03-22
02 min
??????????????
Wonder S3 Ep 04 - Varanasi
In Northern India there lies a city, believed to be the oldest continuously inhabited city in the world and the spiritual home of India. Thousands flock here each day, to bathe in the waters of the Ganges, to cremate their loved ones, to pray in their many temples and/or to commune and to learn. This city has a strong heritage in music, literature, arts and craft, the most cherished being the art of silk weaving, known the world over for the beautiful and prized Banarasi sarees. It is also a city of legends, with myths and tales of curiosity acr...
2018-02-21
16 min
Wonder | Tales of Wonder and Curiosity
Wonder S3 Ep 04 - Varanasi
In Northern India there lies a city, believed to be the oldest continuously inhabited city in the world and the spiritual home of India. Thousands flock here each day, to bathe in the waters of the Ganges, to cremate their loved ones, to pray in their many temples and/or to commune and to learn. This city has a strong heritage in music, literature, arts and craft, the most cherished being the art of silk weaving, known the world over for the beautiful and prized Banarasi sarees. It...
2018-02-21
16 min
Kabeer Dohas
Kabir Gur Base Banarasi
2017-04-01
01 min
Hoopdarshan
Hoopdarshan Episode 37: India's historic performances at FIBA Asia Challenge with Vishesh Bhriguvanshi
Vishesh Bhriguvanshi is a busy man. Between starring for India at the historic FIBA Asia Challenge performance in Iran, winning the Maldives pro basketball league in his first season, and leading ONGC to the FIBA Asia Champions Cup in China, the superstar guard found time to guest in Episode 37 of the Hoopdarshan podcast. With Kaushik Lakshman and Karan Madhok, Bhriguvanshi recapped India's recent big wins, his stacked international basketball schedule, and revealed why's he's now the Banarasi James Harden.
2016-10-08
59 min