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Sadashiva Brahmendranand Saraswati

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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती534. अपरोक्षानुभूतिः, श्लोक 18 की व्याख्या (भाग 4) विचार चन्द्रोदय 74-78 . सूक्ष्म शरीरका विश्लेषण।वेदान्त। एपिसोड 534. अपरोक्षानुभूतिः, श्लोक 18 की व्याख्या (भाग 4) विचार चन्द्रोदय 74-78 . सूक्ष्म शरीरका विश्लेषण (भाग 2)। नारायण। कल एपिसोड 532 में बताये कि पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पांच कर्मेन्द्रियों, पाँच प्राण और मन तथा बुद्धि - इन 17 तत्वोंके संगठन से सूक्ष्म शरीर बनता है। यह सत्रहों तत्व अपंचीकृत पंचमहाभूतों के कार्य हैं। क्रमशः सभी सत्रह तत्वों का विश्लेषण करते हुये बताये कि "मैं" अर्थात् आत्मा इन सभी तत्वों की सक्रियता और निष्क्रियता को जानता हूँ। इसलिये "मैं" इन सत्रह तत्वों में से कोई नहीं ,और इन सत्रह तत्वों में से कोई भी मेरा नहीं। यह अपने-अपने जनक महाभूतों के हैं। "मैं" इनको जानने वाला हूँ और इनसे अलग हूँ। क्योंकि, ज्ञाता और ज्ञेय एक नहीं हो सकते। अब आगे बताते हैं कि उक्त प्रकार के विश्लेषण और क्रमशः प्रत्येक तत्व के निराकरण से यह सिद्ध हुआ कि- 1. लिंगदेह अर्थात् सूक्ष्म शरीर और 2. उसके धर्म पुण्य-पाप का कर्तापना और 3. उसके पुण्य-पापके फल सुख-दुःख का भोक्तापना और 4. उसका मृत्युलोक से परलोक में आना-जाना और 5. उसकी वैराग्य शम दम इत्यादि सात्विकी वृत्तियां और 6. राग-द्वेष हर्ष इत्यादि राजसी वृत्तियां और 7. निद्रा आलस्य प्रमाद इत्यादि तामसी वृत्तियां और 8. शरीरयात्रा हेतु भूख प्यास इत्यादि (त्रिगुणात्मक ?) वृत्तियां, और 9. इन्द्रियों की पटुता मन्दता निष्क्रियता इत्यादि - यह सब मैं नहीं और यह सब मेरे नहीं। इसी एपिसोड में उक्त 9 विन्दुओं में से क्रमशः प्रत्येक का विश्लेषण करते हुये यह स्पष्ट रहे हैं कि कैसे यह जानें कि वे 9 "मैं" अर्थात् आत्मा नहीं और कैसे वे मेरे अर्थात् आत्मा के नहीं और कैसे मैं सूक्ष्म शरीर नहीं अपितु सूक्ष्म शरीर का द्रष्टा हूँ। इस प्रकार अब तक स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर का विश्लेषण और इनका आत्मा से असम्बन्ध सिद्ध किया गया। अब अगले एपिसोड में कारण शरीर और पञ्चकोशों का विश्लेषण करते हुये आत्मासे उनकी असम्बद्धता सिद्ध करेंगे।2021-05-1918 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 533. आयुर्वेदमें सदाचार, भाग (13)। महामारी के कारण एवं उपाय (भाग 2)।एपिसोड 533. आयुर्वेदमें सदाचार, भाग (13)। महामारी के कारण एवं उपाय (भाग 2)। चरकसंहिता, जनपदोध्वंसनीय अध्याय, 10-27. अधर्म ही संक्रमणीय महामारी फैलने का कारण है और धर्माचरण ही इसके निवारण का मुख्य उपाय है।2021-05-1816 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त,एपिसोड 532. विचारचन्द्रोदय 3/58-73.वेदान्त,एपिसोड 532. अपरोक्षानुभूतिः, श्लोक 18 की व्याख्या (3) विचार चन्द्रोदय 3/58-73. *सूक्ष्म शरीर का विश्लेषण। *पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पांच कर्मेन्द्रियों, पाँच प्राण और मन तथा बुद्धि - इन 17 तत्वोंके संगठन से सूक्ष्म शरीर बनता है। यह सत्रहों तत्व अपंचीकृत पंचमहाभूतों के कार्य हैं। "मैं" इस सत्रह तत्वों की सक्रियता और निष्क्रियता को जानता हूँ। इसलिये "मैं" इन सत्रह तत्वों में से कोई नहीं ,और इन सत्रह तत्वों में से कोई भी मेरा नहीं। यह अपने अपने जनक महाभूतों के हैं। "मैं" इनको जानने वाला हूँ और इनसे अलग हूँ। क्योंकि, ज्ञाता और ज्ञेय एक नहीं हो सकते।2021-05-1824 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त। एपिसोड 531. अपरोक्षानुभूतिः 18 की व्याख्या (2). विचारचन्द्रोदय 3/50-57अपरोक्षानुभूतिः श्लोक 18 की व्याख्या (2). विचारचन्द्रोदय 3/50-57। विगत एपिसोडमें पाँचों महाभूतों और उनके पचीस कार्यों का विश्लेषण करते हुये बताये कि मैं न तो उन पाँचमें से कोई हूँ न पचीस में से। मैं उन सबका जानने वाला हूँ द्रष्टा हूँ । उसी प्रकार इस स्थूल शरीर और इसके धर्म यथा, नाम रूप,वर्ण,आश्रम,सम्बन्ध, परिमाण,जन्म-मरण इत्यादि प्रत्येकका विश्लेषण करते हुये बता रहे हैं कि यह सब मैं नहीं और यह सब मेरे नहीं। यह सब स्थूल शरीर के विषयमें कल्पित हैं। इसी प्रकार आगे क्रमशः सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर का विश्लेषण करते हुये सिद्ध करेंगे कि वह दोनों भी मैं नहीं और वह दोनों मेरे नहीं।2021-05-1718 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त। एपिसोड 530. अपरोक्षानुभूतिः 18. (भाग 1) - विचारचन्द्रोदय 3.47-49वेदान्त। एपिसोड 530. अपरोक्षानुभूतिः, श्लोक 18. (भाग 1) - विचारचन्द्रोदय 3.47-49 *"आत्मा नियामकश्चान्तर्देहो बाह्यो नियम्यकः। तयोरैक्यं प्रपश्यन्ति किमज्ञानमतः परम्।। आत्मा नियामक और अन्तर्वर्ती है। शरीर नियम्य और बाह्य है। इन दोनों की एकता देखने से बढ़कर अज्ञान और क्या हो सकता है ? *विचार चन्द्रोदय के माध्यम से श्लोक की व्याख्या। * शरीरके पचीस धर्म हैं। इनमें से पाँच पाँच प्रत्येक महाभूत के हैं। यह पचीस धर्म मैं नहीं, ये मेरे नहीं। मैं इनका जानने वाला हूँ , इनका द्रष्टा हूँ।2021-05-1621 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 529. आयुर्वेदमें सदाचार-भाग 12, महामारी उत्पन्न होनेके कारण-भाग 1एपिसोड 529. आयुर्वेदमें सदाचार-भाग 12, महामारी उत्पन्न होनेके कारण-भाग 1. *".....नष्टधर्मसत्यलज्जाचारगुणजनपदं.."। चरकसंहिता के अनुसार, देशमें धर्म, सत्य, लज्जा, आचार और शुभ गुण नष्ट होने पर विभिन्न प्रकृति वाले मनुष्योंमें समान काल में समान लक्षणों वाली व्याधियां (अर्थात् महामारी) उत्पन्न होकर देशको नष्ट करती हैं। उस महामारी के सामान्य कारक होते हैं - प्रदूषित वायु, प्रदूषित जल, अधार्मिक आचरण और ऋतुओं का अपने लक्षणों से विपरीत होना।2021-05-1618 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 528. अपरोक्षानुभूतिः 17. आत्मानात्मविवेक।तत्वबोधः 27-32- पंचीकरण सिद्धान्त।एपिसोड 528. *अपरोक्षानुभूतिः 17. आत्मानात्मविवेकः। *तत्वबोधः 27-32।* *पञ्चीकरण सिद्धान्त। *शरीरनिर्माण की प्रक्रिया। *पांचों ज्ञानेन्द्रियों की उत्पत्ति क्रमशः एक एक अपञ्चीकृत महाभूत के सात्विक अंश से और पांचों कर्मेन्द्रियों की उत्पत्ति क्रमशः एक एक अपञ्चीकृत महाभूत के राजस अंश से होती है। अपञ्चीकृत पञ्चमहाभूतों के समष्टि सात्विक अंश से अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार)उत्पन्न होता है और अपञ्चीकृत पञ्चमहाभूतों के समष्टि राजस अंश से पांचों प्राण उत्पन्न होते हैं। *पञ्चीकरण सिद्धान्त एवं प्रक्रिया - पांचों महाभूतों के अपने अपने जो तामस अंश हैं उनका पञ्चीकरण अर्थात् एक निश्चित अनुपात में परस्पर आदान प्रदान होकर सम्मिलन हता है। वह अनुपात ऐसा होता है कि प्रत्येक महाभूत स्वयंका आधा भाग अपने पास सुरक्षित रखते हुये आधे के चार भाग करके अन्य चार महाभूतों में बांट देता है। पञ्चीकृत होकर वे स्थूल हो जाते हैं।2021-05-1521 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 527. आयुर्वेदमें सदाचार, भाग 11. उन्माद रोग किस अपराधके कारण होता है?एपिसोड 527. आयुर्वेदमें सदाचार, भाग 11. पापज रोगोंमें से एक उन्मादरोग के कारण। (चरक संहिता, निदानस्थान,अध्याय 7.) * जो अपने पाप तथा दोषों से रहित होता है उसके शरीर में कोई देवता,गन्धर्व,पिशाच,राक्षस इत्यादि किसी प्रकारका रोग उत्पन्न नहीं करते। इसलिये अपने पापका फल भोगते समय देवता इत्यादिको दोष नहीं देना चाहिये। हित वस्तुओं का सेवन और हित आचरण यही देवता इत्यादि का पूजन है। * सामान्य उन्माद रोग के कारण। *आगन्तुक उन्माद के कारण - पूर्वजन्म के पाप तथा देवता, ऋषि, पितर,गंधर्व,यक्ष राक्षस,पिशाच,गुरु,बृद्ध,सिद्ध,आचार्य अथवा अन्य पूज्यजनों का अपमान।*उन्माद उत्पन्न होने के पूर्वलक्षण।*देवता दृष्टिमात्रसे तथा गुरु, बृद्ध, सिद्ध और ऋषि के शाप से, पितरोंके डराने से उन्माद रोग उत्पन्न होता है। गन्धर्व शरीर को स्पर्श कर, यक्ष शरीरमें प्रविष्ट होकर,राक्षस अपनी देहकी गन्ध सुंघाकर और पिशाच शरीरके ऊपर चढ़कर उन्माद रोगको उत्पन्न करते हैं। इन सबके आक्रमण के अलग अलग अवसर अथवा बहाने होते हैं। अर्थात् यह सब मनुष्यको उसके अपराधोंका दण्ड देने के लिये छिद्र खोजते हुयज घात लगाये रहते हैं। जब मनुष्य सदाचार सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन करता है उसी समय ये आक्रमण कर उन्माद रोग को उत्पन्न कर देते हैं। इनका मुख्यतः दो प्रयोजन होता है - 1. रोगीमें आत्महत्या इत्यादि की प्रवृत्ति उत्पन्न कर उसकी हिंसा करना, और 2. पूजा अर्चना प्राप्त करना। इनमेंसे हिंसा के लिये उन्मादित रोगीको चरक संहिता में असाध्य कहा गया है और दूसरे वाले के लिये ओषधि के अतिरिक्त मंत्र, मणि, धर्मकर्म,बलि,भोजन इत्यादि कराना,हवन, व्रत, उपवास , प्रायश्चित्त, शान्तिकर्म, वन्दना/शरणागति,तीर्थयात्रा इत्यादि के द्वारा शान्ति कराने का परामर्श दिया गया है।2021-05-1420 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती526. अपरोक्षानुभूतिः 12-16, चर्पटपंजरिका 14,मानस- तारा प्रसंग, विचारचन्द्रोदय 3.40-43एपिसोड 526. विषयसूची- *अपरोक्षानुभूतिः 12-16 - विचार प्रक्रिया। *चर्पटपंजरिका-14,*मानस- तारा प्रसंग - क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंचरचित यह अधम शरीरा। प्रगट सो तनु तव आगे सोवा। जीव नित्य केहि कारन रोवा।। *विचारचन्द्रोदय 3.40-43 - पंचीकरण - पांचों महाभूतोंके पांच-पांच तत्वों के नाम।2021-05-1419 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 525. अपरोक्षानुभूतिः, 10-11. तत्वबोधः, 3-8. विचार चन्द्रोदय 1/22-29इस एपिसोड की विषयसूची :- *विचार का अर्थ। *विचार का अधिकारी कौन? *साधनचतुष्ट्य का संक्षिप्त विवेचन। *विचारका स्वरूप। *विचार के साधन। *विचार का फल। *विचारकी अवधि। *विचार के विषय - मैं, ब्रह्म और प्रपंच। *चैतन्य की परिभाषा। *जड़ की परिभाषा। *विचारकी प्रक्रिया।2021-05-1323 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त एपिसोड 524. "अपरोक्षानुभूतिः" 143-144। राजविद्याका संक्षिप्त परिचय।गीता, अ.9।इस एपिसोड में - *राजविद्या का संक्षिप्त परिचय। *श्रीमद्भगवद्गीता के नवम अध्याय "राजविद्याराजगुह्य योग" की संक्षिप्त चर्चा। *जिनका चित्त थोडा़ निर्मल हुआ है, उनको हठयोग के साथ राजविद्या का अभ्यास करना चाहिये। *जिसका चित्त शुद्ध हो गया है, वह चाहे हठयोग के सहित राजविद्या का अभ्यास करे अथवा हठयोग के विना ही करे। *जिसकी गुरु और ईश्वर में अनन्य भक्ति है, उसको भी हठयोग के अभ्यास की आवश्यकता नहीं।2021-05-1217 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती522 आयुर्वेदमें सदाचार-10। प्रज्ञापराध।विभिन्न त्रिक्।रोगकारक त्रिक्- अतियोग, अयोग और मिथ्यायोग।इस एपिसोड में - *प्रज्ञापराध। *विभिन्न प्रकार के त्रिक्। *रोगकारक त्रिक्- अतियोग अयोग और मिथ्यायोग। *शरीर के तीन स्तम्भ - आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य। *तीन प्रकार के बल - सहज बल, कालकृत बल और युक्तिकृत बल। * तीन आयतन - इन्द्रियोंके विषय, कर्म और काल। *इन तीनों के रोगकारक तीन प्रकार के योग - अतियोग, अयोग और मिथ्यायोग। *पांचों ज्ञानेन्द्रियों के अतियोग , अयोग अथवा मिथ्यायोग से रोग उत्पन्न होते हैं। *पांचों कर्मेन्द्रियों के अतियोग, अयोग अथवा मिथ्यायोग से रोग उत्पन्न होते हैं और इसी प्रकार *मानस के मिथ्यायोग से रोग उत्पन्न होते हैं। *यह सब बुद्धिके दोष से होते हैं, अतः इन्हे ही प्रज्ञापराध कहते हैं। * इसी प्रकार शीत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतुओं का त्रिक् है। समयानुसार और उचित मात्रामें सर्दी, गर्मी और वर्षा होना आरोग्यकर है। किन्तु इनका अतियोग (अत्यधिक मात्रा में होना) अयोग (समयानुसार उचित सर्दी गर्मी वर्षा का न होना) अथवा मिथ्यायोग (विना मौसम के सर्दी गर्मी अथवा वर्षा का होना) रोगकारक होता है।2021-05-1023 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 521.आयुर्वेद में सदाचार-भाग 9। पुनर्जन्म के प्रमाण।प्राणैषणा,धनैषणा और परलोकैषणा का उपसंहारएपिसोड 521. अनुमान प्रमाण और युक्तिप्रमाण से पुनर्जन्म की सिद्धि। पुनर्जन्म आप्तप्रमाण, प्रत्यक्षप्रमाण, अनुमान प्रमाण और युक्तिप्रमाण - इन चारों प्रमाणों से सिद्ध है। पूर्वजन्म के कर्मानुसार वर्तमान जन्म में स्वास्थ्य और रोगों की प्राप्ति होती है और वर्तमान जन्मके आचरण उसमें योगदायी होते हैं। प्राणैषणा,धनैषणा और परलोकैषणा का उपसंहार।2021-05-0919 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती520.आयुर्वेद में सदाचार, भाग 8. प्रमाणके चार प्रकार। योगदर्शन और न्यायदर्शन से तुलना। पुनर्जन्म।एपिसोड 520- इस एपिसोड में - चरकसंहिता के अनुसार प्रमाण के चार प्रकार - आप्तोपदेश, प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति। प्रमाणके सम्बन्ध में न्याय दर्शन (तर्कसंग्रह) और पातञ्जल योगदर्शन से चरकसंहिता की तुलना। चारों प्रमाणों की परिभाषा और लक्षण। आप्तप्रमाण की सर्वश्रेष्ठता।आयुर्वेद में इन प्रमाणोंकी चर्चा का औचित्य। पुनर्जन्म में प्रमाण ....अगले एपिसोड में जारी ।2021-05-0821 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 519. आयुर्वेदमें सदाचार, भाग 7. प्राणैषणा, धनैषणा तथा परलोकैषणा।*तीन प्रकार की इच्छायें, जिन्हे आयुर्वेद के अनुसार करना चाहिये - 1.प्राणैषणा, 2.धनैषणा तथा 3. परलोकैषणा। *परलोकैषणा के सम्बन्धमें विवाद। *पुनर्जन्म सम्बन्धी विवाद - विशेषतः प्रत्यक्षवादियों का खण्डन। चार प्रकार के प्रमाण और उनकी कसौटी पर पुनर्जन्म का परीक्षण ...अगले एपिसोड में जारी। (च. सं. अध्याय 11)2021-05-0624 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 518। आयुर्वेद में सदाचार, भाग -6.इस एपिसोड में - *अध्ययनकाल के नियम *हवन इत्यादि नित्यकर्म *आचार सम्बन्धी अन्य प्रकीर्ण नियम च. 8.27-312021-05-0611 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 517। आयुर्वेद में सदाचार (भाग -5) भोजन सम्बन्धी शिष्टाचार।इस एपिसोड में - *भोजन करने के नियम - *सुपाच्य और गरिष्ठ पदार्थ के अनुसार भोजनकी मात्रा। *भोजन से पूर्वके शिष्टाचार सम्बन्धी विधि/निषेध। (च.5/1 तथा 8/23-25)2021-05-0515 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 516। आयुर्वेद के मूलभूत नियम और सिद्धान्त। आयुर्वेद में सदाचार, भाग -4.इस एपिसोड में - चरकसंहिता और पातञ्जल योगसूत्र - अष्टाङ्ग योग। *उचित आहार विहार ... * अष्टाङ्गयोग के प्रथम दो अङ्ग यम और नियम अर्थात् सदाचार इत्यादि सम्बन्धी सामान्य निर्देश। (च. अध्याय 8)2021-05-0421 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 515। आयुर्वेद के मूलभूत नियम और सिद्धान्त। भाग -3.इस एपिसोड में - *अफीम इत्यादि कोई भी नशा तथा चाय काफी तम्बाकू इत्यादि अन्य अहितकर पदार्थों को छोड़ने और दूध घी मेवा इत्यादि हितकर पदार्थों के सेवन की क्रमिक विधि। * कुसंग के त्याग और सत्संग के सेवन का निर्देश। च. 7.34-36, 7.54-572021-05-0417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 514। आयुर्वेद के सर्वजनोपयोगी नियम और सिद्धान्त - भाग -2.इस एपिसोड में - *आयुर्वेदशास्त्र का प्रयोजन। *आयुर्वेदशास्त्र की परिभाषा और लक्षण। *आयुकी परिभाषा और लक्षण। *व्याधियों के कारण और आश्रय। *व्याधियों के तीन प्रकार। * व्याधियों के कारण और शमन के उपाय। प्रज्ञापराधज रोग। च. 1.39-47, 51-56, 7.49-53, 11.492021-05-0314 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 513 । सामयिक विषय - आयुर्वेद के सर्वजनोपयोगी नियम एवं सिद्धान्त।नारायण! महामारी के लम्बे प्रकोप को देखते हुये विगत वर्ष से पातञ्जल योगसूत्रको समसामयिक समझते हुये उसकी वेदान्तपरक व्याख्या कर रहे थे। जिन्होने भी नियमित सुना होगा उनको प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी न किसी रूपमें लाभ अवश्य हुआ होगा। अभी प्रकोप उग्र रूपमें है, सर्वत्र भय का वातावरण है, अतः वेदान्त श्रवण में सामान्यजन का मन न लगना स्वाभाविक है। अतः इस समय आयुर्वेद को अधिक प्रासंगिक समझते हुये उसके सर्वजनोपयोगी नियमों एवं सिद्धान्तों की चर्चा करेंगे। ध्यातव्य है कि आयुर्वेद हमारा विषय नहीं है। अतः रोगों एवं ओषधियों का विवरण नहीं देंगे। हमारी दृष्टि मूलभूत सिद्धान्तों और निवारक उपायों की ओर होगी और प्रज्ञापराध पर विशेष ध्यानाकर्षण होगा। योगशास्त्र के अष्टाङ्गयोग के प्रथम दो अङ्ग यम और नियम आयुर्वेद, वेदान्त , ज्योतिष, धर्मशास्त्र इत्यादि समस्त क्षेत्रों में समान रूप से उपयोगी हैं। इसी प्रकार भगवद्गीता का वचन "युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। युक्त स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।" भी समस्त क्षेत्रों में प्रयोज्य है। शरीर एक नगर है हम इसके निवासी, राजा तथा रक्षक हैं। इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। रक्षा के उपाय क्या हैं, यही आयुर्वेद में बताया गया है।2021-05-0312 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 512- ज्ञान की सात भूमिकायें।सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसंग्रह श्लोक 941-948/ योगवासिष्ठ महारामायण, उत्पत्तिप्रकरण सर्ग 18 - ज्ञानकी सात भूमिकायें - 1. शुभेच्छा, 2. विचारणा, 3. तनुमानसा, 4. सत्वापत्ति, 5. पदार्थाभाविनी, 6. असंसक्ति तथा 7. तुर्यगा। सातों भूमिकाओं के लक्षण। इनमें प्रत्येक के अनेक स्तर होते हैं। शुभेच्छा से आरम्भ करिये, सत्संग करिये, क्रमशः स्वाभाविक रूपसे आगे बढेंगे। जितनी सीढी़ चढे़ रहेंगे, अगले जन्म में उससे आगे ही बढे़ंगे। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी कहा है - "बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते"। "अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्"।2021-04-2925 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 510 - चित्त की 5, योगकी 8 तथा अज्ञान और ज्ञान की 7-7 अवस्थायें।योग-वेदान्त। एपिसोड 510 - पातञ्जल योगसूत्र एवं योगवासिष्ठ महारामायण। चित्त की 5, योगकी 8 तथा अज्ञान और ज्ञान की 7-7 अवस्थायें ....। योगशास्त्र की शब्दावली में सामान्य लोगों का चित्त विक्षिप्तावस्था में रहता है। स्वप्न क्या है ? क्या मृत्यु के उपरान्त जीव स्वप्नावस्था में रहता है? ज्ञान की सात भूमियों का विशेष विवरण - अगले एपिसोड में ।2021-04-2719 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त प्रवेश4. E509दुर्लभं त्रमेवैतद् दैवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः।।नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत जेही।। नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी। ज्ञान बिराग भगति सुभ देनी।।2021-04-2523 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त प्रवेश- 3 पिछले एपिसोड 507 का खण्डित भाग। (एपिसोड 508)मनुष्य , मनुष्यों में पुरुष, पुरुषोंमें ब्राह्मण, ब्राह्मणों में भी वेदनिष्ठा, वैदिकों में विद्वत्ता। विद्वानों में भी आत्मा-अनात्मा का विवेचन करने वाली बुद्धि से सम्पन्न होना - यह सब करोणों जन्मों के पुण्य के परिपक्व होने पर ही होता है।2021-04-2501 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त प्रवेश -2. मनुष्य जन्म और मुक्ति की दुर्लभता। (एपिसोड 507)आचार्य शङ्कर भगवत्पाद विवेकचूणामणि में कहते हैं - "जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता, तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता, विद्वत्वमस्मात्परम्। आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थितिः, मुक्तिर्नोशतकोटिजन्मसु कृतैः पुण्यैर्विना।।2।। दुर्लभं त्रयमेवैतद् दैवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः।।3।।" अर्थ और व्याख्या आडियो में सुनें।2021-04-2508 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीवेदान्त प्रवेश- साधन चतुष्ट्य। तत्वबोधः एवं अपरोक्षानुभूतिः।वेदान्त जिज्ञासु की अनिवार्य योग्यतायें। १. नित्यानित्यवस्तु अर्थात् आत्मा और अनात्मा का विवेचन, २. इस लोक से लेकर परलोक तक के सभी फलों से वैराग्य, ३. शमादि षट्सम्पत्तियां - शम, दम, तितिक्षा, उपरति, श्रद्धा और समाधान, ४. मुमुक्षा।2021-04-2221 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदेवीभागवत, 3/12 सात्विक, राजस, तामस यज्ञ। मानस और ज्ञानमय यज्ञ।धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में साक्षात् भगवान कृष्ण उपस्थित थे, श्रेष्ठ आचार्यों द्वारा सज्ञ सम्पन्न कराया गया था, पांचों भाई धर्मात्मा थे, फिर कौन सा दोष रह गया कि यज्ञके उपरान्त एक मास के भीतर ही द्रौपदीसहित उन्हे घोर अपमान और वनवास इत्यादि का कष्ट प्राप्त हुआ ? उत्तर - यज्ञमें प्रयुक्त धन न्यायपूर्ण नहीं था और यज्ञ अभिमानपूर्वक किया गया था। ****प्रारब्ध तथा उपाय दोनों की भूमिका होती है।2021-04-2219 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदेवीभागवत, 3/17- अनजाने में "क्ली" शब्द के जप का चमत्कारभगवती का एक बीजमंत्र है - "क्लीं"। पराजित राजा के वनवासी बालक सुदर्शन के किसी मित्र ने किसी को "क्लीब" कह दिया। सुदर्शनने केवल "क्ली" सुना और यही उसके मन की गहराईमें बैठ गया। इसी का जप करते करते उसे भगवती की सिद्धि प्राप्त हो गयी और पिता का खोया हुआ राज्य उसे वापस मिल गया।2021-04-2103 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदेवीभागवत 3/11. अनजाने में ऐ ऐ का उच्चारण होने से सत्यव्रत को विद्यासिद्धि"सत्यं न सत्यं खलु यत्र हिंसा, दयान्वितं चानृतमेव सत्यम्। हितं नराणां भवतीह येन तदेव सत्यं न तथान्यथैव।।"***"या पश्यति न सा ब्रूते या ब्रूते सा न पश्यति। अहो व्याध स्वकार्यार्थिन् किं पृच्छसि पुनः पुनः।।"2021-04-2115 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीश्रीमद्देवीभागवत,3/10. सत्यव्रत मुनि की कथा, भाग 2पुत्रेष्टि यज्ञ द्वारा सत्यव्रत की उत्पत्ति। पुत्रेष्टियज्ञ के एक आचार्य "गोभिल" मुनि द्वारा शापित होनेके कारण वे मूढ उत्पन्न हुये और माता-पिता-गुरु द्वारा बहुत प्रयास करने पर भी कुछ पढ़ न सके। मूर्खता की ग्लानिके कारण उन्है वराग्य हो गया और वनमें जाकर तपस्या करने लगे। वह मूर्ख थे किन्तु उनका एक दृढ़संकल्प था कि "मैं असत्य नहीं बोलूंगा"।2021-04-2012 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीमाँ भगवती अत्यंत भोली है। अनजाने में नाम लीजिये तो भी प्रसन्न हो जाती है।जंगली पशु को भगाने के लिये मूढ मुनि सत्यव्रत ने ने "ऐ ऐ " की आवाज निकाला । भगवती ने उसे अपना बीजमंत्र "ऐं" मानकर सत्यव्रत को महाविद्वान् बना दिया। (श्रीमद्देवीभागवत, स्कन्ध 3, अध्याय 9-11) विस्तृत कथा अगले एपिसोड्स में जारी ......।2021-04-2005 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 283 म.भा.शान्तिपर्व 199(2)-जपयज्ञ(4)।दान लेनेका वचन देकर न लेना भी पाप है।योग-वेदान्त।एपिसोड 283 म.भा.शान्तिपर्व 199(2)- जपयज्ञ(4)। दान लेनेका वचन देकर न लेना भी पाप है- एक रोचक कथा। * जपनिष्ठा और जपके फलके सम्बन्धमें राजा इच्छ्वाकु,यम,काल,ब्राह्मण और मृत्युकी कथा (भाग 2)। * ..... ब्राह्मणसे जपके फल का दान स्वीकार करने के उपरान्त राजा इछ्वाकु ने पूंछा कि उस जप का फल है क्या? ब्राह्मण ने कहा कि मैंने जप के समय किसी फल की कामना ही नहीं किया था तो कैसे बता सकता हूँ कि उसका फल क्या है?आपने दान स्वीकार कर लिया है तो अब अस्वीकार करने से असत्यवादी होने का पाप लगेगा। * सत्य की महिमा- सत्य से बडा़ कोई तप यज्ञ इत्यादि नहीं है...। सत्य ही वेदांग है, सत्य ही ॐकार है, सत्य से ही सारी सृष्टि नियंत्रित होती है...। * जो दोष दान का वचन देकर न देने में है, वही दान लेने का वचन देकर न लेने में भी है । * एक और रोचक विवाद - ऋण लौटाने वाला हठ कर रहा था कि मैं ऋणी हूँ अतः स्वीकार करो।महाजन कह रहा था कि मेरा तुम्हारे ऊपर कोई ऋण नहीं है।इस विवाद का निर्णय कैसे हुआ, जानने के लिये पूरी आडियो सुनें। अगले एपिसोड में जारी ....।2021-03-2417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 282 म.भा.शान्तिपर्व 199(1)- जपयज्ञ(3)।* जपनिष्ठाऔर जपके फलके सम्बन्धमें राजा इच्छ्वाकु,यम,काल,ब्राह्मण और मृत्युकी कथा। अगले एपिसोड में जारी...2021-03-2417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 281 म.भा.शान्तिपर्व 198- जपयज्ञ(2)।निवर्तक अथवा निष्काम जप की विधि।* मन का मनमें ही लय करे। * बुद्धिके द्वारा परमात्माका ध्यान और गायत्री जप। तदुपरान्त उस जपका भी त्याग। * जप का त्याग करनेके उपरान्त ध्यान रूप क्रिया तदुपरान्त ध्यान का भी त्याग। * जापक के दोष - सकाम जप स्वयं में सबसे बडा़ दोष है। श्रेष्ठ जापकके लिये स्वर्ग भी नरकतुल्य है। कामनापूर्वक किया गया जप जन्म-मृत्यु के चक्रसे मुक्ति नहीं दिला सकता। * जापक किस प्रकार से नाना प्रकार नरकों में पड़ते हैं ? * एकांगी जप, अवहेलनापूर्वक किया गया जप...। * जप और तप का प्रत्यक्ष दोष यह है कि इससे अभिमान बढ़ जाता है जो नरक का कारण होता है। * अणिमा आदि सिद्धियों और ऐश्वर्य की प्राप्ति नरक में ले जाने वाली होती हैं। * सकाम जप से कामना की पूर्ति होगी तो उसका उलटा भी होगा।सकाम जप विपरीत प्रभाव से रहित नहीं हो सकता। * आत्मज्ञानीके लिये स्वर्ग भी नरक तुल्य है। स्वर्ग के सारे सुख परमपद की तुलनामें नरक के ही समान हैं।2021-03-2317 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 280 म.भा.शान्तिपर्व 160- जपयज्ञ(1)।* युधिष्ठिर के प्रश्न :- जप किसे कहते हैं? जप करने की सम्पूर्ण विधि क्या है? जापक शब्द से क्या तात्पर्य है? जप सांख्ययोग का अनुष्ठान है अथवा ध्यानयोगका अथवा क्रियायोगका ? अथवा यह यज्ञकी ही कोई विधि है? जप करने वालों को किस प्रकार से किस फल की प्राप्ति होती है? जिसका जप किया जाता है वह क्या वस्तु है? * पितामह भीष्म के उत्तर :- यम, काल और ब्राह्मण के बीच संवाद। ((विशेष टिप्पणी - कापीराईट और पूर्वन्याय के सिद्धान्त (Rule of Precedent) का सम्मान महाभारत से सीखें।)) * जप वस्तुतः वेदान्ती के लिये नहीं है। संन्यासी जपका और शास्त्रका भी त्याग कर देता है। * महावाक्य का जप नहीं करते हैं, उसका चिन्तन मनन करते हैं। उपनिषद वाक्य ब्रह्मनिष्ठता का बोध कराते हैं, अतः उपनिषदमें जप की अपेक्षा नहीं है। * वेदान्ती/अद्वैती किसकी पूजा करे ? जप और पूजा तो वस्तुतः ब्रह्मनिष्ठता में बाधक है। * सांख्य और योगमें जप का आश्रय लेते भी हैं और नहीं भी लेते हैं। शुद्ध वेदान्तमें स्थिति थोडी़ भिन्न हो जाती है, वहां जप का औचित्य नहीं बनता। * योगसूत्र के "तज्जपस्तदर्थ भावनम्" का वेदान्त में प्रयोग। * प्रवर्तक यज्ञ और निवर्तक यज्ञ।2021-03-2317 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 279 म.भा.शान्तिपर्व। शरीरसंरचना जान लेनेके उपरान्त वेदान्त समझना सरल हो जाता है।शरीरसंरचना जान लेनेके उपरान्त वेदान्त समझना सरल हो जाता है। *पहले स्थूल शरीर को जानेंगे और यह बोध होगा कि यह शरीर और इसके अवयव मैं नहीं हूँ तथा इसकी क्रियाओं का कर्ता भी मैं नहीं हूँ, यह तो सत रज तम तीनों गुण अपना अपना कार्य कर रहे हैं। फिर सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के सम्बन्ध में भी ऐसा ही बोध होगा। * व्यावहारिक जीवन में सत रज तम के प्रधानता की पहचान। * गुणोंकी सृष्टि बुद्धि करती है। आत्मा इस कार्यसे अलग ही रहता है। वह साक्षी बनकर देखता रहता है। * सत आदि गुण आत्मा को नहीं जानते, किन्तु आत्मा इनको जानता है। *बुद्धि का घनिष्ठ सम्बन्ध मन के साथ होता है। गुणों के साथ नहीं। * बुद्धि सारथि, मन बागडोर, इन्द्रियां अश्व हैं। * आत्मसाक्षात्कार होने पर सत रज तम - तीनों गुण नष्ट हो जाते हैं। * चिज्जड़ ग्रन्थि क्या है? यह ग्रन्थि है ही नहीं , केवल इसका भ्रम है। "जड़ चेतनहि ग्रन्थि पडि़ गयी। जदपि मृखा छूटत कठिनई।।"2021-03-2217 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 278.महाभारत, शान्तिपर्व।सृष्टिविवर्त।इस एपिसोड में - * योग और वेदान्त सहयात्री अथवा परस्पर पूरक हैं। * पृथिवी आकाश इत्यादि पञ्चमहाभूत समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और लय के स्थान हैं। जो जिससे उत्पन्न होता है , उसी में लीन होता है। * परमात्मा समुद्र है और सृष्टि उसकी लहरें हैं। * पांचों महाभूतों के गुण अथवा कार्य का विवरण। * मन * इन्द्रियां मन के साथ मिलकर ही अपने अपने विषयों का ज्ञान कराती हैं। * एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय के साथ नहीं मिल सकती किन्तु मन के साथ सभी का मिलना अनिवार्य है। * पांच इन्द्रियां , मन, बुद्धि और क्षेत्रज्ञ - यह आठ हैं । क्षेत्रज्ञ ही आत्मा है। वही जानने वाला है और वही ज्ञातव्य भी है। * अपनी चीजों को जानना है और क्रमशः अपनी चीजों को जानते हुये अपने शरीरको और अपने आपको जानना है। * पहले शरीर संरचना (Human Anatomy) को जानिये। अपने साढे़ तीन हाथ के शरीर को नहीं जान सके तो ब्रह्माण्ड को कैसे जानेंगे ?2021-03-2117 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 277. अनुगीता 22 - ब्राह्मणगीता-5. पाँचों प्राणों का पारस्परिक विवाद।* पांचों प्राणों में से प्रत्येक परस्पर अन्य प्राण के अधीन हैं, अतः सभी समान रूपसे महत्वपूर्ण हैं। *समाजव्यवस्था भी पांच प्राणों की भांति परस्पर आश्रित है। किसीको श्रेष्ठता का अभिमान नहीं करना चाहिये।2021-03-2111 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 276. अनुगीता 21-2-ब्राह्मणगीता-4.-वाणी श्रेष्ठ या मन? मन श्रेष्ठ है या इन्द्रियां* वाणी और मन का संवाद । * आत्मदेव का निर्णय - वाणी श्रेष्ठ है। * घोषयुक्त वाणी की अपक्षा घोषरहित वाणी श्रेष्ठ है। क्योंकि उसे प्राणवायुके सहायता की अपेक्षा नहीं है। * स्थावर होने के कारण मन श्रेष्ठ है और जंगम होने के कारण वाणी। * वाक् प्राण के द्वारा शरीर में प्रकट होती है। तदुपरान्त प्राणसे अपान भावको प्राप्त होती है। तत्पश्चात् उदानस्वरूप होकर शरीर को छोड़कर आत्मा मन को उच्चारण करने को प्रेरित करता है। मन व्यानरूप से सम्पूर्ण आकाशको व्याप्त कर लेती है। तदनन्तर समानवायु में प्रतिष्ठित होती है। * पहले आत्मा मन को उच्चारण करने के लिये प्रेरित करता है। तदुपरान्त मन जठराग्नि को प्रज्वलित करता है। जठराग्नि के प्रज्वलित होने पर प्राणवायु अपानवायु से जा मिलता है। फिर वह वायु उदानवायु के प्रभाव से ऊपर उठकर मस्तक से टकराता है। फिर व्याववायु के प्रभावसे कण्ठ तालु इत्यादि स्थानों से होकर वेग से शब्द उत्पन्न करता हुआ वैखरी रूपसे मनुष्योंके कान में पहुंचता है। * जब प्राणवायुका वेग निवृत्त हो जाता है तब वह पुनः समानभाव से चलने लगता है। * सात होता - पांचों ज्ञानेन्द्रियां तथा मन और बुद्धि (ध्यातव्य- अनुगीता का सिद्धान्त पातञ्जलयोग से थोडा़ भिन्न है। पातञ्जल योग मन और बुद्धि को प्रायः एक ही मानकर चलता है)। यह सातों होता यद्यपि सूक्ष्म शरीर में निवास करते हैं किन्तु अलग- अलग रहते हैं, एक दूसरे को नहीं देखते अर्थात् एक दूसरे के गुण को नहीं जानते, केवल अपने-अपने गुण को जानते हैं। इनको इनके स्वभाव और कार्य से पहचाना जाता है। इनमेंसे कोई भी केवल अपना कार्य कर सकता है दूसरे का नहीं। नासिका केवल सूंघने का कार्य कर सकती है, वह देखना सुनना बोलना इत्यादि कार्य नहीं कर सकती । इसी प्रकार कान केवल सुनने का कार्य कर सकता है। वह सूंघना, स्वाद लेना, देखना इत्यादि कार्य नहीं कर सकता। (नोट - अनुगीता में मन और बुद्धि को पांच ज्ञानेन्द्रियों से भिन्न कर्ता कह रहे हैं। किन्तु योग-वेदान्त का सामान्य सिद्धान्त यह है कि सभी इन्द्रियां मन से युक्त होकर ही कार्य करती हैं। मन सभी में सम्मिलित रहता है।) * मन और इन्द्रियों का संवाद। आख्यायिका-2021-03-2017 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 275. अनुगीता 21 (1) - ब्राह्मणगीता। जीवन की प्रत्येक क्रियामें यज्ञकी भावना करें।* महाभारत का लेखन। गणेशजी ने लेखक बनने के लिये शर्त रखा कि बीच में लेखनी रुकनी नहीं चाहिये। तब वेदव्यासजी ने कहा ठीक है,किन्तु विना समझे आप एक शब्द भी नहीं लिखेंगे। इस प्रकार जब व्यासजी को कुछ सोचने स्मरण करने में समय लगता था तब वे कोई रहस्यमय क्लिष्ट श्लोक बोल देते थे जिसे समझने में गणेशजी को समय लगता था। उतने देर में व्यासजी अपना कथ्य स्मरण करके व्यवस्थित कर लेते थे। * जीवन की प्रत्येक क्रिया में यज्ञकी भावना करें। केवल अग्नि में आहुति देना ही नहीं, खाना, पीना, श्वास लेना, बोलना, सुनना, सूंघना, प्रजनन प्रक्रिया, मल-मूत्र त्याग करना इत्यादि सभी क्रियायें यज्ञ ही हैं।2021-03-1917 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 274. अनुगीता/ब्राह्मणगीता- 20 (2)- अन्तर्याग* नाभिमण्डल में स्थित वैश्वानर अग्नि का स्वरूप। । * वैश्वानर अग्नि की सात जिह्वायें - पांच ज्ञानेन्द्रियां, मन और बुद्धि । * जीवनकी प्रत्येक क्रिया यज्ञ ही है। * यज्ञप्रक्रिया के अनुसार सात प्रकार के जन्म। *2021-03-1911 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 273. अनुगीता 20 - देवता नहीं चाहते कि मनुष्य जन्म-मृत्यु के चक्रसे मुक्त हों।* तत्वज्ञानकी प्राप्तिमें असुर ही नहीं, देवता भी बाधा डालते हैं। दे़वता चाहते हैं कि मनुष्य कर्मकाण्ड में ही लिप्त रहें। * धर्ममार्ग अथवा देवपूजन में आसुरी शक्तियां बाधा डालती हैं, किन्तु मोक्षमार्ग में देवता ही बाधा डालते हैं। * तत्वज्ञान में सबका अधिकार है, कर्मकाण्ड में योग्यताका प्रतिबन्ध है। ज्ञान निष्काम कर्मका फल है, फल से किसीको वंचित नहीं किया गया है। * 6 मास तक निरन्तर योगका अभ्यास करने से योग सिद्ध हो जाता है। * अनुगीता के 15 अध्यायों में ब्राह्मणगीता का उपदेश। * आत्मयाजी अर्थात् तत्वज्ञ (पाप-पुण्य से रहित) गृहस्थ के पत्नी को किस लोक की प्राप्ति होगी? अगले एपिसोड में जारी...। *2021-03-1816 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 272. अनुगीता 19 - योगकौशल।योगीके द्वारा अनेक शरीर धारण करना।परकायाप्रवेशसे अन्तर* ध्यान की विशेष विधि। शरीर के प्रत्येक अंग में परमात्मा का चिन्तन। * खाये हुये अन्न का पाचन, श्वासोच्छ्वास इत्यादि की प्रक्रिया। * मुक्ति का उपाय है बन्धन को जान लेना। ज्ञान ही मुक्ति है। * देवता मनुष्यों से इस बात के लिये ईर्ष्या करते हैं कि मनुष्यों को ज्ञान प्राप्तकर मुक्ति का अवसर सुलभ है।2021-03-1816 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 271. तीसरा प्रश्न - जीव संसारसागरसे कैसे पार होता है?* मनुष्येतर जीव भी मुक्तिकी प्रक्रियामें हैं क्योंकि वे भोगकर कर्मफल काटते हैं। * क्रमशः स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीरों के अभिमान का त्याग। * प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण कर्म और उनके नाश की प्रक्रिया। * मनुष्यका प्रयास और आत्माकी कृपा दोनों आवश्यक है आत्मसाक्षात्कार के लिये।2021-03-1817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 269- अनुगीता भाग-2. मुक्ति की प्रक्रिया।* दुःख केवल भोगने से ही कटता है। उसे दूर करने का अन्य कोई उपाय नहीं। उपायोंसे दुःख की अनुभूति कम हो सकती है, दुःख नहीं। * पाप-पुण्य दोनों ही कर्मोंमें भावना के अनुसार फल में अन्तर होता है। * जीव की उत्पति । पहले पिता के वीर्य में जीवका प्रवेश होता है, तदुपरान्त माता के गर्भमें। * सनातन धर्म क्या है? * आत्मा ने प्रथम शरीर क्यों और कैसे धारण किया?2021-03-1716 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीशिवपुराण।एपिसोड 268- महामृत्युञ्जय मन्त्रकी व्याख्या।ऋषि दधीचि)और राजा क्षुव की प्रतिद्वन्दिता।* ऋषि दधीचि द्वारा भगवान् विष्णुको मतिभ्रष्ट होने का शाप। * राजा और ऋषि में कौन श्रेष्ठ है, इस बात को लेकर राजा क्षुव और ऋषि दधीचि में विवाद। * शुक्राचार्य से दधीचि को महामृत्युञ्जय मन्त्र की प्राप्ति। * महामृत्युञ्जय मन्त्र की व्याख्या।2021-03-1717 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एप एपिसोड 267. अनुगीता - भाग 1.* अनुगीता की भूमिका एवं परिचय।* शिष्यभाव में रहते हुये कुछ दिन सेवा-सुश्रूषा करने के। उपरान्त ही प्रश्न करना चाहिए। * विद्याप्राप्ति का उचित मार्ग - गुरुसश्रूषया विद्या, पुष्कलेन धनेन वा। अथवा विद्यया विद्या, चतुर्थं नैव विद्यते।। * कोई भी सुख परिपूर्ण और केवल सुख नहीं हो सकता। * मातापितृ सहस्राणि पुत्रदारशतानि च। संसारेष्वनुभूतानि यान्ति याष्यन्ति चाऽपरे।। हर्षस्थान सहस्राणि शोकस्थान शतानि च । दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डिताः।। * प्राण शरीर से क्यों और कैसे निकलता है?2021-03-1634 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 266- स्वरपरीक्षण।किस पक्षमें किस तिथि को सूर्योदयके समय कौनसा स्वर चलता है?* किस पक्ष की किस तिथि को सूर्योदय के समय कौन सा स्वर चल रहा है, इसका निरीक्षण करें। * कितने समय के उपरान्त स्वर बदल रहा है,इसका निरीक्षण करें। * यह भी देखें कि, क्या दाहिना और बायां दोनों स्वर एक समान अवधि तक चलता है अथवा दोनों के कार्यकाल में अन्तर है?2021-03-1207 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 265- (म.शा. 236) ध्यानके सहायक 12 योग और 7 धारणायें।* ज्ञान के लिये ध्यान और विचार आवश्यक है * ध्यान के 12 सहायक योगों का विवरण ः- 1. देशयोग - स्थानका चयन - समतल पवित्र निर्जन 2. कर्मयोग - आहार विहार सोना जागना नियमित संयमित हो 3. अनुरागयोग - परमात्मा और उसकी प्राप्तिके साधनों हेतु अत्यंत उत्कण्ठा। 4. अर्थयोग - अपरिग्रह 5. उपाय - उपयुक्त आसन में बैठना। 6. अपाय - अनासक्ति - संसार और संसार के विषयों , भौतिक धनसम्पत्ति, सगे सम्बन्धियों इत्यादि में ममत्व न होना। 7. निश्चय(श्रद्धा) - गुरु और शास्त्र के वचनों में विश्वास। 8. चक्षुस - ध्यान का केन्द्रविन्दु निर्धारित करके वहां दृष्टि स्थिर करना, यथा भ्रूमध्य में । 9. आहार - नियमित शुद्ध सात्विक आहार 10. संहार - इन्द्रियों को उनके विषयों की ओर जाने से रोकना। 11. मनोयोग - मनको संकल्प विकल्प से रहित करके एक मात्र ध्येय में स्थापित करना। 12. दर्शनयोग - जन्ममृत्यु जरा रोग सुख दुःख से परे होकर प्रत्येक घटना के प्रति द्रष्टा भाव रखना। यह योग सबके लिये है। इसमें वर्णका भेद नहीं है। वेदज्ञ हो या वेदज्ञान से रहित - सब इसके अधिकारी हैं।2021-03-1217 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 264-प्राणायाम और ध्यान।वायवीय संहिता(भाग 10). प्रक्रियात्मक निर्देश-3* प्राणायामके प्रत्यक्ष लाभ - चार सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं - शान्ति, प्रशान्ति, दीप्ति और प्रसाद। * शान्ति किसे कहते हैं? समस्त आपदाओं का शमन । * अज्ञान का नाश प्रशान्ति। बाहर भीतर दोनों ओर की शान्ति। * दीप्ति क्या है? - जो बाहर भीतर ज्ञान का प्रकाश होता है उसका नाम दीप्ति है। * प्रसाद क्या है? - बुद्धि की स्वस्थता (अपने में स्थित होना अर्थात् आत्मनिष्ठता। * ध्याता, ध्येय, ध्यान और ध्यानका प्रयोजन - इन चारों को जानकर ध्यान करना चाहिये। * शिवका निरन्तर चिन्तन ही ध्यान है। * ध्यानके विना ज्ञान नहीं होता और योगाभ्यास के विना ध्यान नहीं होता। इस प्रकार योग ज्ञान का सहायक है। * ध्यान न लगने का कारण - पूर्वके कर्मसंस्कार/पाप। इनका क्षय करने के लिये पूजा उपासना जप तप करना चाहिये। किन्तु यह सब निष्काम भाव से करने पर ही पापोंका क्षय होता है। कर्मसंस्कारों के क्षय होने पर ध्यान लगने लगता है। * बाह्यपूजा की अपेक्षा ध्यान द्वारा आन्तरिकपूजा करने वाला भगवान् शिव का अन्तरंग होता है।2021-03-1117 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 263- योगका प्रयोग- आसन और ध्यान। वायवीय संहिता(भाग 9). प्रक्रियात्मक निर्देश(2)* दांतों दांतों को न सटायें। * सिद्धासन की मुद्रा * त्रिरुन्नत - "समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलमिस्थिरः।" * दृष्टि - नासिका के अग्र भाग पर- "संप्रेक्ष्यनासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्।।" * नासिका का अग्रभाग किसे कहें ? नाक जहां से आरम्भ होती है उसे अथवा नाक के अन्तिम भाग को? * चक्रों के अक्षर। * चक्रों पर ध्यान। * जिस तत्व पर विजय पाने का उद्देश्य हो उससे सम्बन्धित चक्र पर ध्यान केन्द्रित करें।( पिछले एपिसोड 260 - 261 के क्रम में)। * ध्यानस्थ शिवका ध्यान सर्वोत्तम है। * ध्येयके रूप अथवा देवता को बार बार बदलें नहीं। * निर्विषय ध्यान नहीं होता क्योंकि यह बुद्धि का स्वभाव है कि वह किसी न किसी रूप पर ठहरती है। (पिछले एपिसोड 255 और 258 - अगर्भ और सगर्भ प्राणायाम के क्रम में )2021-03-1017 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 262- योगका प्रयोग।वायवीय संहिता (भाग 8). प्रक्रियात्मक निर्देश (भाग 1)।* योगसाधना के लिये स्थान का चयन। * योगसाधनाके लिये अनुकूल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य। * गुरुजनों की सेवा के समय योगाभ्यास अथवा अन्य कोई उपासना न करें। * योगसाधना नैष्ठिक ब्रह्मचारी के लिये नहीं है। * योगसाधना के लिये उचित आहार विहार। * बैठने के लिये आसन का चयन। * गुरु और गुरुपरम्परा की वन्दना करने के उपरान्त योगाभ्यास आरम्भ करें। * योगाभ्यास के लिये शरीर की मुद्रा कैसी हो :- * त्रिरुन्नत बैठें। * नेत्र अधखुले रखें। * दांतों से दांतों का स्पर्श न करें।2021-03-0917 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 261-वायवीय संहिता(भाग 7)- 64 सिद्धियों का विश्लेषणात्मक वर्णन(भाग 2).*अष्टसिद्धि नव निधि के दाता। हनुमानजी के पास आठों सिद्धियां थीं किन्तु दूसरे को नहीं दे सकते थे सीताजी ने वरदान दिया कि तुम दूसरों को भी दे सकते हो। * महाभूतजय और प्रकृतिजय से अणिमा लघिमा इत्यादि सिद्धियां प्रकट हो जाती हैं। *कुल चौंसठ सिद्धियां हैं। * अष्ट प्रकृति - पंच महाभूत - पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और मन, बुद्धि , अहंकार = कुल आठ। आठों की आठ आठ सिद्धियां = 64। उत्तरोत्तर में पूर्वतन भूतों के गुण फलतः उनकी सिद्धियां सम्मिलित होती हैं। * ब्राह्म ऐश्वर्य, वैष्णव ऐश्वर्य और गाणपत्य ऐश्वर्य। वैष्णव ऐश्वर्य को ब्रह्मा भी नहीं जानते तथा गणपति ऐश्वर्य को पूर्णतया विष्णु भी नहीं जानते। * त्याग और वैराग्य का अर्थ। जो उक्त किसी भी सिद्धि और ब्रह्मा विष्णु इत्यादि पद में रुचि नहीं रखता वही वास्तविक विरक्त है।2021-03-0817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 260- वायवीय संहिता - भाग 6। सिद्धियों का विश्लेषणात्मक वर्णन।* सिद्धियां योगमार्ग के दिव्य विघ्न हैं। * "प्रतिभा" की परिभाषा। * श्रवण नामक सिद्धि। * "वार्ता" नामक सिद्धि । * दर्शन, आस्वाद और वेदना नामक सिद्धि। * अन्य विभिन्न सिद्धियों का वर्णन * सिद्धियों का प्रयोग न करें, उन्हे केवल प्रोत्साहन समझें। * पृथिवी जल तेज वायु और आकाश - इन पांचों महाभूतों में प्रत्येक से सम्बन्धित आठ आठ सिद्धियां और जिसमें जितने गुण हैं उसके अनुसार उत्तरोत्तर आठ आठ सिद्धियों का बढ़ते जाना।2021-03-0817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 259-वायवीय संहिता-भाग 5।ध्यानके दो प्रयोजन-मोक्ष और अणिमादि सिद्धियोंकी प्राप्तिइस एपिसोड में - * ध्यान करने का अधिकारी कौन? * जप और ध्यान परस्पर सहयोगी हैं। जप से थकें तो ध्यान करें और ध्यान टूटे तो जप करें। * समाधि क्या है? समाधिस्थ किसे कहते हैं? * अन्तराय किसे कहते हैं ? इनका नाश कैसे होता है? * विघ्न किसे कहते हैं? * व्याधि किसे कहते हैं , उनकी उत्पत्ति कैसे होती है। * अश्रद्धा क्या है? * आध्यात्मिक आधिभौतिक और आधिदैविक दुःख क्या हैं? *दौर्मनस्य क्या है?2021-03-0817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 258- अगर्भ और सगर्भ प्राणायाम। वायवीय संहिता(भा 4)* शरीर को तोड़ना-मरोड़ना कलाबाजी दिखाना योग नहीं । * प्राणायाम सगर्भ अर्थात् जप और ध्यानके सहित होना चाहिये। * दस प्राणों का परिचय। * धनञ्जय वायु मृत शरीर में भी रहता है। वह शरीर को जलाने के उपरान्त ही निकलता है। * प्राणायामसाधक के शरीर में भौतिक लक्षण। * सृष्टि के आदि में ब्रह्माने प्राणायाम और ध्यानरूप तप किया। * अष्टाङ्गयोग - प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान का व्याख्यात्मक परिचय।2021-03-0717 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 257- प्राणायाम। वायवीय संहिता।उपमन्युद्वारा श्रीकृष्णको दिया गया उपदेश।*वैराग्य हेतु विचार प्रक्रिया। *स्वर्गके दोष- स्वर्ग एक होटल की भांति है। * योग के अंग। अष्टांगयोग और षष्ठांग योग। * आठ प्रकार के आसन। * प्राणायामकी परिभाषा। * प्राणायाम सहजतापूर्वक करें, अधिक हठपूर्वक नहीं। * प्राणायामके चार प्रकार । * प्राणका निरोध और मन का निरोध परस्पर अन्योन्याश्रित हैं। * प्राणायाम के अभ्यास में होने वाले अनुभव।2021-03-0617 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र। एपिसोड 256. - वायवीय संहिता- उपमन्यु द्वारा श्रीकृष्णको दिया गया उपदेश-योगके5 स्तर।* योगाभ्यास पूर्ण होनेसे पूर्व ही मृत्यु आत्मघात के समान है। * दूसरी वृत्तियों का निरोध करके एकमात्र परमात्मा में निश्चलवृत्ति का होना योग है। * पांच प्रकार के योग अथवा योगके पांच स्तर- मंत्रयोग, स्पर्शयोग, भावयोग, अभावयोग और महायोग। * योग में भी उसीका अधिकार है जिसका ब्रह्मविद्या में अर्थात् लौकिक और पारलौकिक दोनों विषयों से जिसका वैराग्य हो गया हो।2021-03-0617 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त।एपिसोड 255. देवीभागवत।कुण्डलिनी जागरण की विधि। सगर्भ प्राणायाम।*योगमार्गमें शिव-शक्तिके मिलनकी प्रक्रिया। * शरीर के भीतर चक्रों की स्थिति । * पूरक प्राणायाम द्वारा सर्वप्रथम मूलाधार में ध्यान करे । तदुपरान्त क्रमशः ऊपर के चक्रों में यात्रा करते हुये सहस्रार में जाकर पुनः उसी क्रम से वापस मूलाधारमें आयें। * देवताके ध्यान की विधि। * मन्त्र और योग दोनों परस्पर पूरक हैं। दोनों का अभ्यास आवश्यक है। * यह योग गुरु के उपदेश के विना नहीं जाना जा सकता।2021-03-0517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोगशास्त्र।एपिसोड 254. देवीभागवत।उमा द्वारा हिमालयको अष्टाङ्गयोगका उपदेश।पातञ्जल योगसूत्रसे तुलना।*जीव और आत्मा का ऐक्य ही योग है। *जीव और आत्मा में अन्तर।उसीको बद्ध स्थिति में जीव और मुक्तस्थिति में आत्मा कहते हैं। *पातञ्जल योगसूत्र में योगकी परिभाषा और देवीभागवत में योग की परिभाषा में एक ही बात प्रकारान्तर से कही गयी है। *अष्टाङ्गयोग - यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि। * 10 यम और 10 नियम। * उत्तम आसन - पद्मासन स्वस्तिकासन भद्रासन वज्रासन और वीरासन। * प्रणव के उच्चारण में लगने वाले समय से क्रमशः 16, 64 और 32 उच्चारण के बराबर अथवा इसी अनुपात में पूरक कुम्भक रेचक करें।2021-03-0517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 253. यम-नियम इत्यादि। श्रीमद्भागवत - उद्धवगीता।*जो कुछ भी करो, वह भगवान् के लिये करो। * भग़द्गीतामें भगवान् के वचन "योगक्षेमं वहाम्यहम्" की पूर्तिके लिये उससे पूर्व कहे गये "अनन्याश्चिन्तन्तो मां" का पालन करें। *उद्धवगीता के अनुसार यम और नियमके 12-12 प्रकार। इस सम्बन्ध में पातञ्जल योगसूत्र और श्रीमद्भागवतान्तर्गत उद्धवगीता की तुलना। * भगवान् में बुद्धिका लग जाना ही "शम" है। *सर्वत्र ईश्वर को देखना ही "सत्य" है। *शरीर को ही आत्मा समझना ही "मूर्खता" है। * गुरु ही सच्चा "भाई-बन्धु" है। * गुण-दोषों पर दृष्टि जाना ही सबसे बडा़ "दोष" है।2021-03-0416 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 252. आसन, ध्यान इत्यादि - श्रीमद्भागवत, कपिल मुनि (भाग 2)-*गीता के "चैलाजिनकुशोत्तरम्" और "समः कायशिरोग्रीवं", श्वेताश्वतरोपनिषद के "त्रिरुन्नतं" तथा पातञ्जल योगसूत्र के "स्थिरं सुखमासनम्" की संगति। कुश के ऊपर ऊन का वस्त्र बिछाकर कमर, गर्दन और सिर सीधा करके बैठें। * सगुण ध्यानका क्रम। चरणों से आरम्भ करके क्रमशः एक एक अंग और एक एक आभूषणों तथा शस्त्रों का ध्यान करते हुये मुखमण्डल की ओर ध्यान ले जायें। * पतञ्जलि योगसूत्र के "ईश्वरप्रणिधानाद्वा" की क्रियात्मक व्याख्या। *2021-03-0416 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीयोग-वेदान्त। एपिसोड 251- श्रीमद्भागवत में कपिल मुनि द्वारा बतायी गयी योगविद्या (भाग 1)।* पिछले 250 एपिसोड में पातञ्जल योगसूत्र की व्याख्या की गयी।अब आजसे उसके परिशिष्टके रूपमें महाभारत और पुराणों में वर्णित योगविद्या की चर्चा। * स्वधर्मका पालन योग और वेदान्त दोनों के अध्ययनकी पूर्वशर्त है। * कपिल मुनि द्वारा बताया गया यम नियम इत्यादि और योगाभ्यास की विधि। * ठीक ढंगसे बैठनेका अभ्यास प्राणायाम की पूर्वशर्त है। * आज के समय में कुश, ऊन, सूती वस्त्र का आसन ही उचित है। मृगचर्म और बाघम्बर के फेर में न पडे़ं।2021-03-0317 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 250.पातञ्जल योग, सूत्र 4.11-12 वासनायें अनादि हैं किन्तु इनका नाश सम्भव है।*वासनाओंका अन्त करने के लिये ही सृष्टि की रचना होती है। *वासनाओं के 8 हेतु हैं- अविद्या इत्यादि पांच क्लेश और पाप पुण्य और पाप-पुण्यमिश्रित कर्म। *उक्त आठों का नाश होने पर वासनाओं का नाश हो जाता है। *संसारचक्रकी 6 तीलियां - धर्म-अधर्म, सुख-दुःख, राग और द्वेष। इनको चलाने वाली धुरी है अविद्या। *योगी-संन्यासीका वासनाओं के साथ स्थाई विच्छेद हो जाता है, अतः उसका पुनर्जन्म नहीं होता। *कोई भी वस्तु, कार्य या फल उत्पन्न नहीं होता, अपितु प्रकट होता है।2021-03-0215 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 249. पातञ्जल योग, सूत्र 4.7 से 10 - कर्म के चार प्रकार- तीन सामान्य लोगोंके और एक योगियोंके।*योगियों के कर्म पाप-पुण्यरहित होते हैं। सामान्यजनके कर्म तीन प्रकारके होते हैं- पाप, पुण्य और मिश्रित। *प्रथम वासना कहां से आयी ? प्रथम कर्म जीवने किस वासना से प्रेरित होकर किया? सृष्टिके आदिमें प्रथम कर्म भिन्न भिन्न जीवों ने भिन्न भिन्न कैसे किया? *पूरा एपिसोड ध्यान से सुनें।2021-03-0215 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 248. पातञ्जल योग, सूत्र 4.3,6 सिद्धियां स्वतः सिद्ध हैं, सबके पास हैं।सिद्धियों को पानेके लिये प्रयास नहीं करना है, केवल आवरणों को हटाना होता है। *सिद्धियां चल वस्तुयें नहीं हैं जो एक से दूसरे स्थान पर ले जायी जाती हों। किन्तु महर्षि पतञजलि उनकी उपमा खेत के जल से देते हैं। जल के स्वाभाविक बहाव में आने वाली बाधा को दूर करने से जल खेत में स्वतः फैल जाता है। उसी प्रकार सिद्धियों पर से बाधाओं को हटाना होता है। *धर्म अधर्म की भी यही स्थिति है। धर्म कोई स्वतंत्र फल नहीं देता। अपितु, वह अधर्म रूपी बाधा को दूर कर देता है, फलतः शुभ का प्राकट्य हो जाता है। इसी प्रकार अशुभ के प्राकट्य के लिये अधर्म भी धर्मरूपी बाधा को दूर कर देता है।2021-03-0117 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीएपिसोड 247. पातञ्जल योग, सूत्र 4.1.सिद्धियोंके 5 प्रकार-जन्मना,ओषधिजन्य, मंत्रजन्य,तपजन्य,समाधिज*जन्मौषधिमन्त्रतपःसमाधिजाः सिद्धयः। *सिद्धि प्राप्त होनेका अभिमान पतन का कारण है। सिद्धिके त्याग का अभिमान भी पतनका कारण है। *सिद्धि का अर्थ - अपूर्व शक्ति की प्राप्ति। *योगभ्रष्ट का अर्थ- चरमसिद्धि प्राप्त होने से पूर्व ही देहावसान हो जाना। *तप का अर्थ - किसी सङ्कल्प के साथ बडे़ से बडे़ कष्ट को सहन करना।2021-02-2817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीEpisode 246. पातञ्जल योग, सूत्र 3.47-50 - मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण का उपाय। "स्वामी" का अर्थ।*अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोधः। किस चीज का अभ्यास? किस चीज से वैराग्य? अभ्यास की प्रक्रिया क्या है? *इन्द्रियोंकी पांच अवस्थायें - ग्रहण , स्वरूप, अस्मिता , अन्वय और अर्थवत्व। इन्द्रियां केवल भोगके लिये नहीं हैं। *इन्द्रियों की रचना का उद्देश्य है जीव को भोग और मोक्ष प्रदान करना। *मन इन्द्रियों से स्वतंत्र नहीं है। इन्द्रियां भी मन के साथ मिलकर ही कार्य करती हैं। *जितेन्द्रिय को ही सिद्धि प्राप्त होती है और वही दूसरे को दे भी सकता है। *चित्त और आत्मा के अन्तर को जान लेने वाले को सर्वज्ञता और सर्वस्वामित्व प्राप्त हो जाता है।2021-02-2817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीEpisode 245. पातञ्जल योग, सूत्र 3.44-46 - आकाशगमन तथा अणिमा लघिमा इत्यादि अष्टसिद्धियों का रहस्य।*पांचों महाभूतों की पाँच पाँच अवस्थायें हैं। महाभूतों पर विजय प्राप्त कर लेने से आठों सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं।2021-02-2514 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीEpisode 244. पातञ्जल योग, सूत्र 3.39-41. परकायाप्रवेश, जलपर चलने और आकाशगमन इत्यादिका रहस्य(भाग 1)*जब कर्मके बन्धन शिथिल पड़ जाते हैं और स्थूल शरीर की नाडि़यों में सूक्ष्म शरीर के संचरण का ज्ञान हो जाता है तब किसी अन्य शरीर में भी प्रवेश करने की दक्षता आ जाती है। *उदानवायु वशमें कर लेने से आकाशगमन , जल पर चलने इत्यादि की क्षमता आ जाती है।2021-02-2516 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीEpisode 243. शिवपुराण, 2.17-18. सृष्टिकी रचना - मनुष्य सर्ग। भस्म रुद्राक्ष माहात्म्य।*ऐसी कोई सृष्टि नहीं हो सकती जो जन्म-मरण से रहित हो। मृत्यु न हो तो जीवका उद्धार ही नहीं होगा। *शिव सबके गुरु हैं। *शिवनिर्माल्य के सेवन का निषेध *यमराजका आदेश है कि जो भस्म त्रिपुण्ड धारण करते हैं, रुद्राक्ष धारण करते हैं उनके पास यमदूत न जायें।2021-02-2517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीEpisode242. योग-वेदान्त। पातञ्जल सूत्र 19-38. शरीरके विभिन्न केन्द्रों में ध्यान करने के विभिन्न फल*योगसूत्र में सिद्धियों के वर्णन का मुख्य उद्देश्य है साधनाके प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना। *मैत्री करुणा मुदिता और उपेक्षा का फल। *जिसमें दृढ़ एकाग्रता हो जाती है उसकी शक्ति आ जाती है। *नाभिचक्र में ध्यान करने से शरीर के व्यूह का ज्ञान हो जाता है। *कण्ठकूप में ध्यान करनेसे भूख-प्यास की बाधा मिट जाती है। *चित्त की गति का भलीभांति ज्ञान हो जाने से कर्मसंस्कार समाप्त हौकर परकाया प्रवेश की क्षमता आ जाती है। *इन्द्रियां चित्तके साथ ही रहती हैं।2021-02-1517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE241. योग-वेदान्त। पातञ्जल योग, सूत्र 3.14-18*धर्म और धर्मी। *अधिष्ठान रूपसे आत्मा सर्वत्र विद्यमान है। आत्मा धर्मी है, दृश्यपदार्थ उसके धर्म हैं। धर्मी धर्ममें अनुगत रहता है। *मिट्टी अव्यपदेश्य अवस्था है घडा़ उदित अवस्था है और घडे़का टूटकर पुनः मिट्टी में मिल जाना शान्त अवस्था है। *सृष्टि का क्रम समझ लेने से और धर्मी में ध्यान करने से सिद्धियां प्रकट हो जाती हैं, त्रिकालज्ञता आ जाती है।2021-02-1517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 240. शिवपुराण, 2.15. सृष्टिकी उत्पत्ति*ब्रह्माजी द्वारा हंसका और भगवान् विष्णु द्वारा वाराह का रूप धारण करने का रहस्य। *परमात्मा के ज्ञान के लिये प्रयास के साथ परमात्माकी कृपा भी आवश्यक है। *पक्षियों की उडा़न के स्तर(लेन) - 1.गौरैया कबूतर इत्यादि दाना चुगने वाले 2.कौआ एवं फलभक्षी तोता इत्यादि, 3.चील सारस चकवा इत्यादि, 4.बाज 5. गीध 6. हंस 7. गरुड़ । *जिस दिन ब्रह्मा-विष्णुके विवादभगवान् विष्णु ने वाराह रूप धारण *सृष्टि रचना हेतु सामग्री एवं उपकरण। चौबीस तत्वों की उत्पत्ति। ब्रह्माजी का तप और विष्णुका वरदान। *विष्णु द्वारा ब्रह्माण्ड में प्रवेश और अचेतन ब्रह्माण्ड का सचेतन होना। *पहले तमोगुणी सृष्टि, तत्पश्चात स्थावर ..।2021-02-1417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE239. शिव2.12. शिवका सकाम पूजन(भाग 3) मूंग,राईपुष्प,राई,अरहरकी पत्ती,काली मिर्च इत्यादि का प्रयोग*विभिन्न पुष्पों एवं राई मूंग इत्यादिकी संख्या के गणना की विधि *जलधारा द्वारा अभिषेकके वैकल्पिक मन्त्र *पूजन और श्रृंगार में अन्तर *दुग्ध से अभिषेक करने से मानसिक शान्ति और परिवार में सुख शान्ति की बृद्धि होती है। *महामृत्युञ्जय का जप करते हुये अभिषेक करते हुये दस हजार जप ।2021-02-1417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE238. पातञ्जल योग, सूत्र 3.6 (भाग3) और 7,8, गीता 17.4-6*भूत, प्रेत, इत्यादि तामसी उपासनाओं का रहस्य और दुष्प्रभाव। *चमत्कारों का प्रदर्शन करने वाला साधक नहीं । *योग के बहिरंग और अंतरंग साधन।2021-02-1314 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 237. पातञ्जल योग, सूत्र 3.6(भाग2) संयम के उदाहरण।*संयम परमाणु बम की भांति हैं। *स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर, तन्मात्रायें इन्द्रिंया, अहंकार, चित्त - यह सब क्रमशः पूर्ववर्ती की अपेक्षा सूक्ष्मतर हैं। *दृष्टिबन्ध इत्यादि शक्तियां - चमत्कारी शक्तियों की उपयोगिता क्या है? *संयम में सर्वप्रथम और सर्वाधिक कठिन कार्य है -धारणा। *सारे चमत्कार "धारणा" के ही प्रयोग होते हैं। *चमत्कार तो जंगली जातियों भी देखा जाता है ! *भूत प्रेत में धारणा करते करते चित्त उन्हीसे तदाकार हो जाता है।2021-02-1317 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE236. पातञ्जल योग, सूत्र 3.6 तस्य भूमिषु विनियोगः। संयम का विनियोग।इस एपिसोड में - *अष्टाङ्ग योगका क्रम। *योगशास्त्र की प्रक्रिया स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ने की है। आवरण की बाह्य परिधियोंको तोड़ते हुये केन्द्र तक आना है। अतः पहले सामाजिक चरित्र का शोधन करें। तदुपरान्त व्यक्तिगत दिनचर्या संध्यावन्दन इत्यादि। तदुपरान्त आसन फिर प्राणायाम और इससे आगे की प्रक्रिया। *सूक्ष्म स्थूल से अधिक शक्तिशाली होता है। *पूर्वजन्म की साधना के अनुसार अष्टाङ्गयोग के क्रम में तेजी भी आ जाती है। *सिद्धियों का मोह अनिष्टकारी है। सिद्धियों का प्रयोग अथवा चमत्कारों का प्रदर्शन साधक और समाज दोनों के लिये हानिकर है।2021-02-1217 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 235. शिवमहापुराण, 2.12. शिवजी का सकाम पूजन (भाग 2)शिवजी के सकाम पूजनका विवरण आडियो सुनकर स्वतः जान लें।2021-02-1218 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 234. शिवमहापुराण 2.12. सकाम पूजन (भाग 1)-किस वस्तुसे पूजन किस मात्रा में करने पर क्या फल मिलता है*विभिन्न उद्देश्य से विभिन्न भांति के पूजन का वर्णन *विशेष- शिवपुराण के इस अध्यायके अनुसार, तुलसीदल से शिवजीका पूजन करने पर भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।2021-02-1217 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 233. पातञ्जल योग, सूत्र 3.1-5 - धारणा, ध्यान , समाधि और संयम की परिभाषा।*धारणा ध्यान समाधि अष्टांगयोग में अंतरंग साधन हैं। *देशबन्धचित्तस्य धारणा। *यम-नियम और संयम में अन्तर। *संयम के परिपक्व होने का फल।2021-02-1017 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE232. पातञ्जल योग, सूत्र 2.54-55 - प्रत्याहार और उसका फल।*योगाभ्यास अर्थात् अष्टांगयोग का क्रम। क्रमशः यम नियम आसन, प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि। *प्राणायाम का अभ्यास करते करते मन और इन्द्रियां शोधित हो जाती हैं। तदुपरान्त इन्द्रियों को मन में विलीन करना प्रत्याहार है। इसका शाब्दिक अर्थ है चित्तवृत्ति को बाहर से वापस खींंचना। *इन्द्रियों का परमात्मासे सीधा सम्बन्ध नहीं। मन का सम्बन्ध इन्द्रियों से है। इन्द्रियां मन में लीन होती हैं, तदुपरान्त मन परमात्मा में लीन होता है। *प्रत्याहार का फल - इन्द्रियां वशमें हो जाती हैं।2021-02-0914 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE231. शिवमहापुराण, 2.12. शिवपूजन की विधि। शौचाचार सम्बन्धी कुछ नियम।*प्रातःस्मरण- "उत्तिष्ठोत्तिष्ठ देवेश उत्तिष्ठ हृदयेश्वर। उत्तिष्ठ महास्वामिन् ब्रह्माण्डे मङ्गलं कुरु।। जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तिः, जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः। त्वया महादेव हृदिस्थितेन, यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।।" *किन दिनों तथा अवसरों पर उष्ण जल से स्नान वर्जित है? *नदीस्नान जिधर से प्रवाह आ रहा हो उधर मुख करके करें। अन्य स्थान पर पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके। *सुगन्धित तैल के लिये दिन की वर्जना नहीं होती। *शुद्ध वस्त्रधारण कर स्नान करना चाहिये। *ऊन का आसन गृहस्थों के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है। *भस्म के अभावमें जल से त्रिपुण्ड धारण की विधि भस्म के ही समान है। *शिवपरिवार का पूजन करने के उपरान्त शिवपूजन करें। *प्राणायाम मूलमंत्र से करें। *ध्यान हेतु शिवका स्वरूप। *बिल्वपत्र का सर्वाधिक आवश्यक है। *तुलसीदल - विशेष ध्यातव्य - शिवपुराण के अनुसार, तुलसीपत्र भी शिवपूजन की सामग्रियों में सम्मिलित है। *शिवजीकी आरती पाँच बत्ती की होनी चाहिये। *आरती पैर में चार बार , नाभिमंडलके सम्मुख दो बार, मुखमण्डल की एक बार, सम्पूर्ण अंग की सात बार आरती उतारें। *परिक्रमा विधि।2021-02-0818 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE230. पातञ्जल योग, सूत्र 2.50 - प्राणायाम (भाग 2/3) प्राणायाम की परिभाषा और प्रत्यक्ष लाभ।*"श्वासप्रश्वासयोः गतिविच्छेदः प्राणायामः"। *प्राणायाम का प्रत्यक्ष लाभ। *गीता के अनुसार प्राणयज्ञ। *एक साधारण मनुष्य चौबीस घंटे में औसत 21600 बार श्वास लेता है। घडी़ से मिलान करें तो एक मिनट में 14 से 16 अर्थात् औसत 15 बार श्वास प्रश्वास होगा। इस प्रकार 15 x 60x24 =21600. प्राणायाम और शारीरिक श्रम के अनुसार इसमें न्यूनाधिक्य हो सकता है। * सत्तर वर्षके जीवन में 551,880,000. अस्सी वर्ष के जीवनमें 630,720,000, सौ वर्षके जीवन में 778,400,000. *प्राणायाम के प्रकार *कुम्भक के प्रकार *चतुर्थ प्राणायाम (राजयोग) का प्राणायाम क्या है। *पूरक में प्राण को अपान से मिलाना होता है, रेचकमें अपानको प्राण से मिलाना होता है। यही प्राणयज्ञ है। *प्राण, प्राणायाम और प्रणव का साम्य।2021-02-0817 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE229. पातञ्जल योग, सूत्र 2.50 - प्राणायाम (भाग 2/2)(नोट - सूत्र 1.34 "प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य" की व्याख्या में भी प्राणायाम पर अनेक प्रवचन किये जा चुके हैं।पूर्ववर्ती कडि़यों में खोज लें।) *कुम्भक के समय नाभिचक्र पर ध्यान केन्द्रित करें *रेचक के समय ध्यान करना विशेष महत्वका है। विना इष्टदेवका ध्यान किये रेचक करने से वातदोष बढ़ता है। *पूरक कुम्भक और रेचक में लागाये जाने वाले समयका आदर्श अनुपात - 1:4:2. सावधानी से अनुपात का निर्धारण करें। कुम्भक में सहजता से जितनी देर श्वास रोक सकते हैं, उतने ही समय तक रोकें। सहनशक्ति की अन्तिम सीमा की प्रतीक्षा न करें। *समय की गणना का सर्वाधिक उचित माध्यम क्या है।2021-02-0717 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE228. शिवमहापुराण, 2.12. प्रतिमापूजन और सगुण उपासना कब तक?(भाग 2).*गुरु द्वारा बताये मंत्र और मार्ग से ही सिद्धि प्राप्त होती है। केवल पुस्तक से जानकारी लेकर मनमाने ढंगसे मंत्र जपनेसे अनर्थ ही होता है। *भक्ति का मूल सत्कर्म और इषटपूजा, सत्कर्म के मूल गुरु हैं और गुरु का मूल सत्संग है। *क्रम से ही आगे बढ़ने में कल्याण है। जैसे विना हाईस्कूल माध्यमिक स्नातक इत्यादि उत्तीर्ण किये पी एचडी नहीं कर सकते, उसी प्रकार विना भक्ति किये, विना सगुण उपासना किये सीधे वेदान्त की बात करना अनर्थकारी है। *जब तक गृहस्थाश्रम में हैं, तब तक पञ्चदेवपूजन अवश्य करना चाहिये। *ज्ञान होने पर द्वन्द नष्ट हो जाते हैं।द्वन्दके नष्ट हो जाने पर दुःखका नाश हो जाता है। *ज्ञानी भी लोकसंग्रह के लिये उपासना करते हैं। *ज्ञानीका दर्शन परमात्मा के दर्शनके बराबर है। *शिव के पूजनसे सभी देवताओं का पूजन हो जाता है।2021-02-0716 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 227. शिवमहापुराण। प्रतिमापूजा क्यो और कब तक?(नोट किसी किसी एपिसोड में प्रवचन की गति तेज हो जाती है तो उसका कारण यह है कि वह प्रसंग थोडा़ बडा़ होगा और उसे 17 मिनट 9 सेकण्ड के भीतर समायोजित करने का प्रयास किया गया है) इस एपिसोड में - *प्रतिमापूजन क्यों और कब तक आवश्यक है? *कौन देवता किस पदार्थ से निर्मित शिवलिंग का पूजन करते हैं। *शिवपूजन की विधि। मनुष्यजन्म दुर्लभ, उसमें भी उत्तमकुल, उसमें भी सदाचारी ब्राह्मणकुलमें जन्म दुर्लभतम है। *जिस वर्ण के लिये जो कर्म शास्त्रोंमें बताया गया है उसे वही करना चाहिये। *ध्यानयज्ञ सर्वोत्तम है। *प्राणायाम के समय ध्यान का स्वरूप। *ज्ञानी के लिये भौतिक पूजन आवश्यक नहीं। *ज्ञानी के लिये विधि-निषेध का बन्धन नहीं। *जब तक ज्ञान न हो जाय तब तक प्रतिमापूजन और बाह्य पूजा करते रहना चाहिये। जिसे अद्वैत का बोध गया उसको प्रतिमापूजन की आवश्यकता नहीं। *प्रतिमा अर्थात् सगुण के माध्यम से ही निर्गुण तक पहुँचा जा सकता है। विना अद्वैतबोध हुये जो प्रतिमापूजन छोड़ देता है उसका पतन निश्चित है। *ज्ञान के मूल हैं गुरु और गुरु सत्संग से मिलते हैं।2021-02-0617 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 226. पातञ्जल योग, सूत्र 2.47-50- आसन (भाग 3), प्राणायाम भाग-(2/1)*आसनके सिद्ध होनेका फल - द्वंद का आघात नहीं लगता। भूख-प्यास ठंडी गर्मी कम लगती है। *पहले आसन का अभ्यास करें। आसन स्थिर होने के उपरान्त प्राणायाम आरम्भ करें। *प्राणायाम और मन की स्थिरता अन्योन्याश्रित हैं। *श्वास प्रश्वास क्या है? *बाह्य कुम्भक और आन्तरिक कुम्भक के प्रभाव में अन्तर। *आसन सिद्धि अपने आपमें फल नहीं है, अपितु प्राणायाम की सिद्धि का उपाय है। *प्राणायाम की क्षमता का आकलन और बढा़ने का अभ्यास कैसे करें। *पूरक क्रिया में श्वासको फेफडे़ में नहीं, अपितु पेट में भरना चाहिये। नाभि तक श्वास ले जाकर वहां ध्यान केन्द्रित करना चाहिये।2021-02-0616 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 225शिवमहापुराण। ब्रह्मा विष्णु महेश का अभेद। इनमें भेद मानना बन्धन का कारण है।*ब्रह्मा और विष्णु को सृष्टि एवं पालन हेतु शिवजी का आदेश। *विष्णु शिवके बायें अंग से, ब्रह्मा दाहिने अंगसे प्रकट हुये हैं। *विष्णु भीतर तमोगुण, बाहर सत्वगुण धारण करते हैं । रुद्र भीतरसे सत्वगुणी और बाहर से तमोगुणी हैं। ब्रह्मा बाहर भुतर दोनों ओर से रजोगुणी हैं। *शिवकी आज्ञासे ही विष्णु अवतार धारण करते हैं और शिवकी शक्ति से ही कार्यसम्पादन करते हैं। *शिवजी का आदेश है कि जो शिवभक्त विष्णुकी निन्दा करेगा उसके सभी पुण्य नष्ट हो जायेंगे। *शिवजी द्वारा ब्रह्मा विष्णु और रुद्र की आयुका निर्धारण। *शिवलिंग की पूजा का आरम्भ। शिवलिंग की एक व्युत्पत्ति यह है कि लयकारक होने के कारण इसे शिवलिंग कहते हैं।2021-02-0616 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 224. पातञ्जल योग, सूत्र 2.46-आसन (भाग2)। श्वेताश्वतरोपनिषद, मन्त्र 2.8-10की व्याख्या।*श्वेताश्वतरोपनिषद में कहे गये "त्रिरुन्नतं" और "समं शरीरं" से तात्पर्य। *साधनाके लिये स्थान और समय का चयन। *अपने ही आसन पर साधना करनी चाहिये। *कूलर चलाकर योगसाधना करना उचित नहीं। इसमें वायु और ध्वनि दोनों का विक्षेप है।2021-02-0517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 223. पातञ्जल योग, सूत्र 2.46 - अष्टाङ्गयोग के तीसरे अङ्ग "आसन" का अर्थ।*आसन के दो अर्थ- बैठने की पीठिका और दूसरा शरीरकी स्थिति। *योगासन के नाम पर जो भांति भांति के आसन आजकल बताये जाते हैं , वे आसन की परिभाषा में नहीं आते। उन्हे व्यायाम कह सकते हैं। *भगवद्गीता और श्वेताश्वतरोपनिषद के अनुसार आसन की परिभाषा। *भगवद्गीता में बताये गये "चैलाजिन कुशोत्तरम्" का अर्थ। *चैलाजिन कुशोत्तरम् का नियम संन्यासी के लिये नहीं। *"समं कायशिरोग्रीवं" । *नासिकाग्र किसे मानें- नासिका की नोक को अथवा भ्रूमध्य को जहां से नासिका आरम्भ होती है?2021-02-0517 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 222. पातञ्जल योग, सूत्र 2.40-45 - नियमों के पालन का फल।*शौच का पालन करने से अपने अंगों से और दूसरों के संसर्गसे वितृष्णा हो जाती है। अपने शरीर की वास्तविकता का ज्ञान होकर उससे राग समाप्त हो जाता है। *आन्तरिक शौच से चित्तशुद्धि और मन की एकाग्रता होती है। फलस्वरूप आत्मदर्शन की योग्यता आ जाती है। *संतोष का फल। संतोषादनुत्तम सुखलाभः। *तप से शरीर और इन्द्रियों की शुद्धि होती है। फलतः अणिमा। दूरदृष्टि इत्यादि सिद्धियां आने लगती हैं। *स्वाध्याय के सिद्ध होनेसे इष्टदेव का साक्षात्कार होता है। *ईश्वरप्रणिधान से समाधि की सिद्धि होती है। समाधि सिद्ध होने पर योगी देशान्तर देहान्तर और कालान्तर में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।2021-02-0417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 221. पातञ्जल योग, सूत्र 2.37-39- अचौर्य, वैराग्य और अपरिग्रह का फल।*जिसमें चोरी की भावना का अभाव होता है, उसके समक्ष सभी रत्न प्रकट हो जाते हैं। *राग त्यागने वाला समस्त प्रकार की सम्पत्तियों का स्वामी हो जाता है। *जो धर्मको छोड़कर धनसे राग रखते हैं उनको लक्ष्मी ठुकराती है। जो धर्ममें राग रखते हैं , लक्ष्मी उनके पीछे चलती है। *अपरिग्रह की सिद्धि होने पर पूर्व और वर्तमान जन्म की सब बातें स्मरण होने लगती हैं। **अपरिग्रह क्या है? केवल धन को छोड़ना अपरिग्रह नहीं है, शरीर से अपनेको पृथक् समझना और किसी भी चीज में ममत्व न रखना अपरिग्रह है।2021-02-0412 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 220. पातञ्जल योग, सूत्र 2.35-36. यम-नियम के सिद्ध होनेके फल (भाग 1)।*जिसकी अहिंसा सिद्ध हो जाती है, उसके प्रति सभी प्राणी अहिंसक हो जाते हैं। *जहां अहिंसा और हिंसा में टकराव हो, वहां जो भाव अधिक प्रबल होगा वह दूसरे को अपने प्रभावमें ले लेता है। अर्थात् अहिंसा भाव यदि दुर्बल है तो वह अहिंसट भी हिंसक हो जाता है और यदि हिंसक से प्रबल है तो उसे भी अहिंसक बना देता है। *जो सदा सत्य बोलता है, उसकी वाणी अमोघ हो जाती है।वह अनायास भी कोई बात कह दे तो सत्य हो जाती है। *सत्यके साधक को व्यवहार में यहां तक कि हास परिहास में भी बहुत सावधान रहना होता है।2021-02-0417 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 219. पातञ्जल योग, सूत्र 2.33-34। यम-नियम का पालन कैसे करें, इनमें आने वाली बाधाओं से कैसे निपटें।*वितर्क बाधा आने पर उसके प्रतिकूल भाव का चिन्तन करें। *जब हिंसा आदि वितर्क उत्पन्न हो, तब इनमें प्रवृत्त न हो। अच्छे विचारों को क्रियान्वित करें, बुरे विचारौं को टालते हुये नष्ट करें। *पहले बताये गये सूत्र 1.33 का अनुसरण करें। *लोभ मोह और क्रोध - यह तीन बाधायें हैं। *हिंसा के 81 प्रकार । मुख्य तीन है - स्वयं की हुयी, दूसरे से कराई हुयी, अनुमोदन की हुयी। इनके पुनः उपभेद से 81 प्रकार हैं।2021-02-0316 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 218. पातञ्जल योगसूत्र, अष्टाङ्गयोग। यम नियम की परिभाषा।*यम - अहिंसा सत्य अस्तेय अपरिग्रह ब्रह्मचर्य -यह पाँच यम कहे गये हैं। *व्रत और महाव्रत में अन्तर। यम का देश काल जाति इत्यादि से सीमित आचरण व्रत है। उसका सर्वदा सार्वभौम आचरण महाव्रत है। *नियम- शौच संतोष तप स्वाध्याय और ईश्वरशरणागति- यह पाँच नियम हैं। *संतोष और अकर्मण्यता में अन्तर। *तप के लक्षण। *स्वाध्याय क्या है।2021-02-0317 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE217. पातञ्जलयोग, सूत्र २.२८-२९- हान और हानोपाय। कैवल्यका अर्थ।अष्टाङ्गयोग।इस एपिसोड में- *द्रष्टा-दृश्य के संयोग का अभाव हान है। *ज्ञान के उपरान्त अज्ञानजनित संयोग का अभाव हो जाता है। *केवल पुरुष का रह जाना कैवल्य है। * विवेक ख्याति हानका उपाय है। *विवेक ख्याति अर्थात् आत्मा अनात्मा का विवेचन। *योग के अंगों अर्थात् अष्टांगयोग के अनुष्ठान से विवेकख्याति होती है। *अष्टाङ्गयोग के अनुष्ठान से क्लेशों का नाश होता है। *अष्टाङ्गयोग का संक्षिप्त परिचय। *यम समाज-व्यवहार से सम्बन्धित है, नियम व्यक्तिगत दिनचर्या से सम्बन्धित। *यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार -यह पाँच बहिरंग साधन हैं। धारणा ध्यान समाधि - यह तीन अंतरंग साधन हैं।2021-02-0313 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 216. पातञ्जलयोग,सूत्र २.२०,२१,२३- आत्मतत्व को द्रष्टा क्यों कहते हैं?द्रष्टा संज्ञा कब तक रहती है?*दृश्य अर्थात् सृष्टि अथवा प्रकृतिका उद्देश्य जीव को बन्धनमें डालना नहीं, अपितु बन्धनसे निकालना है। *प्रकृतिका अपना कोई उद्देश्य नहीं होता। वह पुरुष (जीव)को भोग और मोक्ष देने के लिये है। *जब तक भोग और अपवर्ग की प्राप्ति शेष है तभी तक पुरुष की द्रष्टा संज्ञा है। *जिसका भोग मोक्षका प्रयोजन पूर्ण हो गया उसके लिये इस दृश्य का कोई अर्थ नहीं रह जाता। प्रयोजनके पूर्ण होने तक और अन्य जीवों के लिये यह दृश्य बना रहता है। *द्रष्टा-दृश्यका संंयोग क्या है? पिछले एपिसोड में स्व-स्वामि कहा गया उसमें स्व प्रकृति है और स्वामी पुरुष है। अविद्या के कारण दोनोंका संयोग होता है।2021-02-0216 minदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीदण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीE 215. पातञ्जलयोग, सूत्र २.१७ भाग(३) - स्व-स्वामिभाव, द्रष्टा-दृश्यभाव।*प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों बुद्धिकी वृत्तियां हैं। *उपद्रष्टानुमन्ता च भर्त्ता भोक्ता महेश्वरः का अर्थ। *बाह्य व्यापारसे ज्ञानी का सम्बन्ध नहीं होता।2021-02-0213 min