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Mohit Mishra

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The MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2024-04-2200 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2022-10-2100 minNight Tale Tapes | Short Hindi Stories and Poems | Hindi Podcasts2022-03-1501 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2022-03-1316 minStories for Kids by Mohit Mishra2021-12-3142 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-12-0906 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-12-0900 minAah se Upja Gaan2021-10-1746 minStories for Kids by Mohit Mishra2021-10-1027 minStories for Kids by Mohit Mishra2021-10-0942 minAah se Upja Gaan
Aah se Upja GaanRashmirathi Saptam Sarg part -2 रश्मीरथी सप्तम सर्ग-भाग २ by Pandit Shri Ramdhari Singh Dinkar Voice Mohit Mishra Karn ka Mahaprayanरथ सजा, भेरियां घमक उठीं, गहगहा उठा अम्बर विशाल,कूदा स्यन्दन पर गरज कर्ण ज्यों उठे गरज क्रोधान्ध काल ।बज उठे रोर कर पटह-कम्बु, उल्लसित वीर कर उठे हूह,उच्छल सागर-सा चला कर्ण को लिये क्षुब्ध सैनिक-समूह ।हेषा रथाश्व की, चक्र-रोर, दन्तावल का वृहित अपार,टंकार धुनुर्गुण की भीम, दुर्मद रणशूरों की पुकार ।खलमला उठा ऊपर खगोल, कलमला उठा पृथ्वी का तन,सन-सन कर उड़ने लगे विशिख, झनझना उठी असियाँ झनझन ।तालोच्च-तरंगावृत बुभुक्षु-सा लहर उठा संगर-समुद्र,या पहन ध्वंस की लपट लगा नाचने समर में स्वयं रुद्र ।हैं कहाँ इन्द्र ? देखें, कितना प्रज्वलित मर्त्य जन होता है ?सुरपति से छले हुए नर का कैसा प्रचण्ड रण होता है ?अङगार-वृष्टि पा धधक उठ जिस तरह शुष्क कानन का तृण,सकता न रोक शस्त्री की गति पुञ्जित जैसे नवनीत मसृण ।यम के समक्ष जिस तरह नहीं चल पाता बध्द मनुज का वश,हो गयी पाण्डवों की सेना त्योंही बाणों से विध्द, विवश ।भागने लगे नरवीर छोड वह दिशा जिधर भी झुका कर्ण,भागे जिस तरह लवा का दल सामने देख रोषण सुपर्ण !'रण में क्यों आये आज ?' लोग मन-ही-मन में पछताते थे,दूर से देखकर भी उसको, भय से सहमे सब जाते थे ।काटता हुआ रण-विपिन क्षुब्ध, राधेय गरजता था क्षण-क्षण ।सुन-सुन निनाद की धमक शत्रु का, व्यूह लरजता था क्षण-क्षण ।अरि की सेना को विकल देख, बढ चला और कुछ समुत्साह;कुछ और समुद्वेलित होकर, उमडा भुज का सागर अथाह ।गरजा अशङक हो कर्ण, 'शल्य ! देखो कि आज क्या करता हूं,कौन्तेय-कृष्ण, दोनों को ही, जीवित किस तरह पकडता हूं ।बस, आज शाम तक यहीं सुयोधन का जय-तिलक सजा करके,लौटेंगे हम, दुन्दुभि अवश्य जय की, रण-बीच बजा करके ।इतने में कुटिल नियति-प्रेरित पड ग़ये सामने धर्मराज,टूटा कृतान्त-सा कर्ण, कोक पर पडे टूट जिस तरह बाज ।लेकिन, दोनों का विषम युध्द, क्षण भर भी नहीं ठहर पाया,सह सकी न गहरी चोट, युधिष्ठर की मुनि-कल्प, मृदुल काया ।भागे वे रण को छोड, क़र्ण ने झपट दौडक़र गहा ग्रीव,कौतुक से बोला, 'महाराज ! तुम तो निकले कोमल अतीव ।हां, भीरु नहीं, कोमल कहकर ही, जान बचाये देता हूं ।आगे की खातिर एक युक्ति भी सरल बताये देता हूं ।'हैं विप्र आप, सेविये धर्म, तरु-तले कहीं, निर्जन वन में,क्या काम साधुओं का, कहिये, इस महाघोर, घातक रण में ?मत कभी क्षात्रता के धोखे, रण का प्रदाह झेला करिये,जाइये, नहीं फिर कभी गरुड क़ी झपटों से खेला करिये ।'भागे विपन्न हो समर छोड ग्लानि में निमज्जित धर्मराज,सोचते, "कहेगा क्या मन में जानें, यह शूरों का समाज ?प्राण ही हरण करके रहने क्यों नहीं हमारा मान दिया ?आमरण ग्लानि सहने को ही पापी ने जीवन-दान दिया ।"समझे न हाय, कौन्तेय ! कर्ण ने छोड दिये, किसलिए प्राण,गरदन पर आकर लौट गयी सहसा, क्यों विजयी की कृपाण ?लेकिन, अदृश्य ने लिखा, कर्ण ने वचन धर्म का पाल किया,खड्ग का छीन कर ग्रास, उसे मां के अञ्चल में डाल दिया ।कितना पवित्र यह शील ! कर्ण जब तक भी रहा खडा रण में,चेतनामयी मां की प्रतिमा घूमती रही तब तक मन में ।सहदेव, युधिष्ठर, नकुल, भीम को बार-बार बस में लाकर,कर दिया मुक्त हंस कर उसने भीतर से कुछ इङिगत पाकर ।देखता रहा सब श्लय, किन्तु, जब इसी तरह भागे पवितन,बोला होकर वह चकित, कर्ण की ओर देख, यह परुष वचन,'रे सूतपुत्र ! किसलिए विकट यह कालपृष्ठ धनु धरता है ?मारना नहीं है तो फिर क्यों, वीरों को घेर पकडता है ?''संग्राम विजय तू इसी तरह सन्ध्या तक आज करेगा क्या ?मारेगा अरियों को कि उन्हें दे जीवन स्वयं मरेगा क्या ?रण का विचित्र यह खेल, मुझे तो समझ नहीं कुछ पडता है,कायर ! अवश्य कर याद पार्थ की, तू मन ही मन डरता है ।'हंसकर बोला राधेय, 'शल्य, पार्थ की भीति उसको होगी,क्षयमान्, क्षनिक, भंगुर शरीर पर मृषा प्रीति जिसको होगी ।इस चार दिनों के जीवन को, मैं तो कुछ नहीं समझता हूं,करता हूं वही, सदा जिसको भीतर से सही समझता हूं ।'पर ग्रास छीन अतिशय बुभुक्षु, अपने इन बाणों के मुख से,होकर प्रसन्न हंस देता हूं, चञ्चल किस अन्तर के सुख से;
2021-10-0844 minAah se Upja Gaan
Aah se Upja GaanRashmirathi Saptam Sarg part -1 रश्मीरथी सप्तम सर्ग-भाग १ कर्ण की हुंकार Karna Ki Hunkar by Pandit Shri Ramdhari Singh Dinkar Voice Mohit Mishra1निशा बीती, गगन का रूप दमका,किनारे पर किसी का चीर चमका।क्षितिज के पास लाली छा रही है,अतल से कौन ऊपर आ रही है ?संभाले शीश पर आलोक-मंडलदिशाओं में उड़ाती ज्योतिरंचल,किरण में स्निग्ध आतप फेंकती-सी,शिशिर कम्पित द्रुमों को सेंकती-सी,खगों का स्पर्श से कर पंख-मोचनकुसुम के पोंछती हिम-सिक्त लोचन,दिवस की स्वामिनी आई गगन में,उडा कुंकुम, जगा जीवन भुवन में ।मगर, नर बुद्धि-मद से चूर होकर,अलग बैठा हुआ है दूर होकर,उषा पोंछे भला फिर आँख कैसे ?करे उन्मुक्त मन की पाँख कैसे ?मनुज विभ्राट् ज्ञानी हो चुका है,कुतुक का उत्स पानी हो चुका है,प्रकृति में कौन वह उत्साह खोजे ?सितारों के हृदय में राह खोजे ?विभा नर को नहीं भरमायगी यह है ?मनस्वी को कहाँ ले जायगी यह ?कभी मिलता नहीं आराम इसको,न छेड़ो, है अनेकों काम इसको ।महाभारत मही पर चल रहा है,भुवन का भाग्य रण में जल रहा है।मनुज ललकारता फिरता मनुज को,मनुज ही मारता फिरता मनुज को ।पुरुष की बुद्धि गौरव खो चुकी है,सहेली सर्पिणी की हो चुकी है,न छोड़ेगी किसी अपकर्म को वह,निगल ही जायगी सद्धर्म को वह ।मरे अभिमन्यु अथवा भीष्म टूटें,पिता के प्राण सुत के साथ छूटें,मचे घनघोर हाहाकार जग में,भरे वैधव्य की चीत्कार जग में,मगर, पत्थर हुआ मानव- हृदय है,फकत, वह खोजता अपनी विजय है,नहीं ऊपर उसे यदि पायगा वह,पतन के गर्त में भी जायगा वह ।पड़े सबको लिये पाण्डव पतन में,गिरे जिस रोज होणाचार्य रण में,बड़े धर्मिंष्ठ, भावुक और भोले,युधिष्ठिर जीत के हित झूठ बोले ।नहीं थोड़े बहुत का मेद मानो,बुरे साधन हुए तो सत्य जानो,गलेंगे बर्फ में मन भी, नयन भी,अँगूठा ही नहीं, संपूर्ण तन भी ।नमन उनको, गये जो स्वर्ग मर कर,कलंकित शत्रु को, निज को अमर कर,नहीं अवसर अधिक दुख-दैन्य का है,हुआ राधेय नायक सैन्य का है ।जगा लो वह निराशा छोड़ करके,द्विधा का जाल झीना तोड़ करके,गरजता ज्योति-के आधार ! जय हो,चरम आलोक मेरा भी उदय हो ।बहुत धुधुआ चुकी, अब आग फूटे,किरण सारी सिमट कर आज छुटे ।छिपे हों देवता ! अंगार जो भी,"दबे हों प्राण में हुंकार जो भी,उन्हें पुंजित करो, आकार दो हे !मुझे मेरा ज्वलित श्रृंगार दो हे !पवन का वेग दो, दुर्जय अनल दो,विकर्तन ! आज अपना तेज-बल हूँ दो !मही का सूर्य होना चाहता हूँ,विभा का तूर्य होना चाहता हूँ।समय को चाहता हूँ दास करना,अभय हो मृत्यु का उपहास करना ।भुजा की थाह पाना चाहता हूँ,हिमालय को उठाना चाहता हूँ,समर के सिन्धु को मथ कर शरों से,धरा हूँ चाहता श्री को करों से ।ग्रहों को खींच लाना चाहता हूँ,हथेली पर नचाना चाहता हूँ
2021-10-0613 minStories for Kids by Mohit Mishra2021-10-0530 minStories for Kids by Mohit Mishra2021-10-0418 minAah se Upja Gaan
Aah se Upja GaanRashmirathi Shast Sarg part -2 रश्मीरथी षष्ठ सर्ग-भाग २ By Pandit Ramdhari Singh Dinkar Mohit Mishraभीष्म का चरण-वन्दन करके,ऊपर सूर्य को नमन करके,देवता वज्र-धनुधारी सा,केसरी अभय मगचारी-सा,राधेय समर की ओर चला,करता गर्जन घनघोर चला।पाकर प्रसन्न आलोक नया,कौरव-सेना का शोक गया,आशा की नवल तरंग उठी, जन-जन में नयी उमंग उठी,मानों, बाणों का छोड़ शयन,आ गये स्वयं गंगानन्दन।सेना समग्र हुकांर उठी,‘जय-जय राधेय !’ पुकार उठी,उल्लास मुक्त हो छहर उठा,रण-जलधि घोष में घहर उठा,बज उठी समर-भेरी भीषण,हो गया शुरू संग्राम गहन।सागर-सा गर्जित, क्षुभित घोर,विकराल दण्डधर-सा कठोर,अरिदल पर कुपित कर्ण टूटा,धनु पर चढ़ महामरण छूटा।ऐसी पहली ही आग चली,पाण्डव की सेना भाग चली।झंझा की घोर झकोर चली,डालों को तोड़-मरोड़ चली,पेड़ों की जड़ टूटने लगी,हिम्मत सब की छूटने लगी,ऐसा प्रचण्ड तूफान उठा,पर्वत का भी हिल प्राण उठा।प्लावन का पा दुर्जय प्रहार,जिस तरह काँपती है कगार,या चक्रवात में यथा कीर्ण,उड़ने लगते पत्ते विशीर्ण,त्यों उठा काँप थर-थर अरिदल,मच गयी बड़ी भीषण हलचल।सब रथी व्यग्र बिललाते थे,कोलाहल रोक न पाते थे।सेना का यों बेहाल देख,सामने उपस्थित काल देख,गरजे अधीर हो मधुसूदन,बोले पार्थ से निगूढ़ वचन।"दे अचिर सैन्य का अभयदान,अर्जुन ! अर्जुन ! हो सावधान,तू नहीं जानता है यह क्या ?करता न शत्रु पर कर्ण दया ?दाहक प्रचण्ड इसका बल है,यह मनुज नहीं, कालानल है।"बड़वानल, यम या कालपवन,करते जब कभी कोप भीषण सारा सर्वस्व न लेते हैं,उच्छिष्ट छोड़ कुछ देते हैं।पर, इसे क्रोध जब आता है;कुछ भी न शेष रह पाता है।बाणों का अप्रतिहत प्रहार,अप्रतिम तेज, पौरूष अपार,त्यों गर्जन पर गर्जन निर्भय,आ गया स्वयं सामने प्रलय,तू इसे रोक भी पायेगा ?या खड़ा मूक रह जायेगा।‘यह महामत्त मानव-कुञ्जर,कैसे अशंक हो रहा विचर,कर को जिस ओर बढ़ाता है?पथ उधर स्वयं बन जाता है।तू नहीं शरासन तानेगा,अंकुश किसका यह मानेगा ?‘अर्जुन ! विलम्ब पातक होगा,शैथिल्य प्राण-घातक होगा,उठ जाग वीर ! मूढ़ता छोड़,धर धनुष-बाण अपना कठोर।तू नहीं जोश में आयेगाआज ही समर चुक जायेगा।"केशव का सिंह दहाड़ उठा,मानों चिग्घार पहाड़ उठा।बाणों की फिर लग गयी झड़ी,भागती फौज हो गयी खड़ी।जूझने लगे कौन्ते
2021-10-0328 minAah se Upja Gaan
Aah se Upja GaanRashmirathi Shasht Sarg part -1 रश्मीरथी षष्ठ सर्ग-भाग १ by Pandit Shri Ramdhari Singh Dinkar Voice Mohit Mishraनरता कहते हैं जिसे, सत्तवक्या वह केवल लड़ने में है ?पौरूष क्या केवल उठा खड्गमारने और मरने में है ?तब उस गुण को क्या कहेंमनुज जिससे न मृत्यु से डरता है ?लेकिन, तक भी मारता नहीं,वह स्वंय विश्व-हित मरता है।है वन्दनीय नर कौन ? विजय-हितजो करता है प्राण हरण ?या सबकी जान बचाने कोदेता है जो अपना जीवन ?चुनता आया जय-कमल आज तकविजयी सदा कृपाणों से,पर, आह निकलती ही आयीहर बार मनुज के प्राणों से।आकुल अन्तर की आह मनुज कीइस चिन्ता से भरी हुई,इस तरह रहेगी मानवताकब तक मनुष्य से डरी हुई ?पाशविक वेग की लहर लहू मेंकब तक धूम मचायेगी ?कब तक मनुष्यता पशुता केआगे यों झुकती जायेगी ?यह ज़हर ने छोड़ेगा उभार ?अंगार न क्या बूझ पायेंगे ?हम इसी तरह क्या हाय, सदापशु के पशु ही रह जायेंगे ?किसका सिंगार ? किसकी सेवा ?नर का ही जब कल्याण नहीं ?किसके विकास की कथा ? जनों केही रक्षित जब प्राण नहीं ?इस विस्मय का क्या समाधान ?रह-रह कर यह क्या होता है ?जो है अग्रणी वही सबसेआगे बढ़ धीरज खोता है।फिर उसकी क्रोधाकुल पुकारसबको बेचैन बनाती है,नीचे कर क्षीण मनुजता कोऊपर पशुत्व को लाती है।हाँ, नर के मन का सुधाकुण्डलघु है, अब भी कुछ रीता है,वय अधिक आज तक व्यालों केपालन-पोषण में बीता है।ये व्याल नहीं चाहते, मनुजभीतर का सुधाकुण्ड खोले,जब ज़हर सभी के मुख में होतब वह मीठी बोली बोले। थोड़ी-सी भी यह सुधा मनुज कामन शीतल कर सकती है,बाहर की अगर नहीं, पीड़ाभीतर की तो हर सकती है।लेकिन धीरता किसे ? अपनेसच्चे स्वरूप का ध्यान करे,जब ज़हर वायु में उड़ता होपीयूष-विन्दू का पान करे।पाण्डव यदि पाँच ग्रामलेकर सुख से रह सकते थे,तो विश्व-शान्ति के लिए दुःखकुछ और न क्या कह सकते थे ?सुन कुटिल वचन दुर्योधन काकेशव न क्यों यह का नहीं-"हम तो आये थे शान्ति हेतु,पर, तुम चाहो जो, वही सही।"तुम भड़काना चाहते अनलधरती का भाग जलाने को,नरता के नव्य प्रसूनों कोचुन-चुन कर क्षार बनाने को।पर, शान्ति-सुन्दरी के सुहागपर आग नहीं धरने दूँगा,जब तक जीवित हूँ, तुम्हेंबान्धवों से न युद्ध करने दूँगा।"लो सुखी रहो, सारे पाण्डवफिर एक बार वन जायेंगे,इस बार, माँगने को अपनावे स्वत्तव न वापस आयेंगे।धरती की शान्ति बचाने कोआजीवन कष्ट सहेंगे वे,नूतन प्रकाश फैलाने कोतप में मिल निरत रहेंगे वे।शत लक्ष मानवों के सम्मुखदस-पाँच जनों का सुख क्या है ?यदि शान्ति विश्व की बचती हो,वन में बसने में दुख क्या है ?सच है कि पाण्डूनन्दन वन मेंसम्राट् नहीं कहलायेंगे,पर, काल-ग्रन्थ में उससे भीवे कहीं
2021-09-3009 minAah se Upja Gaan
Aah se Upja GaanRashmirathi Pancham Sarg part -2 रश्मीरथी पंचम सर्ग-भाग २ Voice Mohit Mishrayou can also find me on my youtube channelhttps://www.youtube.com/channel/UCOmnt0xo6H3nt3ZXOloTCPQपहली वर्षा में मही भींगती जैसे,भींगता रहा कुछ काल कर्ण भी वैसे।फिर कण्ठ छोड़ बोला चरणों पर आकर,"मैं धन्य हुआ बिछुड़ी गोदी को पाकर।पर, हाय, स्वत्व मेरा न समय पर लायीं,माता, सचमुच, तुम बड़ी देर कर आयीं।अतएव, न्यास अंचल का ले ने सकूँगा,पर, तुम्हें रिक्त जाने भी दे न सकूँगा।"की पूर्ण सभी की, सभी तरह अभिलाषा,जाने दूँ कैसे लेकर तुम्हें निराशा ?लेकिन, पड़ता हूँ पाँव, जननि! हठ त्यागो,बन कर कठोर मुझसे मुझको मत माँगो।‘केवल निमित्त संगर का दुर्योधन है,सच पूछो तो यह कर्ण-पार्थ का रण है।छीनो सुयोग मत, मुझे अंक में लेकर,यश, मुकुट, मान, कुल, जाति, प्रतिष्ठा देकर।"विष तरह-तरह का हँसकर पीता आया,बस, एक ध्येय के हित मैं जीता आया।कर विजित पार्थ को कभी कीर्ति पाऊँगा,अप्रतिम वीर वसुधा पर कहलाऊँगा।"आ गयी घड़ी वह प्रण पूरा करने की,रण में खुलकर मारने और मरने की।इस समय नहीं मुझमें शैथिल्य भरो तुम,जीवन-व्रत से मत मुझको विमुख करो तुम।"अर्जुन से लड़ना छोड़ कीर्ति क्या लूँगा ?क्या स्वयं आप अपने को उत्तर दूँगा ?मेरा चरित्र फिर कौन समझ पायेगा ?सारा जीवन ही उलट-पलट जायेगा।"तुम दान-दान रट रहीं, किन्तु, क्यों माता, पुत्र ही रहेगा सदा जगत् में दाता ?दुनिया तो उससे सदा सभी कुछ लेगी,पर, क्या माता भी उसे नहीं कुछ देगी ?"मैं एक कर्ण अतएव, माँग लेता हूँ,बदले में तुमको चार कर्ण देता हूँ।छोडूँगा मैं तो कभी नहीं अर्जुन को,तोड़ूँगा कैसे स्वयं पुरातन प्रण को ?"पर, अन्य पाण्डवों पर मैं कृपा करूँगा,पाकर भी उनका जीवन नहीं हरूँगा।अब जाओ हर्षित-हृदय सोच यह मन में,पालूँगा जो कुछ कहा, उसे मैं रण में।"कुन्ती बोली, "रे हठी, दिया क्या तू ने ?निज को लेकर ले नहीं किया तू ने ?बनने आयी थी छह पुत्रों की माता,रह गया वाम का, पर, वाम ही विधाता।"पाकर न एक को, और एक को खोकर,मैं चली चार पुत्रों की माता होकर।"कह उठा कर्ण, "छह और चार को भूलो,माता, यह निश्चय मान मोद में फूलो।"जीते जी भी यह समर झेल दुख भारी,लेकिन होगी माँ ! अन्तिम विजय तुम्हारी।रण में कट मर कर जो भी हानि सहेंगे,पाँच के पाँच ही पाण्डव किन्तु रहेंगे।"कुरूपति न जीत कर निकला अगर समर से,या मिली वीरगति मुझे पार्थ के कर से,तुम इसी तरह गोदी की धनी रहोगी,पुत्रिणी पाँच पुत्रों की बनी रहोगी।"पर, कहीं काल का कोप पार्थ पर बीता,वह मरा और दुर्योधन ने रण जीता,मैं एक खेल फिर जग को दिखलाऊँगा,जय छोड़ तुम्हारे पास चला आऊँगा।
2021-09-2811 minAah se Upja Gaan
Aah se Upja GaanRashmirathi Pancham Sarg part -1 रश्मीरथी पंचम सर्ग-भाग १ Voice Mohit MishraKunti Meets Karnaआ गया काल विकराल शान्ति के क्षय का,निर्दिष्ट लग्न धरती पर खंड-प्रलय का ।हो चुकी पूर्ण योजना नियती की सारी,कल ही होगा आरम्भ समर अति भारी ।कल जैसे ही पहली मरीचि फूटेगी,रण में शर पर चढ़ महामृत्यु छूटेगी ।संहार मचेगा, तिमिर घोर छायेगा,सारा समाज दृगवंचित हो जायेगा ।जन-जन स्वजनों के लिए कुटिल यम होगा,परिजन, परिजन के हित कृतान्त-सम होगा ।कल से भाई, भाई के प्राण हरेंगे,नर ही नर के शोणित में स्नान करेंगे ।सुध-बुध खो, बैठी हुई समर-चिंतन में,कुंती व्याकुल हो उठी सोच कुछ मन में ।'हे राम! नहीं क्या यह संयोग हटेगा?सचमुच ही क्या कुंती का हृदय फटेगा?'एक ही गोद के लाल, कोख के भाई,सत्य ही, लड़ेंगे हो, दो ओर लड़ाई?सत्य ही, कर्ण अनुजों के प्राण हरेगा,अथवा, अर्जुन के हाथों स्वयं मरेगा?दो में जिसका उर फटे, फटूँगी मैं ही,जिसकी भी गर्दन कटे, कटूँगी मैं ही,पार्थ को कर्ण, या पार्थ कर्ण को मारे,बरसेंगें किस पर मुझे छोड़ अंगारे?'भगवान! सुनेगा कथा कौन यह मेरी?समझेगा जग में व्यथा कौन यह मेरी?हे राम! निरावृत किये बिना व्रीडा को,है कौन, हरेगा जो मेरी पीड़ा को?गांधारी महिमामयी, भीष्म गुरुजन हैं,धृतराष्ट्र खिन्न, जग से हो रहे विमन हैं ।तब भी उनसे कहूँ, करेंगे क्या वे?मेरी मणि मेरे हाथ धरेंगे क्या वे?यदि कहूँ युधिष्ठिर से यह मलिन कहानी,गल कर रह जाएगा वह भावुक ज्ञानी ।तो चलूँ कर्ण से हीं मिलकर बात करूँ मैं सामने उसी के अंतर खोल धरून मैं ।लेकिन कैसे उसके सम्मुख जाऊँगी?किस तरह उसे अपना मुख दिखलाउंगी?माँगता विकल हो वस्तु आज जो मन है बीता विरुद्ध उसके समग्र जीवन है ।क्या समाधान होगा दुष्कृति के कर्म का?उत्तर दूंगी क्या, निज आचरण विषम का?किस तरह कहूँगी-पुत्र! गोद में आ तू, इस जननी पाषाणी का ह्रदय जुड़ा तू?'चिंताकुल उलझी हुई व्यथा में, मन से,बाहर आई कुंती, कढ़ विदुर भवन से ।सामने तपन को देख, तनिक घबरा कर,सितकेशी, संभ्रममयी चली सकुचा कर ।उड़ती वितर्क-धागे पर, चंग-सरीखी,सुधियों की सहती चोट प्राण पर तीखी ।आशा-अभिलाषा-भारी, डरी, भरमायी,कुंती ज्यों-त्यों जाह्नवी-तीर पर आयी ।दिनमणि पश्चिम की ओर क्षितिज के ऊपर,थे घट उंड़ेलते खड़े कनक के भू पर ।लालिमा बहा अग-अग को नहलाते थे,खुद भी लज्जा से लाल हुए जाते थे ।राधेय सांध्य-पूजन में ध्यान लगाये,था खड़ा विमल जल में, युग बाहु उठाये ।तन में रवि का अप्रतिम तेज जगता था,दीपक ललाट अपरार्क-सदृश लगता था ।मानो, युग-स्वर्णिम-शिखर-मूल में आकर,हो बैठ गया सचमुच ही, सिमट विभाकर ।अथवा मस्तक पर अरुण देवता को ले,हो खड़ा तीर पर गरुड़ पंख निज खोले ।या दो अर्चियाँ विशाल पुनीत अनल की,हों सजा रही आरती विभा-मण्डल की,अथवा अगाध कंचन में कहीं नहा कर,मैनाक-शैल हो खड़ा बाहु फैला कर ।सुत की शोभा को देख मोद में फूली,कुंती क्षण-भर को व्यथा-वेदना भूली ।भर कर ममता-पय से निष
2021-09-2435 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-09-1505 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-09-1500 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-08-1300 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-08-1303 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-04-2500 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-04-2505 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-04-2500 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-04-2503 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-04-0100 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-04-0106 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-03-2004 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-03-2000 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2021-01-2000 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2021-01-2021 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-12-3100 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-12-3102 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-12-1702 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-12-1700 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-10-2603 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-10-2600 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-10-0803 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-10-0800 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-09-1004 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-09-1000 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-07-1704 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-07-1700 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-06-2100 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-06-2104 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-06-1800 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-06-1806 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-04-1300 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-04-1302 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-04-0904 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-04-0900 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-04-0604 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-04-0600 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-03-2308 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-03-2300 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-03-1705 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-03-1700 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-03-1006 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-03-1000 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-02-0303 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-02-0300 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2020-01-1607 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2020-01-1600 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-12-2807 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-12-2800 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-12-2006 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-12-2000 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-12-1104 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-12-1100 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-10-1502 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-10-1500 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-10-0903 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-10-0900 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-10-0500 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-10-0502 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-3000 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-3002 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-2804 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-2800 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-2103 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-2100 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-1903 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-1900 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-1802 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-1800 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-1408 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-1400 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-09-0800 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-09-0806 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-08-2704 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-08-2700 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-08-2309 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-08-2300 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-08-2300 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-08-2309 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-08-2300 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-08-2309 minThe MM SHOW | Network Marketing Podcast |2019-08-2304 minThe MM SHOW | Best Finance Podcast in India |2019-08-2300 min